तमिलनाडु में जैन धर्म का इतिहास!

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शंका

आपके चातुर्मास के बाद अचानक विहार से हम लोग काफी क्षुब्ध हो गए कि कहीं हमसे कोई गलती तो नहीं हो गई? यह परिसर काफी प्राचीन है और आपके यहाँ पधारने से हमें ये विश्वास है कि इस क्षेत्र का विस्तार होगा।
एक स्कॉलर ने तमिलनाडू में 540 जैन स्थानों को चिह्नित किया है जहाँ जैन मूर्तियाँ या जैन अवशेष हैं। तमिलनाडू में शायद बाहर से गये जैनियों को मिलाकर भी 5000 जैनी भी नहीं होंगे। जब इतने स्थान वहाँ है, तो जनसंख्या भी बहुत रही होगी। इतिहास में कोई ऐसा प्रमाण नहीं मिलता कि जैनियों पर कोई नरसंहार हुआ हो या उनका conversion (धर्म परिवर्तन) किया गया हो, तो अतीत में ऐसा क्या हुआ?

समाधान

जीवन में जो भी अच्छा घटित होता है वह अचानक ही घटित होता है। जन्म–मरण का भी कोई समय नहीं होता, विहार का भी। साधुओं के आवागमन के कार्यक्रम उनके अपने अनुकूल होते हैं। हम लोग छोटी-मोटी कोई बात को जल्दी से नोटिस में लेते नहीं और किसी बात से नाराज हो कर के कोई प्रतिक्रिया करते नहीं। जहाँ तक नाराज होने की बात है नाराज होने का तो प्रश्न ही नहीं है। आपने और आपकी कमेटी ने इतनी उत्तम व्यवस्था दी है कि कहीं किसी तरीके से हम क्या आने वाले लोग भी नाराज नहीं हुए, आपने तो पूरे देश को राजी कर लिया। यहाँ के क्षेत्र का विकास बहुत अच्छा है। लोगों को अपनी तीर्थयात्रा के क्रम में जयपुर के लिए 5-7 दिन अलग से निकालना चाहिए। पूरे देश से लोगों को यहाँ के सब क्षेत्रों के आकर के दर्शन करने चाहिए। देखें कि उस समय के लोगों की भावना कितनी पवित्र थी, कैसे-कैसे लोगों ने अपने धर्म का सदुपयोग किया। आजू-बाजू में, अगल-बगल में मन्दिर बनाने के पीछे का प्रयोजन क्या रहा होगा? क्या भावना रही होगी कि हम घर बनाएँगे या अन्य प्रतिष्ठान बनाएँगे वहाँ पाप होगा, एक मन्दिर ही ऐसा आयतन है जहाँ केवल पुण्य होता और कुछ नहीं होता। इसी भावना और विश्वास के साथ लोगों ने मन्दिरों को बनाया होगा। जब मैं कोलकाता में था, तो वहाँ दुर्गाप्रसाद पोद्दार, एक बड़े चार्टर्ड अकाउंटेंट अग्रवाल जैन थे, उन्होंने बताया कि महाराज जी हमारे दादा जी ने पुरानी बाड़ी का मन्दिर बनाया। क्यों बनाया? उन्होंने जब अपना घर बनाया तो सोचा घर बनाने में घोर हिंसा हुई है, इस हिंसा का प्रायश्चित्त भगवान का मन्दिर बना करके किया जा सकता है और उन्होंने मन्दिर बना दिया। जयपुर के लोग भी ऐसे धर्मनिष्ठ रहे होंगे तभी इतने विशाल-विशाल मन्दिर, इतने नजदीक-नजदीक में उन लोगों ने बनाया। बहुत अच्छा है, आप लोग इसका बहुत अच्छा रखरखाव कर रहे हैं, इसे देख करके बहुत अच्छा लगा। 

लेकिन कुछ मन्दिर हैं जिनकी स्थिति ठीक नहीं है। एक पहल की जाए, महावीरजी क्षेत्र कमेटी अगर इस पहल को आगे बढ़ाए तो बहुत अच्छा, एक अनुकरणीय उदाहरण होगा कि अपने फंड से मन्दिरों के जीर्णोद्धार के लिए भी कुछ फंड निकालना शुरू करें क्योंकि भगवान का मन्दिर तो सब एक है, जिस भी मन्दिर में आपको लगे जैसे संघीजी की नसिया की छत तो कभी भी गिर सकती है। टॉप प्रायरिटी पर उसके जीर्णोद्धार की आवश्यकता है, आप लोग उसमें सहयोग दें। जयपुर के लोग सहयोग दें, बाहर के लोग सहयोग दें, यह परम्परा चलनी चाहिए। जिस भी मन्दिर, ट्रस्ट कमेटी के पास सरप्लस पैसा है उन्हें चाहिए कि अन्य मन्दिरों के जीर्णोधार में उस द्रव्य को लगाएँ। इसका सारा श्रेय उन ट्रस्टियों और प्रबन्ध से जुड़े लोगों को जाएगा जो उसका पूरा का पूरा सदुपयोग करेंगे।

तमिलनाडू जैनियों का एक गढ़ था। आज भी तमिल साहित्य में जो भी साहित्य है वह मूलत: जैन साहित्य है। तमिल साहित्य से यदि जैन साहित्य को निकाल दें तो वहाँ कुछ बचता ही नहीं, इतना विपुल साहित्य था। तमिलनाडू में भयंकर नरसंहार हुआ, उसकी कई कथाएँ है। राजा महेंद्र वर्मन के काल में हजारों जैन मुनियों को सूली पर चढ़ाया गया। अन्य भी कथाएँ है, इनको अगर आपको जानना है, तो पंडित मल्लीनाथ शास्त्री की एक कृति है “तमिलनाडू का जैन इतिहास” आप पढ़ेंगे तो आपकी आँखों से आँसुओं की धार बहेगी। तमिलनाडू के जो मूलभूत जैन हैं, उनको नयनार जैन कहते हैं। ये थोड़े से जैन कन्वर्ट होने से बच गये। जैनियों का इस तरीके से नरसंहार करके कन्वर्ट किया गया तो धीरे-धीरे लुप्त हो गए। एक श्रावक जो एक दिन छुप करके पानी छान रहा था, उसे पकड़ लिया। संयोग से राजा को उस दिन पुत्र की प्राप्ति हुई थी तो राजा ने उन्हें माफ कर दिया। वह वहाँ से सीधे श्रवणबेलगोला गए और वहाँ उन्होंने धर्म शास्त्रों का अध्ययन किया, दीक्षा ली। मुनि बनने के बाद वीरसेन उनका नाम पड़ा और उन्होंने संकल्प लिया कि मैं खोए हुए 100 अजैनों को वापस जैन बनाऊँगा तब आहार ग्रहण करूँगा। निन्यानवें होने तक वे आहार नहीं लेते, सौंवा होता तब आहार ग्रहण करते। आज वे ही जैन पूरे तमिलनाडू में व्याप्त हैं जिन्हें नयनार जैन के नाम से जाना जाता है। वे बड़े अच्छी स्थिति में हैं, समर्पित, श्रद्धावान और समर्थ लोग हैं। आपने तमिलनाडू के जिस युवक की बात टाइम्स ऑफ इंडिया में पढ़ी शायद नितिन जैन उसका नाम होगा। उनको पूरा एक प्रोजेक्ट दिया गया कि वे जहाँ-जहाँ भी नसिया आदि हैं उसका अध्ययन करें, यह प्रयास करना चाहिए। तमिलनाडू एक समय जैन इतिहास से बड़ा समृद्ध था, जैन संस्कृति की एक बहुत बड़ी सांस्कृतिक थाती थी, काल के प्रभाव से वह प्रभावित हुआ।

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