द्रव्य, क्षेत्र, काल, भाव की शुद्धि व्रती चर्या में कैसे असर डालती है?

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शंका

व्रती को अपनी चर्या के निर्दोष पालन के क्रम में द्रव्य, क्षेत्र, काल, भाव की शुद्धि किस प्रकार से प्रभावित कर सकती है?

समाधान

व्रती को उस जगह ही रहना चाहिए, जहाँ उसकी चर्या अच्छे से पल सके। ऐसे द्रव्य का उपयोग करें, जो आपकी चर्यानुसार अनुकूल हो। इस विषय में विस्तृत व्याख्या की जा सकती है, उदाहरण के रूप में अभी आप जहाँ रहते हैं, वहाँ आप अपनी चर्या का अच्छे से पालन कर रहे हैं। मान लीजिये आप कम तापमान वाली जगह पर आप चले जायें तो वहाँ चर्या नहीं पल सकेगी। जिस क्षेत्र में आप रह रहे हैं, आपको सब प्रकार की धार्मिक अनुकूलता मिल रही है। अगर आप ऐसी जगह में बस जाएँ, जहाँ जैन धर्म और जिन शासन के अनुरागी ही न दिखें तो आपकी चर्या पलने में दिक्कत आ जायेगी। आप जब मन्दिर में दर्शन करने जाते है वहाँ आपके भाव अलग होते हैं और कहीं दूसरी जगह जाते हैं तो वहाँ भावों में परिवर्तन आ जाता है। इसलिए द्रव्य, क्षेत्र, काल, भाव का प्रभाव अवश्य पड़ता है, इसलिए अनुकूल द्रव्य, क्षेत्र काल, भाव का आश्रय लेना चाहिए। 

आचार्य कुन्दकुन्द ने एक मुनि तक के लिए लिखा है कि उन्हें भी द्रव्य, क्षेत्र, काल, भाव को देखते हुए अपनी चर्या का उत्सर्ग और अपवाद में मैत्री रखते हुए पालन करना चाहिए। जहाँ व्रत निर्दोष रूप से पल सके, जहाँ भावों में विशुद्धि हो, जहाँ चर्या के पालन में दोष न लग सके वैसी जगह पर ही रहना चाहिए। इसमें अधिक प्रभाव क्षेत्र का पड़ता है। दो प्रसंग याद आ रहे हैं, जब महाभारत का युद्ध अपरिहार्य हो गया तो श्रीकृष्ण ने सोचा कि युद्ध कहाँ लड़ा जाएगा? इसके लिए मैदान खोजा जाए, हम सबको पता है कि कुरुक्षेत्र में महाभारत का युद्ध हुआ था। लेकिन इस कुरुक्षेत्र भूमि का कैसे चयन हुआ था? कहते हैं कि श्री कृष्ण जब अपने साथियों के साथ निकल रहे थे, तब उन्होंने देखा कि एक किसान खेत जोत रहा था और उसकी धर्मपत्नी अपने दूध पीते बच्चे को गोद में लेकर उसके लिए खाना लेकर आयी थी। इसी बीच खेत की मेड़ टूट जाती है। उसने सोचा कि यहाँ से सारा पानी बह जाएगा और बहुत बुरा नुकसान हो जाएगा तो उसने अपने बच्चे को उस मेड़ पर मिट्टी की तरह लेटा दिया और अपने पति को खाना खिलाने चली गयी। श्रीकृष्ण ने यह दृश्य देखकर कहा कि जिस भूमि पर मातृत्व की हत्या हुई है उस ही भूमि पर महाभारत का युद्ध होगा क्योंकि जिस भूमि पर ममता की हत्या हो जाए, मातृत्त्व ही मर जाए, वहाँ ही महाभारत हो सकती है। 

दूसरा प्रसंग – एक बार श्रवण कुमार अपने माँ- बाप को लेकर जा रहा था। जिन्होंने अपने माँ – बाप को भगवान की तरह पूजा, उनके मन में अचानक ही बुरे भाव आ गए और उन्होंने अपने मनोभाव पिता को व्यक्त करते हुए कहा कि पिताजी! आप दोनों, मेरे कंधे के बोझ बनकर रह गए हैं, मैंने आपके पीछे अपनी सारी जिंदगी मिटा दी। पिता अनुभवी थे, उन्होंने यह सब सुनकर कहा “बेटा! सही कहा तुमने, हम दोनो तुम्हारे कंधे के भार बनकर रहे। हमने तुम्हें बहुत कष्ट दिया है, हमें माफ करना, अन्धे होने के कारण हमें दिखाई नहीं दे रहा, बस इतना बता दे कि हम कहाँ है?” श्रवण कुमार ने कहा – “हम इस समय बेत्रवदी नदी के किनारे पर है।” पिता ने कहा “बेटा, बड़ा उपकार होगा, तूने अभी तक बहुत सहयोग किया, एक छोटी सी विनती है बस यह नदी को पार करवा दे, फिर तेरी जो इच्छा हो वो करना।” पिता की आज्ञा मानकर श्रवण कुमार ने उस नदी को पार करना शुरू किया। जैसे ही नदी में पाँव रखा, उसके मन का पाप धुल गया। नदी पार करते करते पश्चाताप के आंसू बहने लगे। वह अपने माँ- बाप के चरणों में लिपट गया- “धिक्कार है मुझे! मैंने न जाने किस अज्ञानता के कारण अपने जीवन भर की सेवा को मिट्टी में मिला दिया। मुझे माफ करना पिताजी।” पिता ने कहा “बेटे कहा इसमें तेरा दोष नहीं है, उस धरती का दोष है, उस क्षेत्र का दोष है, जिस जगह पर कभी परशुरामजी ने अपने माँ-बाप की हत्या की थी। इस जगह पर माँ- बाप की सेवा का भाव कभी नहीं आ सकता।” यह सब क्षेत्र का प्रभाव है। 

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