सात्विक दान कैसे देना चाहिए?

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शंका

जो दान हम ढिंढोरा पीट के या दान पत्र पर लिखकर करते हैं, क्या यह सात्विक दान की श्रेणी में आता है क्योंकि इससे तो एक तरीके से मान कषाय पुष्ट होता है?

समाधान

मैंने इसे अलग-अलग दृष्टिकोण से कहा। अच्छी बात है नेकी कर, कुएँ में डाल, किसी को पता ही नहीं चले, इस हाथ से दो इस हाथ से निकाल दो, ये एक अच्छा दान है, उत्तम दान है। लेकिन कुछ दान ऐसा है जो दूसरों की प्रेरणा में कारण बन जाए, उसे हम सर्वथा गलत नहीं कहेंगे। एक आदमी ने दान दिया, आपने उसके नाम पर अनाउंसमेंट किया, दूसरे ने अनुमोदना की, उसके अनुमोदना से उसके अन्दर भाव हो गए तो ये अन्य आदमियों के दान की प्रेरणा बन गई, ऐसे में उसके नाम की घोषणा गलत कहाँ है? कंसेप्ट को समझिये, मेरा नाम हो इस भाव से आप दान कर रहे हो तो वह राजसिक दान है और कोई दान दे रहा है और आप उसका नाम कर रहे हो तो ये दान की अनुमोदना है। 

आप नाम के लिए दान मत दो और कोई दान देने के बाद नाम लिखता है, तो उसके लिए मना करने की अनिवार्यता नहीं है। मैंने उस सेंस में कहा था कि आज दान दोगे, नाम लिखेगा तो आने वाली पीढ़ियाँ उससे प्रेरणा पाएंगी। इसलिए सब चीजों की अलग-अलग दृष्टिकोण है इसलिए जब कोई वैयक्तिक दान देना हो तो छुपा कर दे दो लेकिन जैसे सामूहिक काम करना हो मान लो एक हॉस्पिटल बनना है, पाँच करोड़ रूपये की जरूरत है। आपने चुपचाप दे दिया पाँच लाख दे दिया, दस लाख दे दिया, लोगों को मालूम नहीं। अपील की गई है एक भी नाम एनाउन्समेंट नहीं हुआ। पता लगा पच्चीस हजार रूपये नहीं आए और दस –बीस लाख लोगों ने दिए उनका नाम बोला, एनाउन्समेंट हुआ, लाइन लग जाएगी। अब बताओ नाम लेना काम का है कि नहीं, उसी हिसाब से देखो। जब सामान्य रूप से दान देना है, तो दान देकर ढिंढोरा मत पीटो। आपने नाम के एनाउंसमेंट के साथ ही दान दे दिया तो बार-बार यह मत बोलो कि मैंने दान दे दिया। दानी को दान देने के बाद दान का नाम नहीं लेना चाहिए और किसी ने दान दिया है, तो उस दानी का नाम समाज को कभी नहीं भुलाना चाहिए। हमेशा याद रखना चाहिए कि इसने दान दिया है, हमारी समाज को आगे बढ़ाने में योगदान दिया। आप दान देकर खुद से अपने दान का बखान करते हो तो आपके दान का मूल्य घट जाता है और दान देने के बाद समाज आपके दान का गुणगान करती है, तो आपका मूल्य बढ़ जाता है।

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