भगवान ने इंसान को बनाया या इंसान ने भगवान को बनाया?

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शंका

हम किसे भगवान मानें?  जिसने इंसान को बनाया या जिसे इंसान ने बनाया?

समाधान

सच्चे अर्थों में देखा जाए तो जिसे इंसान ने बनाया वो भी भगवान नहीं और इंसान को बनाने वाला भी कोई भगवान नहीं। न तो भगवान ने इंसान को बनाया है, न इंसान भगवान को बना सकता है। आप पूछोगे ‘महाराज! ये पूजा-अर्चा क्यों?’ सच्चे अर्थों में देखा जाए तो इंसान स्वयं भगवान है, उसके भीतर वही ईश्वरीय तत्त्व है। जो हमारे भीतर है वो अमूर्त तत्त्व है जिसे हम पहचान नहीं पाते, जिसे हम जान नहीं पाते। इंसान ही ईश्वर है, आत्मा ही परमात्मा है। हर जन में जिन विराजमान है, ये जैन दर्शन कहता है। 

लेकिन हम अपने भीतर के उस परमात्मा को पहचान नहीं पाते तो उस परमात्मा को न पहचान पाने के कारण, ‘मैं भीतर से परमात्मा हूँ, मैं भगवान हूँ’ तो उस भगवान का प्रतिरूप हम बाहर गढ़ते हैं जिसे देखकर हम पहचान सके -’ये जो रूप है ये मेरा अपना असली स्वरूप है।’ जैसे दर्पण के सामने खड़े होने पर हम अपना प्रतिबिंब देखकर अपने स्वरूप को पहचानते हैं, ऐसे ही भगवान की उस प्रतिकृति को एक दर्पण की तरह अपने सामने रखा जाता है और वो इस बात का संकेत देते हैं कि ‘तेरे भीतर ये ही भगवान है, तू स्वयं ऐसा भगवान हैं। आज भटका हुआ है, संभल जा, तेरे जीवन का उद्धार हो जाएगा।’ इसलिए हम अपने से भिन्न किसी भगवान को पूजते नहीं। जिन्हें हम भगवान बना करके पूज रहें हैं, वे हमारे भीतर की भगवत्ता की ही एक अभिव्यक्ति है। हमने उसे एक मूर्त प्रतीक के रूप में वहाँ प्रतिबिंबित, प्रतिष्ठापित किया है जो हमारे भीतर के अमूर्त भगवान का बोध कराते हैं और उस अमूर्त तत्त्व का ज्ञान करने की प्रेरणा देते हैं।

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