कामकाजी लोग पारिवारिक, व्यक्तिगत और धार्मिक जीवन में तालमेल कैसे लाएँ?

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शंका

कामकाजी जीवन (Working Life), धार्मिक जीवन (Religious Life) और व्यक्तिगत  जीवन (Personal Life)- इन तीनों में हमें कैसे सामंजस्य बैठाना चाहिए, खासकर जब नौकरी में हम ग्यारह घंटे तक व्यतीत करते हैं?

समाधान

इसमें एक चीज़ और जोड़ दो-पारिवारिक जीवन (Family Life)। पर्सनल लाइफ (Personal Life), फेमिली लाइफ (Family Life) और रिलीजियस लाइफ (Religious Life) में ताल-मेल कैसे बनाएँ, ठीक है? सबमें ताल-मेल बना करके चलना चाहिए। सबसे पहली बात तो मैं ये कहता हूँ कि किसी भी प्रोफेशन में आप जाओ पर प्रोफेशन को अपने ऊपर हावी मत होने दो, प्रोफेशन पर आप सदैव हावी बने रहो, नंबर वन। 

नम्बर 2, जब घर से व्यापार के लिए या कारोबार के लिए जाओ तो घर को ऑफिस में भूल जाओ और ऑफिस से जब घर आओ तो घर में आकर ऑफिस को भूल जाओ। आप लोग घर को ऑफिस तक खींच लेते हो और ऑफिस घर तक ले आते हो। ये गड़बड़ है, इससे बहुत तरह की विषम स्थितियाँ प्रकट हो जाती हैं। 

रहा सवाल पर्सनल लाइफ और रिलीजियस, फेमिली लाइफ का, तो कितना भी आपका प्रोफेशन हो, कैसा भी प्रोफेशन हो आप अपने परिवार के लिए समय जरुर निकालें। आपने कहा है कि जिनको ग्यारह-ग्यारह घंटे तक अपने कार्य स्थलों पर रहना पड़ता है वो क्या करें? ग्यारह घंटे आपके कार्य स्थल पर होते हैं तो कम-से-कम ग्यारह मिनट परिवार के लिए अलग से निकालो और ये तय कर लो जिस दिन कार्य दिवस नहीं है, अवकाश के दिन में हम पूरा समय अपने परिवार के साथ बितायेंगे ताकि हफ्ते भर के लिए सबकी बैटरी चार्ज हो जाए। 

और पर्सनल लाइफ, तो पर्सनल लाइफ में भी व्यक्ति अपनी निजता को कभी खंडित न होने दे। अपने स्वास्थ्य का ध्यान रख करके चलें अगर वो आपका व्यवसाय आपके स्वास्थ पर हावी हो रहा है, तो आपको संभलने की जरूरत है। आपके व्यवसाय से आपके मन की शांति खंडित हो रही है, तो आपको जागरूक होने की जरूरत है और आपके व्यवसाय से आपके परिवार का प्रेम नष्ट हो रहा है, तो आपको सजग हो जाने की जरूरत है। 

रिलीजियस लाइफ की जहाँ तक बात है, व्यापार धर्म में कहीं बाधक नहीं बनता। सबसे पहले ये तय करें कि मैं व्यापार में रहते हुए कोई अधर्म नहीं करूँगा, ये भी एक बहुत बड़ा धर्म है। अगर व्यस्तता ज़्यादा है, तो धर्म करने के तरीके में परिवर्तन किया जा सकता है। हम श्रद्धा से पूरे धर्मी बनें, अधर्म का कोई कार्य न करें, अपने आचार-विचार में पवित्रता को हमेशा बरकरार रखने की चेष्टा करें। और आप नित्य अभिषेक-पूजन नहीं कर सकते। एक सज्जन बहुत व्यस्त थे, उन्होंने मुझसे कहा, “महाराज! मेरे घर और ऑफिस के बीच की दूरी एक घंटे की है। मुझे रोज घर से एक घंटा जाने में लगते, एक घंटा आने में लगता हैं और मुझे ९.२५ पर अपने ऑफिस पे पहुँचना जरूरी है। मैं चाह करके भी आपके प्रवचन में नहीं आ पता, सुबह मुझे मॉर्निंग वॉक जरूरी है क्योंकि मुझे डायबीटीज भी है और हार्ट पेशेंट भी हूँ। मॉर्निंग वॉक में मुझे एक घंटा लगता है, मैं योग करता हूँ। करीब १.५ घंटा अपने शरीर के लिए देता हूँ। मेरे पास समय नहीं है कि मैं अभिषेक कर सकूँ, पूजन कर सकूँ, प्रवचन सुन सकूँ, मैं धर्म कैसे करूँ?” मैंने कहा “एकदम कर सकते हो।” बोले, “कैसे कर सकता हूँ?”  “मॉर्निंग वॉक पर जाते हो?” “हाँ” “क्या करते हो?” “गप-सप करते जाता हूँ।” “आज से नियम ले लो, मोर्निंग वॉक मौन से करेंगे और जितनी देर मॉर्निंग वॉक करेंगे एक प्रवचन सुन लेंगे।” उनको बात जँची, उन्होंने मेरे बहुत सारे प्रवचन के टेप मंगाए, अपने मोबाइल में लोड किया। आज भी वो मॉर्निंग वॉक करते हैं, पूरा प्रवचन सुनते हैं। हमने कहा तुम्हें जाप करने की बात है, गाड़ी में बैठते हो, एक घंटा लगता है, मौन ले लो, जितनी देर गाड़ी में रहेंगे, णमोकार जपेंगे। धर्म हो गया कि नहीं हो गया। ठीक है, जैसा धर्म और लोग करते हैं वैसा नहीं कर पा रहें हैं पर ऐसे व्यक्ति को हम ये नहीं कह सकते कि व्यस्तावश धर्म नहीं कर सकता। ध्यान रखना, धर्म क्रिया में नहीं भावना में है। 

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