हम बुजु़र्ग धर्म कैसे करें?
बचपन ज्ञानार्जन के लिए, जवानी धनार्जन के लिए और बुढ़ापा पुण्यार्जन के लिए सुरक्षित रख लो। अब बुढ़ापे में क्या करो? घर गृहस्थी का मोह कम करो, व्यापार धंधे से अपने आपको बचाओ और जो जिंदगी भर में कमाई की है, उसको परमार्थ के कार्य में लगाओ, धर्म ध्यान में लगो, साधु सन्तों में लगो, औरंगाबाद छोड़कर सम्मेद शिखर में ज़्यादा रहो। अपना जीवन धार्मिक कार्यों में लगाओ पारमार्थिक कार्यों में लगाओ और जितना बन सके व्रत संयम को अंगीकार करो।
जो ६० पार कर चुके हैं उनके जीवन में संयम कुछ विशिष्ट होना चाहिए, सबसे पहले रात्रि में चारों प्रकार के आहार का त्याग करो। अब तो अस्सी-अस्सी साल के लोग हो जाते हैं और रात में फलाहार चलता रहता है। वो फलाहार नहीं होता, ‘फुल’ आहार होता है। फिर दिन में जितना बन सके, अपने आपको संयमी बनाओ, अभ्यास करो। अभक्ष पदार्थों का त्याग करो, जीवन को सात्विकता से बिताओ, २४ घण्टों में से कम से कम ८ घण्टा धर्म ध्यान के लिए लगाओ और रोज यही भावना भाओ ‘मेरा अन्त समाधि मरण पूर्वक हो। गुरू चरणों में हो। मुझे अस्पताल में आहें भरते हुये मरना न पड़े। मैं गुरू चरणों में नमोकार जपते हुए मरूं, यह शरीर छोड़ूं’; ऐसी भावना भाओ, बुढ़ापे में यही एक रास्ता है। यदि इस रास्ते को पकड़ लोगे तो बुढ़ापा वरदान बन जायेगा और इस रास्ते को छोड़ दोगे तो पता नहीं क्या होगा इसलिए इस रास्ते को छोड़ना नहीं है, पकड़ना है।
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