भगवान ने इंसान को बनाया या इंसान ने भगवान को?

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शंका

हमारे सामने कई बार यह प्रश्न आता है कि ‘भगवान ने इंसान को बनाया या इंसान ने भगवान को?’ उस पर कई लोग यह बोलते हैं कि ‘इंसान ने ही भगवान के नाम की रचना की जिससे कि लोग पाप करने से डरें’ तो क्या यह सही है? इसी तरह लोग आत्मा को नहीं समझते। वे सिर्फ बायोलॉजिकल बर्थ और डेथ को मानते हैं, ऐसे में आत्मा को कैसे prove (प्रमाणित) करें?

समाधान

मैं कहता हूँ इंसान को बनाने वाले भगवान को हम भले नहीं देख पाए, पर भगवान को बनाने वाले इंसान तो रोज नजर आते हैं। यह जो कहा जाता है कि भगवान ने इंसान को बनाया, जैन धर्म के अनुसार यह सच नहीं, भगवान ने इंसान को नहीं बनाया और इंसान ने भी भगवान को नहीं बनाया। सच्चे अर्थों में इंसान खुद ही भगवान है, वह उसे पहचान नहीं पाया। अगर इंसान अपने भीतर के भगवान को पहचान ले, उसके जीवन की दिशा ही कुछ और होगी। हमने भगवान के नाम पर जो यह कहा कि ‘भगवान हमें यह देंगे, वह देंगे’, यह व्यवहार की बात है। हमारा सम्पूर्ण जीवन हमारी ही प्रवृत्तियों से नियंत्रित व संचालित होता है। हमारी प्रगति हमारे अच्छे-बुरे जीवन का आधार है। 

सच्चे अर्थों में हम अपने जीवन की बेहतरी चाहते हैं तो हमें चाहिए कि हम अच्छा जीवन जियें। अच्छे जीवन का ही अच्छा परिणाम आएगा, बुरे जीवन का परिणाम बुरा आएगा। भगवान और कुछ नहीं है, एक प्रतीक है और प्रेरणा है। जीवन को सही रास्ते पर ले जाने के लिए हम जिन्हें भगवान के रूप में मन्दिर में विराजमान करते हैं वो भगवान न तो हमसे कुछ लेते हैं न कुछ देते हैं लेकिन उनको देख कर हमें अपने भीतर के भगवान का बोध होता है, ‘वस्तुतः मेरा रूप तो यही है पर मैं भटक गया हूँ, मैंने दूसरे रास्ते को पकड़ लिया है, उसके कारण मेरे जीवन में ढेर सारी बुराइयाँ और विकृतियाँ उत्पन्न हो गई है। अगर मैं इनका शमन करूँगा तो मेरा जीवन सुधरेगा। मैं अपने जीवन को सही रास्ते पर ले जाने में समर्थ होऊँगा।’ यह सोच जब हमारे भीतर विकसित होगी तब हम न भगवान का भय करेंगे, न हमारे जीवन में कुछ गड़बड़ होगा, हम अपने जीवन को साफ सुथरा शुद्ध बनाने में समर्थ हो जायेंगे।

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