संतों के चेहरे पर सदा मुस्कुराहट कैसे बनी रहती है?

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शंका

सम्वर और निर्जरा का सुखकारी मार्ग संसारी जीवों को कठिन क्यों लगता है तथा व्रत-नियम और संयम के मार्ग में ऐसा कौन सा आनन्द है, गुरूदेव जिससे सन्त के चेहरे पर हमेशा मुस्कुराहट बनी रहती है?

समाधान

एक होता है हित का मार्ग और दूसरा होता है सुख का मार्ग। जिससे तत्काल सुख मिले वह सुख का मार्ग है और जो सुख न दे पर स्थाई रूप से हमें अच्छा बनाए रखें वह हित का मार्ग है। उदाहरण:- जैसे एक व्यक्ति को डायरिया हो गया, वह नुक्ती के लड्डू खाना चाहता है। लड्डू का स्वाद तो अच्छा आएगा, वह रुचिकर जरूर है, अपितु डायरिया से पीड़ित व्यक्ति लिए वह हितकर नहीं है। इसलिए हितकर को देखिये, रुचिकर को मत देखिये। लेकिन संसारी प्राणी रुचिकर के पीछे पागलों जैसा भागता है, वह हितकर को समझता ही नहीं है। वो बोलता है “लड्डू मिले हैं बड़ी मुश्किल से पहले खाने दो।” वह लड्डू खायेगा फिर जाएगा, हालत खराब! तो ऐसे ही ये पंचइंद्रिय के विषय मनुष्य को इतने रुचिकर लगते हैं और त्याग-वैराग्य और संयम का हितकारी मार्ग उसे अच्छा नहीं लगता।  जिसे यह मालूम है कि यह भोग, भव रोग बढ़ाने वाले हैं, अभी रुचिकर जरूर हैं, अभी प्रिय जरूर लग रहे हैं लेकिन इसका परिपाक खराब है, वह कहेगा “अभी हम को खाना नहीं है, भूखे रह जायेंगे पर नहीं खायेंगे।” वह इनके भोगों को छोड़ देगा। वह व्यक्ति सोचेगा “डायरिया है, खाने से बीमार होंगे तो उपवास रखने में ही भलाई है। उससे जल्दी स्वस्थ होंगे”, वह अपना मार्ग बदल लेते हैं। जब तक रुचिकर और हितकर का भेद नहीं समझते, तब तक मोक्ष मार्ग में कोई आगे नहीं बढ़ सकेगा। 

प्रति पल प्रसन्नता का मार्ग! मुझसे एक बार किसी ने कहा- महाराज आपका मार्ग बहुत कठिन है। हमने कहा “ठीक है, ये बताओ कठिन मार्ग पर चलने वाले के चेहरे पर मुस्कान होती है कि सरल मार्ग पर चलने वाले के?” बोले “सरल मार्ग पर चलने वाले के।” मैंने कहा “फिर मेरा चेहरा देखो, अपना चेहरा देखो।” जीवन उसका कठिन नहीं है जो तपस्या के रास्ते पर चल रहा है, जीवन कठिन उसका है जो समस्या से ग्रसित होकर जी रहा है। तुम लोग समस्या में जीते हो और हम तपस्या में जीते हैं। विषय भोग में जब तक अनुरक्त रहोगे, तब तक समस्याएँ बढ़ेंगी, समाधान नहीं मिलेगा; और तपस्या के रास्ते पर चलोगे, समस्याएँ खत्म हो जांएगी। आप सभी को लगता है कि हमारा मार्ग कठिन है क्योंकि आपने इसे स्वीकार नहीं किया है और हमें लगता है कि इससे सरल कोई मार्ग ही नहीं क्योंकि हमने इसे सिर्फ स्वीकारा ही नहीं, अपितु रोज अनुभव भी कर रहे हैं। जब हम अपने हितकर मार्ग को स्वीकार लेते हैं तो लोक में कष्टकारी दिखने वाला मार्ग भी अनुकूल दिखने लगता है।

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