जैन अपनी अलग पहचान कैसे बनाएं?

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शंका

दुनिया के हज़ार आदमियों के बीच में एक सरदार खड़ा होता है उसकी एक अलग ही पहचान होती है। उसी सन्दर्भ में जैन समाज की भी एक विशेष पहचान होनी चाहिए जिससे उन्हें दुनिया को बताने की जरूरत न पड़े कि ‘वह जैन है’। महाराज श्री इसके लिए हमें क्या करना चाहिये?

समाधान

जैनियों की पहचान थी पर यह विडम्बना है कि उन्होंने उसे खो दिया। मैं आपको एक घटना सुनाता हूँ, चीनी यात्री वेन शांग जब भारत आया, तब उसने वैशाली का भ्रमण किया और उसने अपनी यात्रा कथा में लिखा कि ‘मैंने यहाँ भारी संख्या में निर्गंथों को देखा’-उस समय जैन मुनि को निर्गंथ कहा जाता था और जैन धर्म निर्गंथ धर्म कहलाता था। उसने लिखा ‘उन सभी की समाज में अत्यधिक प्रतिष्ठा थी। उनकी दिनचर्या सूर्योदय से प्रारम्भ होती थी और सूर्यास्त पर खत्म हो जाती थी’। वे और कोई नहीं, वे जैन थे, यह उनकी पहचान थी। 

आज आधुनिकता की ओट में जैनियों ने इस पहचान को खो दिया है। ऐसा कहा जाता है कि, ‘जैन अगर प्रातः देवदर्शन, पानी को छान कर पीना और सूर्यास्त से पहले अपना भोजन, बस इतना कर ले तो आदमी के जैन होने का प्रमाण प्रकट हो जाएगा’। लोगों को चाहिए कि वो इसको अपनायें जो कि एक वैज्ञानिक तत्त्व है और दूसरों के लिए प्रेरणा के स्रोत बनने का प्रयास करें।

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