आचार्य भगवन दीक्षा के समय नाम क्या सोचकर रखते हैं?

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शंका

आचार्य भगवन दीक्षा के समय नाम क्या सोचकर रखते हैं? आपका नाम प्रमाण सागर क्या इसलिए रखा गया कि आप प्रामाणिक या सटीक जवाब देते थे या फिर कोई और कारण है?

समाधान

नामकरण तो गुरू करते हैं और हम ये नहीं कह सकते हैं कि वो क्या सोचकर करते हैं। ये तो गुरू ही जानते हैं कि क्या सोचकर करते हैं, पर प्रायः हमारे गुरू देव के मुख से जो नामकरण हुए वो प्रायः गुणनाम देखने को मिलते हैं या तो उसमे वो गुण हों या उनके अन्दर वो गुण आ जाएँ शायद इसी भाव से वो नाम रखते हैं। मेरे नामकरण का जो प्रश्न है, तो हमारे आचार्य श्री के हाथों से जितनी भी दीक्षाएँ हुई और उनका नामकरण वो मंच पर ही दीक्षा के काल में करते थे। पर मेरा नामकरण मेरी दीक्षा के १५ दिन पहले हो गया था। 

मुझे पता भी नहीं था हम लोग आहार जी में थे। उस समय गुरुदेव व्याकरण पढ़ाते थे। और व्याकरण में बहुत तर्कना होती थी। मेरी शुरू से ऐसी प्रवृत्ति रहती थी कि मैं अन्तिम क्षण तक खूब प्रश्न पूछता था। इसलिए आज मेरे पास जो भी है, सब गुरू की कृपा है। मैं पूछता था और वो मुझे बड़े अच्छे से उत्तर देते थे और मुझे प्रोत्साहित भी करते थे हर विषय में। व्याकरण में हर सूत्र बड़े ही तार्किक तरीके से हल करके पढ़ाते थे तो कभी-कभी ऐसा होता था, कि १.५ घंटे की कक्षा में एक भी सूत्र हल नहीं होता था। और जब तक उसकी पूरी सिद्धि न हो जाए तब तक आगे नहीं बढ़ने देता था। एक रोज ऐसा हुआ कि शंका पर शंका और शंका पर शंका, प्रसंग आगे बढ़े ही नहीं, एक के बाद एक। मैं एक के बाद एक प्रश्न पर प्रश्न करता गया और आचार्य गुरूदेव उत्तर देते गये। तो मेरे साथी ब्रह्मचारी ने कह दिया कि ये तो शंका सागर हैं। जैसे ही उन्होंने कहा कि शंका सागर है, तो आचार्य गुरूदेव ने मुस्कराते हुए कहा कि ‘शंका सागर नहीं, प्रमाण सागर है।’ मुझे कुछ पता नहीं था आगे क्या होना है, एक घटना घटी और बात पूरी हो गई। ८-१० दिन बाद गुरूदेव ने कहा कि ‘कल मेैं तुम लोगों को दीक्षा देना चाहता हूँ।’ हमने कहा- अहो भाग्य! उन्होंने कहा – क्षुल्लक दीक्षा देना चाहते हैं। हमने कहा- अहो आज्ञा! हम तो उसी दिन ही दीक्षित हो गये थे, जिस दिन आपके चरणों में आये थे। हमने स्वीकार कर लिया। अब आप हमें जिस लायक मानो और जो करना है करो। हम लोगों की दीक्षा हुई। ८ नवम्बर १९८५ की बात है आहारा जी में थे और ८ नवम्बर की तिथि में नौ क्षुल्लक दीक्षाएँ हुई, जिसमें मेरा पहला क्रम था और दीक्षा के बाद उन्होंने मुझे पुकारा तो प्रमाण सागर कहकर पुकारा, मुझे और कुछ पता नहीं है।

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