भोग भूमि और स्वर्ग में क्या मौलिक अंतर है?

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शंका

भोग भूमि में हमें कल्पवृक्षों द्वारा सारी सामग्री प्राप्त होती है और स्वर्ग में भी कल्पवृक्षों के द्वारा सामग्री प्राप्त होती है, तो भोग भूमि के जीव के सुख में और स्वर्ग के सुख में क्या अन्तर है? और जब भोग भूमि में न चैत्यालय हैं, न देव शास्त्र गुरु के दर्शन हैं और न पूजन है, तो फिर वहाँ कैसे पुण्य होता है? ऐसी गति से क्या फायदा? वहाँ सुख है पर पुण्य प्राप्त नहीं कर सकते हैं।

समाधान

भोग भूमि के जीवों के सुख से देवों का सुख कई गुना अधिक होता है। भोग भूमि के जीवों को कल्पवृक्षों से साधन सामग्री मिलती है और वो अपने खाने पीने की चीजों का उपभोग भी कल्पवृक्षों पर आश्रित होकर कर लेते हैं। स्वर्गों में कल्पवृक्ष शोभा की वस्तु बनकर रहते हैं क्योंकि देवों को अपने निजी उपभोग के लिए कल्पवृक्षों का उपयोग बहुत कम करना होता है। वस्त्रालंकरण आदि सब उनके साथ जन्म से ही होते हैं और उनका भोजन, पान मानसिक होता है, जो उनकी इच्छा मात्र से कंठ का अमृत झर जाता है। 

भोग भूमि के जीव एक दिन, दो दिन या तीन दिन के अन्तराल से हरबरा (चना) या आँवला बराबर भोजन लेते हैं जबकि स्वर्ग के जीवों में एक सागर आयु वाले को एक वर्ष के अन्तराल से भोजन होता है और वे एक पक्ष के अन्तराल से श्वास लेते हैं। तो ये चीजें हैं। इसका मतलब स्पष्ट जाहिर हो रहा है कि भोग भूमि की तुलना में स्वर्ग के जीवों का पुण्य कुछ अधिक है। 

फिर दूसरा सवाल कि भोग भूमि में न देव हैं, न शास्त्र हैं, न गुरु हैं तो फिर भोग भूमिया जीव अच्छे या हम अच्छे? आपका सवाल सही है। भोग भूमि भोग-योनि है जहाँ केवल पुण्य को भोगने के लिए अनुकूलता मिलती है, पुण्य कमाने की नहीं। कर्म भूमि वह भूमि है जहाँ पाप-पुण्य को भोगने की ही नहीं बल्कि उनकी जड़ काटने की भी अनुकूलता है। तो कल्याण, भोग भूमिया जीव का नहीं होगा, कर्म भूमि के जीव का होगा। इसलिये जीवन के उत्कर्ष का आधार कर्म भूमि है। 

भोग भूमिया बनने की कभी भावना नहीं करना, भोग भूमिया तो मिथ्यादृष्टि जीव बनता है, सम्यग्दृष्टि नहीं। जो जीव दान धर्म करते हैं, पात्र दान आदि करते हैं, पर सम्यक्त्व रहित होकर करते हैं इसलिये भोग भूमि जाते हैं। सम्यक्त्व सहित होते तो आगे रत्नत्रय प्राप्त करके इसी भव से मोक्ष चले जाते; नहीं तो बीच की यात्रा स्वर्ग में करके आते हैं और मोक्ष को पाने का सौभाग्य प्राप्त कर लेते हैं।

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