हमारे विचारों का कर्मों पर कैसे असर होता है?

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शंका

मैं कई बार विचार करता हूँ कि ये संसार, कर्म रूपी वर्गणाओं से भरा हुआ है और हमारे विचारों के अनुसार वो वर्गणाएं कर्मों के रूप में हमारी आत्मा में आती हैं, कर्म जो कि पुद्गल स्वरूप हैं। हमारे विचारों का परिणमन में उसके ऊपर कैसे effect (प्रभाव) पड़ता है। वो mechanism (क्रियाविधि) क्या है?

समाधान

कर्म और आत्मा का जो सम्बन्ध है वह एक प्रकार का रासायनिक सम्बन्ध है। हमारे यहाँ कहते हैं कि 

“स्निग्ध रूक्षत्वाद बन्ध:”, त.सू. 

स्निग्ध और रूक्ष गुणों से बन्ध होता है। राग, द्वेष को भी स्निग्धता और रूक्षता की तरह जोड़ा गया है। हमारे अन्दर जो राग, द्वेष होते हैं उन राग, द्वेष के निमित्त से कर्म के परमाणुओं में ऐसा ‘chemical change’ (रासायनिक बदलाव) होता है, कि वो हमारी आत्मा से चिपक जाते हैं। हमारे मन, काय व वचन की प्रवृत्ति से कर्म परमाणु हमारी ओर आकर्षित होते हैं, और हमारे अन्दर राग द्वेष होने के कारण वे कर्म परमाणु हमारी आत्मा से चिपक जाते हैं, तो हमारे भाव का हमारे शरीर के अन्दर रहने वाले रसायनों पर प्रभाव पड़ता है। 

ये प्रश्न यदि आज से ५० वर्ष पहले पूछा होता तो शायद इतना अच्छा उत्तर नहीं मिलता। लेकिन आज हम ये बात जानते हैं कि चिकित्सा और मनोविज्ञान के क्षेत्र तो और डेवलप हुए है। वैज्ञानिक जानते हैं कि हमारे शरीर के अन्दर किन-किन प्रकार के रसायनों की कमी से कैसी-कैसी प्रकार की भाव दशा होती है, और किन-किन प्रकार के रसायनों का विशेष प्रयोग करने पर हमारी भाव दशा में कैसे परिवर्तन आता है? तो ये बात स्पष्ट हो गई है कि रसायनों का हमारे भावों पर और भावों का रसायनों पर प्रभाव पड़ता है। भाव का प्रभाव कर्म के ऊपर पड़ता है, तो कर्मों में रासायानिक परिवर्तन होता है और कर्मों के रासायनिक परिवर्तन का प्रभाव हमारी भाव दशा पर होता है। ये दोनों निमित्त और नैमित्तिक सम्बन्ध हैं इसलिए कर्म जड़ हैं, और आत्मा चैतन्य है, तो भी दोनों का गठबन्धन अनादि से बना हुआ है।

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