गौवंश और कृषि को हम आगे कैसे बढायें?

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शंका

गढ़ाकोटा में आचार्य श्री जी ने धवला टीका की चर्चा करते हुए कहा “या श्री सा गौ”। गौवंश और कृषि को हम आगे कैसे बढायें?

समाधान

गौधन हमारी सृष्टि का आधार है। किसी ज़माने में भारतीय अर्थव्यवस्था का आधार गौधन था। वर्तमान में स्थितियाँ कुछ ऐसी हो गयी कि उनका कत्लेआम हो रहा है और इससे देश दुरवस्था की ओर जा रहा है। गाय के विषय में मेरे पास डॉ. सुहास शाह आये थे। इस लाईव शो में भी उन्होंने दो-तीन बार अपने अनुभव सुनाये और उसके बाद तो पचासों अनुभव आये। उन्होंने गौसेवा के फल की एक घटना सुनाई थी। उन्होंने बताया पूना में एक गौशाला है, उसका संचालक पुणे शहर के लावारिस लोगों को गौशाला ले जाता और गाय की सेवा में लगा देता। आप सुनके आश्चर्य करेंगे कि छह माह में या एक वर्ष के भीतर ही वह गायों के बीच में रहने से ठीक हो जाता। फिर या तो वही रहता या अपने माँ-बाप के पास चला जाता। कई लोगों की गम्भीर मरणासन्न दशा हुई और गौसेवा से उनको नया जीवन मिला। कई ऐसे सामान्य व्यक्ति के रूप में ढल जाते हैं। ऐसे हमारे यहाँ हजारों उदाहरण हैं। अभयदान बहुत बड़ा दान है। कृषि कर्म बहुत उच्च कर्म है। यह हमारे देश की शान है। ऐसे केस आए हैं जिनकी बड़ी गम्भीर स्तिथि हुई। वेंटिलेटर पर लटके लोगों के जीवन में चमत्कार हुआ। और जो कटने जाने वाली थी, उन्हें गौशाला पहुँचाया और उनके चमत्कारिक परिणाम सामने आए। राँची में एक भाई के फेफड़े में अनाज चला गया था। उनकी हालत खराब थी, वो वेंटिलेटर पर आ गए थे,  गहरा इंफेक्शन हो गया। उन्होंने अपनी तरफ से गाय का दान दिया, वो आज सलामत है। ऐसे अनेक उदाहरण है। मेरा यह कहना है कि अभय दान बहुत बड़ा दान है। एक भी जीव के प्राण बचाओगे तो तुम्हारे प्राणों के संकट दूर होंगे, अन्य भी कई चीजें हैं। कृषि के विषय में बात कही गई, तो हमारे यहाँ अर्थ उपार्जन के छह कर्म बताएँ गए है- असि, मसि, कृषि, विद्या, वाणिज्य, और शिल्प। तो कृषि कर्म को कभी निकृष्ट दृष्टि से नहीं देखना चाहिए बल्कि उत्तम कर्म है और यह कार्य करना चाहिए। पशुपालन भी कृषि का ही एक अंग है। तो यह हमारी भारतीय संस्कृति का मूल है, जैन धर्म का मूल है। इस पर पूरा-पूरा ध्यान जाना चाहिए। अब गोपालन बंद हो गया, कुत्ता कल्चर चालू हो गया। इसलिए मामला उलट-पुलट हो रहा है।

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