संयुक्त परिवार व्यवस्था को टूटने से कैसे बचाया जा सकता है?

150 150 admin
शंका

भारतीय संस्कृति एवं सामाजिक व्यवस्था की मूल आत्मा-संयुक्त परिवार व्यवस्था-वर्तमान में अपवाद स्वरूप शेष बची है। इस संयुक्त परिवार व्यवस्था को टूटने से कैसे बचाया जा सकता है?

समाधान

बात बिल्कुल सही आपने कही है, एक जमाना था कि लोग जैसे- तैसे साथ रहना चाहते थे, और अब जमाना आ गया जैसे-तैसे अलग होना चाहते हैं। संयुक्त परिवार में भाई-भाई के साथ रहना तो बहुत दूर की बात है लोग माँ-बाप के साथ रहना पसन्द नहीं करते। यह युग की विडम्बना है जिस देश में पूरे विश्व को एक परिवार के रूप में देखने की बात की गई, वसुधैव कुटुम्बकम का संदेश जहाँ से फूटा, आज वहीं कुटुम्ब और परिवार भी बिखरने लगे हैं। बड़ी विडम्बना की बात है। 

निश्चित वे सब परिवार प्रशंसनीय हैं जो आज के दौर में संयुक्त रूप से जी रहे हैं। हालाँकि, बड़ी चुनौतियों का सामना करना पड़ता है। एक सज्जन का बड़ा संयुक्त परिवार जिसमें आज भी ४२ लोग एक थाली में खाते, एक चौके में खाते हैं। उन्होंने कहा कि “महाराज हमारे यहाँ सम्बन्ध की जब बात आई तो शुरुआत में कहा- तुम्हारे यहाँ जॉइंट फैमिली है- जो लड़की देने के लिए थोड़ा सा नहीं सोचते।” यह सोच बदलनी चाहिए, यह अवधारणा बदलनी चाहिए। संयुक्त परिवार तब तक टिका रहेगा जब तक व्यक्ति के ह्रदय में उदारता और सहिष्णुता जैसे गुण हों। हमारा मन उदार होना चाहिए, हम एक दूसरे की बातों को इग्नोर कर सकें। सहिष्णुता की भावना मन में आनी चाहिए। हम जितना बन सके हम सहन कर सकें। यदि यह दोनों गुण होंगे तो कभी परिवार कभी बिखरेगा नहीं।  हमारी कोशिश होनी चाहिए कि किसी भी अर्थ में हम अपने परिवार को बिखरने न दें, इसके लिए जरूरत पड़ने पर हमें कुछ भी त्यागने की जरूरत हो तो त्याग देना चाहिए क्योंकि परिवार सदैव त्याग माँगता है। व्यक्ति यदि केवल अपने स्वार्थों की बातें करेगा तो वह कभी परिवार को एक साथ जोड़ कर नहीं रख सकेगा और उदारता रखते हुए अपने साथ सामने वाले के सुखों का पहले ख्याल रखेगा तो परिवार कभी नहीं बिखर पाएगा। 

मैं आपको एक घटना बताता हूँ। दो भाइयों का परिवार था, दोनों भाई साथ रहते थे और बड़ा प्रेम था। एक दिन बड़े भाई फल लेकर आया और उसके हाथ में फल थे। बड़े भाई और छोटे भाई दोनों के बच्चे आगे आए कि ‘आज बड़े पापा फल लेकर आए।’ पिता ने झोले में हाथ डाला और पहला फल निकाला, छोटा फल था, वह छोटे भाई के बेटे को दे दिया और बड़ा फल अपने बेटे को दिया। पिता ने देख लिया। भोजन की बात आई, पिता ने कहा ‘आज मैं भोजन नहीं करूँगा।’ ‘पिताजी क्या बात हो गई, आज हम लोगों से क्या गलती हो गई? भोजन क्यों नहीं करेंगे?’ ‘आज मुझे बहुत वेदना हो रही है।’  बेटे ने पूछा ‘क्यों?’ बोला – आज इस घर में फूट का बीजारोपण हो गया। ‘पिताजी क्या बात है, किसी से कोई बात नही, विवाद नहीं, किसी भी तरह की कोई बात नहीं, हम लोग एक दूसरे पर जान देते हैं। लेकिन फिर आप कैसे कह रहे हैं?’ ‘इसीलिए तो आज तुमने जब फल निकाला तो पहले छोटा फल निकला, तुमने छोटे के बेटे को दिया, बड़ा फल अपने बेटे को दिया, इसका मतलब तेरे मन में पक्षपात आ गया। तूने अपने और छोटे बेटे के बीच में भेद डाल दिया। आज दोनों बेटों के बीच में भेद हुआ है, कल तुम दोनों भाइयों के बीच में भी भेद हो जाएगा।’  इस भेद को मिटा दें, मानसिकता बदलनी चाहिए, जो सामने आ गया उसे दे देना चाहिए। अगर छोटे का बेटा तो वह भी अपने घर का बेटा, बड़ा का बेटा है, तो वह भी अपने घर का बेटा, ये उदारता अपना कर चलें। एक छोटा सा उदाहरण है लेकिन अगर हम इसके कथ्य को समझना चाहे, इसमें बहुत बहुत सार्थक बातें भरी हुई है। इसलिए हमें इन सब चीजों पर बहुत गम्भीरता से ध्यान रख करके चलना चाहिए और अपने जीवन को किसी भी प्रकार से जोड़ करके चलने की कोशिश करनी चाहिए

हम अपना त्याग कर दें पर सामने वाले का साथ दें तो घर कभी टूटेगा नहीं और केवल अपने-अपने हितों की बात रखेंगे तो घर ज़्यादा दिन तक बन्ध नहीं सकेगा। सभी से मैं यह कहना चाहता हूँ- उदारता को अपनाइये, सहिष्णुता का उदाहरण प्रस्तुत कीजिए, एक दूसरे के प्रति प्रेम और आत्मीयता पूर्ण सम्बन्ध बनाइए और यदि हमसे छोटा या बड़ा कुछ भी अच्छा करता है, तो उसकी प्रशंसा करने की आदत डालिए, प्रशंसा कीजिए। आज घर-परिवार में बिखराव का एक कारण यह भी आता है कि कोई काम अच्छा काम करता है, दुनिया उसकी प्रशंसा करती है और घर के लोग उसको देख कर मुँह बनाते हैं। ईर्ष्या कर लेते हैं, ईर्ष्या मिट जाएगी। यदि हम प्रशंसा करना शुरू कर दें तो, कोई छोटा हो या बड़ा उसमें कोई भी अच्छाई हो, हम जी भर कर के प्रशंसा करें, परिणाम निश्चित अनुकूल आयेंगे।

Share

Leave a Reply