नवदम्पत्ति सामंजस्य कैसे बैठायें?

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शंका

आजकल नवदम्पत्तियों में प्रायः सामंजस्य कम दिखता है, तो इसे कैसे ठीक किया जायें?

समाधान

सामंजस्य का अर्थ होता है “Adjustment”। यदि लोग एक दूसरे को एडजस्ट करें तो कभी सामंजस्य की समस्या आयेगी ही नहीं। Adjustment करने से सामंजस्य होता है और टकराव के कारण सामंजस्य टूट जाता है। सबसे बड़ा कारण है टकराव, और टकराव का मूल कारण है अहं (Ego) जब रिश्तों के बीच ego आ जाता है, तो मधुरता खत्म हो जाती है। सन्त कहते हैं कि अपने अहम को उस सीमा पर रोक देना चाहिए जहाँ रिश्तों में कटुता आने लगे। लेकिन लोग आजकल अपना अहं ज्यादा पुष्ट करने लगे हैं। 

पति और पत्नी के बीच जब अहंकारपूर्ण टकराव होता है, तो बड़ी विचित्र स्थिति बन जाती है। कई-कई बार तो हंसने लायक स्थिति बन जाती है। उस अहंकार को ख़त्म करने की कोशिश करनी चाहिए। आपस का रिश्ता नितान्त भावनात्मक होता है। भावनाओं के बीच जब एक दूसरे के भावनाओं की उपेक्षा होती है तब उसमें अहं पर चोट पहुँचती है। किसी बात को अपने अहम का मुद्दा बना लिया जाता है। बड़ी विषम स्थिति हो जाती है। अहंकारी दुःखी होने के लिए तैयार है, लेकिन झुकने के लिए तैयार नहीं होता है। हम किसी से कम नहीं यह भावना गड़बड़ पैदा करती है। आपस में समन्वय हो, आत्मीयता की भावना हो, और एक दूसरे के लिए त्याग करने का भाव हो तो आपस में कभी टकराव नहीं आ सकता। 

मैं यही कहना चाहूँगा कि जब भी जीवन में टकराव आये तो टकराव को टालकर समझौते की मानसिकता अपनायें। टकराव का परिणाम बहुत बुरा है और समझौते का परिणाम बहुत अच्छा। एक दम्पत्ति मेरे पास आये। शादी हुए यही कोई तीन वर्ष हुए थे। और तीन वर्ष में ही दोनों के बीच दूरी हो गई थी। दोनों ने एक दूसरे से हमेशा के लिए सम्बन्ध विच्छेद करने का मन बना लिया था। तलाक की तैयारी दोनों ओर से थी। दोनों परिवार बड़े धार्मिक परिवार थे। लड़के और लड़की के इस निर्णय से दोनों परिवार भीतर से दुःख थे। झगड़े में परिवार का कहीं कोई रोल नहीं था। दोनों का टकराव आपसी था। लड़की का भाई मुझसे जुड़ा और लड़के का पूरा परिवार मुझसे जुड़ा हुआ था। लड़की के भाई ने मुझसे अपनी व्यथा कही, कि ‘ऐसी स्थिति हो रही है, मेरी बहन अलग होना चाहती है और उन दोनों में बात बन नहीं रही। पिछले ढाई महीने से घर पर है। कुछ समझ में नहीं आता महाराज जी! कोई मार्ग दर्शन दीजिए जिससे वह लड़की अपनी ससुराल में रह ले।’ मैंने बात-चीत की। मैंने कहा कि “कोई मन्त्र-तंत्र से काम नहीं होगा इनको कोई अच्छा मोटीवेशन मिले, काउन्सेलिंग (समुपदेशन) करे।” बोले ‘महाराज! वह किसी की सुनना नहीं चाहती है।’ मैं उस लड़की को जानता था वह धार्मिक थी। मैंने सोचा कि यही एक नस है, इसको दबा के काम किया जा सकता है। 

बिना बात का झगड़ा कैसे खड़ा होता है ये मैं आपको बताता हूँ आप इसी से समझ जाओगे कि कितने पागलपन की बात है और टकराव को टालना कितना आसान है! व्यक्ति यदि टकराव को टाल दे तो जीवन में समरसता और आनन्द की सीमा नहीं! मैंने लड़की को बुलवाया और अकेले में पूछा, कि मैंने सुना है कि तुमने अपने पति से अलग रहने का फैसला कर लिया है। उसने कहा कि ‘महाराज! आप ने ठीक सुना है मैं उसके साथ नहीं रह सकती।’ मैंने कहा कि ‘क्यों नहीं रह सकती?’ तो उसने कहा कि ‘मुझे अकेले रहना है।’ मैंने कहा कि “तुमने अकेले रहने का फैसला अभी किया कि पहले से था?” उसने कहा कि ‘अभी किया।’ मैंने कहा कि “तुम को अकेले रहना था तो तुमने शादी ही क्यों की?” उसने कहा कि ‘शादी के बाद समझ आया कि अकेले रहना ही ठीक है।’ मैंने कहा कि “तुम अकेली रहना क्यों चाहती हो?” ‘मेरी कोई बात नहीं मानता है।’ मैंने कहा कि “क्या नहीं मानता?” उसने कहा कि ‘मैं कुछ भी कहूँ तो वह न कर देता है।’ मैंने कहा “कौन-कौन सी बात नहीं मानता है?” उसने कहा -‘मैं कहूँ कि मुझे घूमने जाना है। आज कहूँगी तो अगले सण्डे ले जायेगा। कहीं होटल में नहीं ले जाता। घर में बांध कर रखता हैं।’ मैंने पूछा “और कभी उसने तुम्हारी भावना को आहत तो नहीं किया?” ‘नहीं बाकी बातों में तो ठीक है। मुझे ऐसा लगता है कि मैं छोटे गाँव से बड़े शहर में गयी हूँ तो घूमूं-फिरूँ और आनन्द लूँ। आज मेरे साथ की जितनी भी लड़कियाँ है वे बहुत एक्टिव लगती हैं, तो मुझे अच्छा नहीं लगता। मैं भी चाहती हूँ कि उसी तरीके से रहूँ।’ हमने कहा कि “तुम्हारी आवश्यकता की पूर्ति करता है?” तो उसने कहा कि ‘उसमें कोई कमी नहीं है।’ “घर में तुम को कोई काम करना पड़ता है?” ‘वैसे कोई बात नहीं है।’ “कभी तुमसे ऊँचे शब्दों में बोलता है?”  बोली कि ‘उसमें भी कुछ नहीं बोलता।’ तो मैंने कहा “तुम क्यों बोलती हो कि मेरी बात नहीं मानता?” वो बोली, ‘मैं बोलती हूँ तो वह सुन कर रह जाता है और बोलता है कि ‘नहीं हम नहीं करेंगे!’, और इसके अलावा कुछ नहीं कहता।’ “इतनी सी बात पर तुम उससे अलग होने को तैयार हो गयी?” मैंने कहा कि “अलग रहने में तुम्हें ज्यादा आनन्द आयेगा या घूमने-फिरने में तुम्हें ज्यादा आनन्द आयेगा? घूमने फिरने में क्या हो जायेगा? घूमने-फिरने में ऐसा क्या आनन्द है जिसके लिए तुम अपने पति को छोड़ने के लिए तैयार हो गई। मुझे बात तो समझ में नहीं आती।” 

मैंने उसे समझाया कि पति, पति होता है एक बार जिसे स्वीकार कर लिया उसे बदला नहीं जाता है। तुम अलग होकर के किसी दूसरे आदमी के साथ जुड़ोगी तो वह बात धर्म की दृष्टि से कतई सम्मत नहीं है। तुम किसी कार्य के लायक नहीं रहोगी। धार्मिक क्षेत्र में हमेशा पिछड़ जाओगी। न तो आहार दे पाओगी न कुछ कर पाओगी। लेकिन ये बताओ कि तुम्हारा कितना सौभाग्य है कि तुम्हारी कुछ बातों को ही वह टालता है। तुमसे लड़ता नहीं, भिड़ता नहीं, कभी तुम्हें जोर ज़बरदस्ती करता नहीं। फिर तुम को क्या दिक्कत? ‘नहीं महाराज! थोड़ा तो सुनना चाहिए न?’ हम बोले “तुम कहती हो कि चाहिए इससे पहले एक बात का उत्तर दो तुम अपने पति से जितनी अपेक्षायें रखती हो तुम्हारा पति भी तुमसे अपेक्षायें रखता होगा। उसके दर्द और पीड़ा को कभी सुना।” ‘हम क्यों सुने?, वो शादी करके लेकर आया है वो हमारी ज़िम्मेदारी निभाये।’ मैंने उसको समझाया और मैंने पति से पूछा कि ऐसा क्या हुआ कि तुम इससे अलग होना चाहते हो उसने कहा कि ‘महाराज जी! जब भी मैं ऑफिस से घर आता हूँ तो कभी ये नहीं पूछती कि पानी पीओ, थक कर घर आता हूँ, सीधा बोलती है आज यहाँ चलो तो आज वहाँ चलो। जब मैं ऑफ़िस से घर आता हूँ तो बड़ा डर सा लगता है। मैंने सुना है कि वह अलग होना चाहती है। तो अच्छा है मेरा पिंड छूट जायेगा। 

बिना मतलब की बातें आपस में खींचतान का कारण बन जाती है। दाम्पत्य जीवन की मधुरता के लिए कुछ सूत्र दे रहा हूँ- पहली बात-एक दूसरे के पूरक और प्रेरक बन कर चलें। अहम को अपने किसी रिश्ते के बीच न आने दें। कभी भी कोई भी बात हो तो एक नरम हो जायें। मामला ठीक हो जाये। झुक कर के चलना सीखें। प्रकृति की दृष्टि से पुरुष और स्त्री की प्रकृति में अन्तर होता है। पुरुष जो होता है वह बुद्धि प्रधान होता है। और स्त्री भावना प्रधान होती है। पुरुष का अहं जल्दी आहत होता है। स्त्रियाँ जितनी सहनशील हो सकती है पुरुष उतना नहीं हो सकता है। स्त्री और पुरुष के सम्बन्ध लता और स्तम्भ की तरह होना चाहिए। लता जब स्तम्भ से लिपटती है वह जितनी लिपटती है उसका उत्कर्ष उतना ही ज्यादा होता जाता है। और लता लिपटने से खम्भे की शोभा भी बढ़ जाती है। पुरुष स्तम्भ है और स्त्री लता। लता बनकर रहो, अपना उत्कर्ष करो। बिना आलम्बन के लता नष्ट-भ्रष्ट हो जाती है। खम्भे को पकड़ने वाली लता आसमान छूती है। और आलम्बन के अभाव में मिट्टी, पानी में सड़-गल कर नष्ट-भ्रष्ट हो जाती है। स्त्री को प्रकृति कहती है कि एक आलम्बन लें और थोड़ा सहन करें, उदार बनें। एक स्त्री जो कुछ भी पा सकती है सहन कर के ही पा सकती है। स्त्री में ये सारे गुण हैं; स्त्री को क्षमा कहा गया। स्त्री क्षमा और सहनशीलता की प्रतीक है। जितने भी अच्छे गुण हैं वह स्त्री में हैं। चाहे क्षमा हो, चाहे करूणा हो, ममता, या फिर आत्मीयता हो ये सारे गुण स्त्री में हैं। और स्त्रियों में ये सारे गुण उभरने भी चाहिए। थोड़ा सामंजस्य बनाकर चलने की कोशिश करें तो सारे काम हो जाएंगे। 

हालाँकि, मैं ये भी कहता हूँ कि ऐसा न हो कि पुरुष स्त्रियों को हमेशा दबाने की कोशिश करें। एक दूसरे के पूरक और प्रेरक बनकर चलें। एक दूसरे के जीवन साथी हैं, मिलजुल कर चलें तो जीवन में ये समस्याएँ आयेंगी ही नहीं। आज तो ऐसी स्थिति बन गई है कि दोनों एक दूसरे से कभी न मिलने वाली रेल की पटरियों की तरह है। बच्चे स्लीपर बन कर दोनों को जोड़े हुए है नहीं तो दोनों कब के अलग हो गये होते। गिरधर कवि की कुछ पंक्तियाँ थी जो आज मुझे याद आ गयी मैं आपको सुनाता हूँ, दोनों के बीच सामंजस्य बनाकर चलने के लिए ये बहुत ही सार्थक पंक्तियाँ हैं।

जीवन गाड़ी ज्ञान धुरी, पहिये दो नर नारी, 

सुखभूमि तय करन हेतु तुम रहो इन्हें सम्हारी। 

रहे लगे न ऊँचे-नीचे, दोनों सम जब होय चलो तब आँखें मींचे। 

कह गिरधर कविराय सुनो सब धारो निज मन। 

या विधि हो नर-नारी, सफल तब निश्चित जीवन।

बस दोनों पहिये हो जीवन में आनन्द ही आनन्द होगा और जहाँ समानता टूटती है तब जीवन में सदैव तकलीफें होंगी और परेशानियाँ होंगी।

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