शहरों में पर्याप्त दूरी होने के बाद भी एक परिवार के दो घरों में सूतक-पातक कैसे?

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शंका

शहरों में पर्याप्त दूरी होने के बाद भी एक परिवार के दो घरों में सूतक-पातक कैसे?

समाधान

मुंबई क्या? अमेरिका में कोई आदमी मर जाए तुम्हारे परिवार का, तो मन में तकलीफ़ होती है कि नहीं? दुनिया के किसी कोने में तुम्हारे परिवार का कोई व्यक्ति दुर्घटनाग्रस्त हो जाए, मृत्यु हो जाए तो मन में उसका असर पड़ता है कि नहीं? जब सात समंदर पार मरने वाले या दुर्घटना से ग्रसित होने वाले व्यक्ति का हमारे मन पर असर पड़ता है, तो मुंबई और इंदौर तो बहुत पास है, असर क्यों नहीं पड़ेगा? 

जिन के प्रति हमारा अपनत्व का भाव जुड़ा रहता है उनके साथ घटने वाली घटना हमें प्रभावित करती है। हाँ, प्रश्नकार का यह कहना होगा कि ‘जिन पीढ़ियों से हमें कोई लेना देना नहीं है, उनसे हमें क्या?’ अरे भैया! लेना देना भले न हो, पर अपने खानदान का पता तो तभी लगेगा जब सूतक-पातक मानोगे कि तुम किस खानदान के हो, इसको खत्म कर दोगे तो खानदान ही खत्म हो जाएगा और जब खानदान को भूल जाओगे तो तुम्हारी पहचान खत्म हो जाएगी। अपनी पहचान बनाए रखने के लिए इसको बनाए (maintain) रखना ठीक है।

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