भगवान का नाम लेने से कटते हैं कर्म?

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शंका

भगवान का नाम लेने से कटते हैं कर्म?

समाधान

एक बार मुझसे एक लड़के ने सवाल किया; बोला-“महाराज, हमें एक बात समझ में नहीं आती। आप लोग कहते हैं पूजा-पाठ करो, मंत्र जपो, उससे कर्म कैसे कटेगा? इसका LOGIC (तर्क) क्या है?” यही आपका भी सवाल है। मैंने कहा,- यह सवाल आज से ५० वर्ष पहले पूछा गया होता तो शायद उसका उतना युक्ति युक्त उत्तर नहीं होता। लेकिन तू आज पूछ रहा है, तो मैं तुझे उत्तर दे रहा हूँ। उसे जो उत्तर दिया, मैं आपके प्रश्न के माध्यम से आज सबको बताना चाह रहा हूँ और वह इसलिए भी प्रासंगिक है कि आज सिद्धचक्र की आराधना है; यह मंत्र, जाप और पूजा-पाठ की आराधना है जो हमारे जीवन में बदलाव लाती है।

हम जब अपने मुख से कोई शब्द उच्चारित करते हैं, तो हमारे मुख से उच्चारित होने वाले शब्दों की ध्वनि का वैज्ञानिक प्रभाव पड़ता है। उस ध्वनि के प्रभाव से जो ध्वनि की तरंगे उत्पन्न होती हैं, वह हमारे मस्तिष्क की अल्फा तरंगों को सक्रिय करती हैं और उसके प्रभाव से हमारी पिट्यूटरी ग्रंथि और एड्रिनल ग्रंथि, जो अंतःस्रावी ग्रंथियाँ हैं, इनके स्रावों में परिवर्तन होता है। उनके परिवर्तन से हमारे मन में एक अलग प्रकार का अहो भाव होता है जिसे हम कह सकते हैं-भाव विशुद्धि!, जब भाव विशुद्धि होगी तो कर्म अपने आप गलेंगे। 

रूस में दो वैज्ञानिकों ने खोज की, लगभग आज से ४० वर्ष पहले, उन्होंने पानी पर प्रयोग किया, इसे थोड़ा गंभीरता से समझना, मैं कुछ विस्तार से बोलूँगा। उन्होंने पानी पर प्रयोग किया, ३ तरह का पानी, एक साधारण जल, एक सकारात्मक भावनाओं से भरे हुए व्यक्ति के हाथ का जल और तीसरा नकारात्मक भाव से भरे हुए व्यक्ति के हाथ का जल। साधारण जल को पौधों पर सींचा गया, पौधों की वृद्धि दर सामान्य रही। सकारात्मक भावनाओं से भरे हुए व्यक्ति के हाथ का जल जब पौधों पर सींचा गया तो पौधों में दो सौ पर्सेंट(200%) ग्रोथ हुई, और नकारात्मक भावनाओं से भरे हुए व्यक्ति के हाथ के जल को जब पेड़ पौधों पर सींचा गया तो उस पानी ने उनके लिए एसिड का काम कर दिया, पौधे जलने लगे। एक लंबे प्रयोग के बाद यह निष्कर्ष निकला कि मनुष्य की भावनाओं का बड़ा प्रभाव पड़ता है। 

पानी को अगर दुनिया के किसी लेबोरेटरी में चेक कराए तो कुछ नहीं निकलेगा, क्योंकि CHEMICALLY (रासायनिक) कोई चेंज नहीं था, कोई परिवर्तन नहीं था; लेकिन जो उसमें परिवर्तन था, वह गुणात्मक था, यह प्रभाव था। यह प्रयोग हमारी भावनाओं का था। तो जब हम व्यक्तिगत रूप से मंत्र जाप करते हैं, पूजा पाठ करते हैं, प्रार्थना करते हैं, तो उसकी भाव तरंगों का प्रभाव हम पर भी पड़ता है और बाहर भी पड़ता है। 

मेरे संपर्क में एक व्यक्ति ने यह प्रयोग किया कि मन्त्रित जल का प्रयोग रोगियों पर किया। उनकी रिकवरी बहुत FAST(तेज़) हुई। अमेरिका में हार्वर्ड यूनिवर्सिटी में एक रिसर्च हुआ। १०-१० रोगियों के तीन समूह को अलग-अलग स्थान पर रखा गया। दस के लिए प्रार्थना की गईं, दस के लिए नकारात्मक भावना भायी गईं और दस का सामान्य इलाज किया गया। जिनके लिए प्रार्थना की गईं, उनके रोग की रिकवरी बहुत FAST(तेज़) हुई, जिनके लिए नकारात्मक भावना भायी गईं, उनकी बीमारी और बढ़ गयी और जिनका नॉर्मल ट्रीटमेंट था उनकी रिकवरी सामान्य रही। सबसे चौंकाने वाली बात यह थी कि जो लोग प्रार्थना कर रहे थे उन्हें यह पता नहीं था कि हम किसके लिए प्रार्थना कर रहे हैं और जिनके लिए प्रार्थना की जा रही थी उन्हें भी यह नहीं पता था कि हमारे लिए कोई प्रार्थना कर रहा है। लेकिन उनके द्वारा छोड़े जाने वाले इन शुभ विचारों की तरंगों का यह चमत्कार था कि उन लोगों पर ऐसा असर पड़ा। यह १० साल पुरानी बात बता रहा हूँ, जो रिपोर्ट मैंने पढ़ी, इसका यह परिणाम हुआ कि अमेरिका में उस समय १२५ मेडिकल यूनिवर्सिटी में से ८५ में प्रार्थना को रखा गया। अब तो डॉक्टर भी अपने प्रिसक्रिप्शन के साथ प्रार्थना लिखने लगे, तो यह प्रभाव है, इसका असर पड़ता है। हम इन्हें समझे तो इससे भावनात्मक प्रभाव पड़ता है, ध्वनि वैज्ञानिक असर पड़ता है। इसलिए जब कभी भी मंत्र जाप आदि का काम हो हमें इनका प्रयोग करना चाहिए।

इसमें भी एक विशेष बात, हम व्यक्तिगत रुप से जब कोई पूजा पाठ करते हैं, तब और सामूहिक रूप से करते हैं, तब कई गुना अंतर हो जाता है। हम जब व्यक्तिगत रूप से करते हैं तो हो सकता हमारे भावों की FREQUENCY (आवृत्ति) उतनी अधिक ना हो। पर ऐसे जब सामूहिक रूप से करते हैं, तो उसका प्रभाव और अधिक होता है, पूरे वातावरण को बदलने में वह कारण बन सकता है। तो उससे हमारे कर्म कटते हैं। हमारे स्वास्थ्य के लिए भी वह सहायक बन सकता है। स्वास्थ्य की शुद्धि में भी वह एक अच्छा निमित्त बनता है। हमें इन दोनों बातों को ध्यान में रखकर के चलना चाहिए।

आपने पूछा है भगवान का नाम लेने से कर्म कैसे कटते हैं? भगवान का नाम लेने से विशुद्धि बढ़ती है कि नहीं, आप बोलो। भगवान का नाम छोड़ो, आप अपने किसी प्रिय व्यक्ति का नाम लेते हो; तब के भावों में और किसी दुश्मन का नाम लेते हो; तो तब के भावों में एकरूपता रहती है क्या? किसी प्रिय से बात करते समय भाव अलग होता है और दुश्मन से बात करते समय अलग भाव होता है। और छोड़ो, अपनी माँ से बात करते समय और माँ के समवयस्क किसी दूसरी स्त्री से बात करते समय, दोनों को माँ बोल रहें हैं, माता बोल रहे हैं, फिर भी अंतर आता है, यह तो अनुभव है। अपनी माँ से माँ बोलोगे और माँ के समवयस्क दूसरी स्त्री के साथ माँ बोलोगे तो दोनों में भावों में अंतर आता है, क्यों? इसका मतलब शब्दों से हमारे भावों का संबंध है, टोन में भी अंतर आ जाता है। तो जब हम मंत्र जपते है, भगवान का नाम लेकर के करते हैं, हमारे ह्रदय में भावों की विशुद्धि बढ़ती है, हमारे कर्म क्यों नहीं कटेंगे, कटना ही पड़ेगा! इससे हमारे कर्म कटते हैं और उसी के अनुरूप हम आगे बढ़ सकते हैं, इसलिए खूब विशुद्धि बढ़ाइए, सारे कर्म काट लीजिए, जीवन धन्य होगा!

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