क्या हम भी कभी समवसरण में गये होंगे?

150 150 admin
शंका

क्या हम भी कभी समवसरण में गये होंगे? क्या हमें कभी तीर्थंकर की दिव्य ध्वनि सुनने का अवसर मिला होगा?

समाधान

समवसरण में जाने की बात है, तो भगवान के समवसरण में भव्य जीव ही जाते हैं और श्री मण्डप भूमि में तो सम्यक् दृष्टि ही जाते हैं। अभव्य और मिथ्यात्व दृष्टि जीव सातवें भवन भूमि से आगे नहीं जा पाते हैं। अगर भगवान के समवसरण में जाने की बात मैं करूँ, तो मुझे लगता है कि पिछले दो-तीन जन्मों में तो शायद नहीं गये होंगे। क्योंकि वहाँ गये होते तो आप निश्चित सम्यक् दृष्टि हो गये होते, और सम्यक् दृष्टि होते तो देव पर्याय को प्राप्त किये होते, और वहाँ से च्युत होते तो साक्षात् वहाँ जन्म लेते जहाँ द्रव्य, क्षेत्र, काल, भाव, मोक्ष के लिए अनुकूल है; अर्थात विदेह क्षेत्र में जाते।

ये जो भरत क्षेत्र में हमने जन्म लिया है इसका सीधा-सीधा ये मतलब समझ में आता है कि इस भरत क्षेत्र में हम लोग क्षीण पुण्य लेकर आये हैं। पुण्य तो लाये हैं लेकिन हमारा पुण्य क्षीण है, गाढ़ा पुण्य नहीं है। हम पुण्य हीन नहीं हैं क्योंकि पुण्य हीन होते तो दीन-हीन जीवन पाते। ऐसे क्षेत्र में जन्म लेते जहाँ देव, शास्त्र व गुरु का समागम नहीं मिलता। हमारा पुण्य है इसलिए तो हमें आचार्य गुरुदेव का सानिध्य मिल रहा है, संसर्ग मिल रहा है, सब प्रकार की अनुकूल सामग्री मिल रही है। थोड़ा सा पुण्य क्षीण है क्योंकि हमें मोक्ष मार्ग तो मिला है, मोक्ष के अनुकूल सामग्री नहीं मिल रही है। 

अब रहा सवाल कि अतीत में भगवान के समवसरण में जाने का; उनकी दिव्य ध्वनि के श्रवण करने का। शास्त्रीय दृष्टि से इसका निषेध नहीं किया जा सकता कि हमने अतीत में भगवान की वाणी सुनी न हो व समवसरण में नहीं गये हों। क्योंकि समवसरण में जाने के बाद भी कई जीव भटक जाते हैं, लेकिन नज़दीक के भव में गये हों ऐसा नहीं लगता।

Share

Leave a Reply