शरीर के इलाज के लिए मन का इलाज करना कितना जरूरी है?

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शंका

आज के युग में व्यक्ति मानसिक रुप से हमेशा बीमार रहता है जिससे उसे बहुत सारी बीमारियाँ जकड़ लेती हैं। शरीर के इलाज के लिए मन का इलाज करना कितना जरूरी है? कृपया मार्गदर्शन दें?

दीप्ति जी

समाधान

मन का इलाज ज़्यादा जरूरी है, तन की बीमारी के १०० इलाज हैं, मन की बीमारी का कोई इलाज नहीं है। अब कभी भी आपके तन पर कोई बीमारी हावी हो, आप उसे मन पर हावी मत होने दें। तन की बीमारी को तन तक सीमित रहने दें, मन तक न पहुँचने दें। हमेशा यह सोचें कि “मेरी बीमारी मेरे मन में घर न करे”- घर करना यानी मन में बैठ जाना। छोटी-छोटी सी बीमारी जब किसी के अन्दर घर कर बैठती है, तो उससे मुक्त हो पाना उनके लिए बहुत मुश्किल हो जाता है और वे बड़ा असहज सा अनुभव करने लगते हैं। मन पर हावी मत होने दें और यदि आपने अपने मन को बदल दिया तो कैसी भी बीमारी हो आप विचलित नहीं होंगे, सहनशक्ति बढ़ेगी। बीमारियाँ जब चित्त पर हावी होती हैं तो जल्दी नहीं जातीं। 

बीमार मानसिकता बहुत खतरनाक है, हम तन की बीमारी को मन पर हावी न होने दें। सोच बदलने का परिणाम देखें! मैं सन् 2002 में मैनपुरी (उत्तरप्रदेश) था। एक सज्जन एक दिन मेरे पास आये और बोले कि “महाराज जी आपके निमित्त से मुझे बड़ा लाभ हो गया, मेरे जीवन में चमत्कार हो गया।” मैंने पूछा “कौनसा चमत्कार है भाई, मैंने तो आपको पहले कभी देखा भी नहीं। मैं ऐसे किसी चमत्कार पर भरोसा भी नहीं करता।” वो डिप्टी कलेक्टर के पोस्ट से रिटायर अधिकारी थे। वो बोले- “मैं 15 वर्षों से एँजाइना पेन (Angina pain) से पीड़ित था, मैंने खूब इलाज कराया, खूब पैसे खर्च किए मुझे कोई फर्क नहीं पड़ा। लेकिन मैं ३ दिन पहले आपके प्रवचन में आया था। आपके एक वाक्य ने मेरे जीवन में जादू का काम किया। आपने प्रवचन में कहा था कि तन की बीमारी को मन पर हावी मत होने दो, यह बात मेरे दिल में बैठ गई। तब से 3 दिन हो गए, मैं बिना दवाई के ठीक हूँ और मुझे कोई पीड़ा नहीं। दवाई खाने के बाद भी मुझे पीड़ा होती थी। लेकिन मैंने सोचा ये बीमारी मेरे तन में है मेरे मन में नहीं। मैं तो आत्मस्वरूप हूँ, मैं स्वस्थ हूँ, यह धारणा मेरे मन में बैठी, आज मैं बिल्कुल ठीक हूँ। आज मैंने सोचा आपके वचनों से मेरे अन्दर इतना परिवर्तन आया है, तो एक बार आपके चरणों में कृतज्ञता प्रकट कर दूँ। मैं इसीलिए आपके चरणों में आया हूँ।” 

जब भी कोई परेशानी आए, इलाज कराइए। मैं इलाज का निषेध नहीं करता, जो मेडिकल ऐड (चिकित्सीय सहायता) है वह लीजिए, लेकिन सबसे पहले अपने मन को स्वस्थ रखें। आपका मन स्वस्थ होगा तो तन भी जल्दी ठीक होगा और मन ही बीमार होगा तो सारी जिंदगी बीमारी बनी रहेगी।

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