जैन लोग बहुसंख्यक से अल्पसंख्यक कैसे हो गए?

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शंका

जैन धर्म बहुत पुराना है, बहुत प्राचीन है और उसके संबन्ध में बहुत शिलालेख भी मिले हैं। मेरा प्रश्न यह है कि उस समय जैन लोगों की संख्या करोड़ों में थी। मैं यह जानना चाहता हूँ कि यह संख्या करोड़ों से लाखों और हजारों में कैसे आ गई? क्या जैन धर्म के पालन करने वालों ने जैन धर्म छोड़ दिया या जैन धर्म के सिद्धांत कुछ ऐसे रहे कि लोगों ने उनका पालन नहीं किया और वह दूसरे धर्म में चले गए?

समाधान

जैन धर्म के सिद्धांत सदा से सुग्राह्य रहे हैं और इसका यह परिणाम रहा कि बहुत संख्या में जैन धर्म को लोगों ने अंगीकार किया, उसे स्वीकार किया। आज जैनियों की संख्या के कम होने के पीछे कई कारण हैं।

इसमें सबसे पहला कारण है- राजनैतिक। हमारे यहाँ जब तक हमें राजा आश्रय मिला तब तक जैन धर्म फला फूला। भारत के प्राचीन इतिहास को पलट कर जब हम देखते हैं तो यह पाते हैं कि हमारे जैन धर्म में राजतंत्र के युग में बहुत आक्रमण हुआ, अत्याचार हुआ। अनेक-अनेक तरीके से जैनियों का विनाश किया गया तो राजकीय दबाव से भी जैन धर्म का बहुत नुकसान हुआ।

दूसरी बात हमारी कुछ जातीय कट्टरवादी मानसिकता ने भी बहुत लोगों को जैन धर्म से विमुख कराया। 

तीसरी बात– १२ वीं शताब्दी से लेकर २० वीं शताब्दी के पूर्वार्ध तक जैन साधुओं का निर्बाध विचरण ना होने के कारण भी हमारे समाज के बहुत सारे लोग ऐसे रहे जो संपर्क और सानिध्य के अभाव में अजैन हो गए। उसका उदाहरण है- सराख क्षेत्र। सराख क्षेत्र जो बंगाल, उड़ीसा और बिहार के सीमावर्ती इलाकों में बहुत बड़ा क्षेत्र है। जिसमेंं आज भी लाखों की तादाद में सराख भाई-बन्धु हैं। वे सराख शब्द श्रावक का अपभ्रंश रूप है। उनके आचार-विचार पहले जैन ही थे। उनके गोत्र २४ तीर्थंकरों के नाम से हैं- आदिनाथ गोत्र, अजितनाथ गोत्र, महावीर गोत्र और उनके इलाके में बहुत सारे मन्दिर भी रहे हैं। अभी कुछ मन्दिर हैं, कुछ लोग जैन धर्म से वापस जुड़े हैं। लेकिन लाखों लोग अजैन हो गए, उनमेंं से कुछ लोग हैं जो अभक्ष्य भक्षण भी करने लगे, तो इसका कारण क्या? एक लंबे अन्तराल तक उन्हें कोई धर्मोपदेष्टा नहीं मिला, कोई मार्गदर्शक नहीं मिला, तो धीरे-धीरे कन्वर्ट हो गए। इसी बीच हमारी समाज में कट्टरवाद और दकियानूसी विचारधारा भी प्रबल हो गई इसने भी हमारे धर्म का सत्यानाश किया।

इसके लिए एक उदाहरण स्वरूप बताता हूँ कि वर्तमान में दिगम्बर जैन में अग्रवाल जैन बहुत सारे ऐसे हैं जो अजैन हो गए। उसका कारण यह था कि हमारे यहाँ जातीय कट्टरता रखी गई। एक जाति के जैनी दूसरी जाति के जैनी से ब्याह संबन्ध नहीं करता। उसका फ़ल यह रहा कि अग्रवाल भाइयों को वैष्णव को बेटी देना और वैष्णवों से बेटी लेना आम हो गया, तो बेटी व्यव्हार जिनसे ज्यादा हुआ उनके साथ ही उठना-बैठना हुआ अजैनियों से सम्बन्ध रहे और जैनों से संबन्ध टूटा और धीरे-धीरे अजैन बन गए। अकेले कलकत्ता में ३००० अग्रवाल जैन बंधु वैष्णव हो गए। ऐसे परिवार भी उसमें शामिल हैं जिन्होंने वहाँ बड़े-बड़े भव्य जिनालय बनाएँ। बेलगछिया जैसा मन्दिर जिस व्यक्ति ने बनाया उस व्यक्ति के परिवार में णमोकार जपने वाला नहीं था। हमने अपने चातुर्मास के समय में ३०० परिवारों को वापस मुख्य धारा में जोड़ने का उपक्रम किया। 

तो यह एक कारण था, यदि उनके साथ रोटी-बेटी का व्यवहार हुआ होता तो वे आज अजैन नहीं होते। अग्रवाल समाज जैन समाज के अग्रणीय समाज थी, आज नेपथ्य में आ गए। तो ऐसे एक नहीं अनेक उदाहरण हैं, इसलिए हमारा जैन धर्म पिछड़ गया। 

फिर दूसरी बात जैन धर्म में जो उसकी व्याख्या थी, उसे ठीक ढंग से नहीं किया। हमने जैन धर्म को केवल ऊपरी क्रियाकांडों तक सीमित कर दिया, कर्मकांडो से उसे जोड़ दिया और जैन धर्म के नाम पर ‘यह छोड़ो, वह छोड़ो’ की बातें करने लगे। मूलभूत जैन तत्व-ज्ञान का यदि हमने प्रसार किया होता तो आज सारे विश्व में जैन धर्म का ठाठ-बाट होता, जैन धर्म का साम्राज्य होता। 

तो ये बहुत सारी कमियाँ हैं इन्हें हमें निवारित करना होगा और आज के संचार क्रांति के युग में जो एडवांस टेक्नोलॉजी है अगर इनका उपयोग किया जाए तो बहुत अच्छे से इन सारे कार्यों को निष्पादित किया जा सकता है।

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