मन्दिर का द्वार कितना बड़ा हो?

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शंका

मन्दिर का द्वार कितना बड़ा हो?

समाधान

हमारे मन्दिरों में द्वार मान का अपना एक विधान है। जब आप मन्दिर के शास्त्र को पढ़ेंगे तो जानेंगे कि जब भी मन्दिर का निर्माण होता है, तो उसमें उसके द्वार के मान का विधान होता है और द्वार प्रतिमा के size (परिमाप) के अनुसार होता है। उसका एक दृष्टि का Point Fix (सुनिश्चित बिन्दु) होता है उस Point (बिन्दु) पर ही दृष्टि होनी चाहिए अगर उस से छोटी है, तो दृष्टि भेद होता है उससे ज्यादा बड़ी है, तो दृष्टि भेद होता है। 

पुराने समय के अनेक ऐसे मन्दिर है जिसमें द्वार भेद हैं। बड़ी बड़ी उतंग प्रतिमा है; जैसे थूबोन जी जैसी जगह में मन्दिरों में जाकर देखें तो भगवान की दृष्टि बाहर ही नहीं आती, भगवान की Height (लंबाई) १८ फीट की, दरवाज़ा ५ फीट का, यह एक दोष है, बहुत बड़ा दोष है, तो फिर ऐसा क्यों? मेरे विचानुसार ऐसा निर्माण एक परिस्थिति के कारण हुआ। एक समय था जब मूर्तिभंजकों का ज़बरदस्त आतंक था। वो जगह-जगह जाकर प्रतिमाओं को तोड़-फोड़ डालते थे। हो सकता है उसे बचाने के लिये दरवाज़े छोटे रखें हो ताकि आततायी आक्रमणकारी से आसानी से बचा सकें। हमारे श्रीजी सुरक्षित रहें। इस दृष्टि से छोटे रखे हों। अति छोटे द्वार का होना अशास्त्रीय है और बहुत बड़ा होना भी आगम के अनुरूप नहीं है। द्वार का जो मान है, दृष्टि का जो मान है उसी विधान के अनुसार होना चाहिए, इसमें हीनाधिकता करना ठीक बात नहीं है।

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