नवविवाहित अपने धर्म-परिवार-व्यापार को कैसे मैनेज करें?

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शंका

जो newly married (नव-विवाहित) होते हैं उनको शुरुआत में थोड़ी difficulty (कठिनाई) आती है कि वे अपना धर्म-फैमिली-व्यापार कैसे मैनेज करें?

समाधान

जो नव-विवाहित होते हैं उनमें प्रारम्भिक अवस्था में एक अलग प्रकार की खुमारी होती है। विवाह होना बहुत अच्छी मांगलिक क्रिया का संपन्न होना है। अगर व्यक्ति विवाह के उद्देश्य को अपने सामने रख कर चले तो उसके सामने यह प्रश्न ही नहीं उठेगा। तुमने विवाह किया; तुम से सवाल पूछता हूँ, जवाब दो, विवाह क्यों किया? “एक से दो होने के लिए।” एक से दो होने के लिए, दो से चार होने के लिए… बहुत सही उत्तर दिया है, इसमें अधिकतर लोग यही समझते हैं कि एक से दो होने के लिए लोग विवाह करते हैं। विवाह का यह उद्देश्य नहीं। 

विवाह के तीन उद्देश्य बताये गए हैं। पहला-धर्म संपत्ति; दूसरा-प्रजा उत्पत्ति; और तीसरा- रति। धर्म सम्पत्ति यानि विवाह के बन्धन में बन्धने के उपरान्त जितना बन सके धर्म से जुड़ें और धर्म से जोड़ने की बात धार्मिक क्रियाओं से तो बाद में होती है, जिस दिन स्त्री पुरुष विवाह के बन्धन में बन्ध जाते हैं उसी दिन उनकी दृष्टि एक दूसरे के अलावा संसार की हर स्त्री के प्रति माँ, बहन और बेटी जैसी और हर पुरुष के प्रति पिता, भाई और पुत्र जैसी पवित्र हो जाती है। इसी धर्म मर्यादा की प्राप्ति का नाम विवाह है। इसलिए भारतीय परम्परा में विवाह को मैरिज नहीं धर्म विवाह कहा है। इससे धर्म की प्राप्ति होती है। धर्म पुरुषार्थ की शुरुआत विवाह से होती है। तो तुमने विवाह किया धर्म के लिए किया। तुम्हारा धर्म विवाह हुआ, विवाह के उपरान्त तुम्हारी पत्नी पत्नी नहीं, धर्मपत्नी बनी, सह धर्मणी बनी। धर्म करो, विवाह करने के बाद धर्म को गौण मत करना, ‘वह तो मेरे जीवन की धुरी है।’

प्रजा उत्पत्ति, अपनी सन्तति को बढ़ाने के लिए प्रजा उत्पत्ति और इसी में उसकी अपनी जो पारिवारिक और सामाजिक दायित्त्व है उनका वो अच्छे तरीके से निर्वाह करें। 

मौज मस्ती तीसरे नंबर पर। उसे बहुत ज़्यादा प्रमुखता न दें क्योंकि पूरा जीवन अब इसी में है पर हमारा उद्देश्य विषय भोगों के कीचड़ में फंसने का नहीं है अपितु विषय के कीच में रहते हुए भी कमल की तरह उससे अलिप्त होकर जीने का अभ्यास बनाने का है। 

यह दृष्टि अगर तुम रखोगे तो बहुत सामंजस्य बनेगा इसलिए अगर कोई भी जो भी नवविवाहित दम्पति हैं उनके लिए कुछ टिप्स देना चाहता हूँ। सबसे पहली बात तो वे एक दूसरे के पूरक और प्रेरक बनकर के जिए। दूसरी बात परिवार के प्रति अपनी जवाबदेहिओं को किसी भी प्रकार से कम न करें। तीसरी बात अपने कुलाचार की मर्यादा का किसी भी तरीके से उल्लंघन न करें। चौथी बात घर के बड़े जनों का बहु-मान और सम्मान रखें। पांचवी बात एक दूसरे की भावनाओं पर पूर्ण ध्यान दें। यदि ये करेंगे मैं समझता हूँ ऐसी कोई समस्या खड़ी नहीं होगी।

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