रात्रि भोजन त्याग का सही पालन ऐसे करें!

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शंका

रात्रि भोजन का निषेध हम जैनों की पहचान है, सूर्यास्त के पहले भोजन कर लेना यह हमारी शान है। रात्रि भोजन से हमारा उद्देश्य यह है कि रात में अग्नि न जलाएँ जिससे जीव जंतुओं का मरण हो। पर आजकल बहुत से लोग रात में बने हुए आइटम्स (items) खाते हैं, गैस (Gas) जलाते हैं। उससे अच्छा है कि हम सुबह बनी हुई रोटी रात्रि में खा लें?

समाधान

एक दिन एक छोटे से बच्चे ने एक सवाल किया “महाराज जी! रात्रि में रोटी खाने में पाप लगता है क्या कलाकंद खाने में पाप नहीं लगता?” यह बहुत अहम सवाल है जिस पर सबको ध्यान देना चाहिए। हमारे यहाँ रात्रि भोजन का त्याग करने वाले लोग तो बहुत हैं, लेकिन रात्रि भोजन त्याग करने के बाद बहुत कम लोग हैं जो रात्रि भोजन त्याग के उद्देश्यों को पूरा कर पाते हैं। केवल परम्परा के नाम पर रात्रि भोजन को त्यागने का कोई अर्थ नहीं, अन्दर से जागकर रात्रि भोजन त्याग करें तभी उसका कोई अर्थ है।

हम क्यों करते हैं रात्रि भोजन का त्याग? जीव हिंसा से बचने के लिए! सूर्य की किरणों में प्रासुकता होती है, Ultraviolet rays (पराबैंगनी किरणों) के कारण जीवों की उत्पत्ति नहीं होती। जो उत्पन्न होते हैं वे इधर उधर छिप जाते हैं। सूर्यास्त होने के बाद उन जीवों के हमारे भोजन में समाविष्ट होने की पूरी सम्भावना होती है। रात्रि में आप कुछ भी खाओगे पियोगे तो उन जीवों के उस में सम्मिलित होने की सम्भावना बनेगी। इसीलिए रात्रि में कुछ भी खाना-पीना नहीं चाहिए, सबसे उत्तम तो यही है। फिर भी लोग फलाहार के नाम पर रात में खाते हैं, अग्नि जलाते हैं और लोग वे चीजें खाते हैं जो दिन में नहीं खानी चाहिए। मैंने कई बार कहा है, लोग फलाहार को ‘फुलाहार’ बना लेते हैं। फलाहार को फलाहार रहने दीजिए, फुलाहार नहीं।

दरअसल यह फलाहार है क्या? फलाहार तो केवल उस समय के लिए है कि जब दिन में भोजन नहीं हो सका, तकलीफ हो रही है, भूख सहन नहीं हो रही, पेट को आधार देने के लिए दो केले खा लिए, एक सेब खा लिया, थोड़े से dry fruits (सूखे मेवे) खा लिए, एक गिलास दूध पी लिया, काम चला लिया। रात निकल गई, सुबह हो जाएगी। यह है फलाहार! जो एक अपवादिक व्यवस्था थी। अब लोगों ने यह धारणा बना ली- “फलाहार में कोई दोष नहीं”, दोष तो है ही! रात में कुछ भी खाओ, कुछ भी पियो, दोष है। जैनी लोग रात्रि भोजन के त्याग के बाद आलोचना के शिकार इसलिए बनते हैं क्योंकि रोटी नहीं खाते, माल खाते हैं। एक जगह एक सज्जन ने कहा “जैनियों को बुलाना बड़ा महँगा है क्योंकि उनके लिए और ‘आइटम’ बनाने पड़ते हैं जो बहुत महंगे होते हैं।” जो भी वस्तुएँ रात्रि में प्रोसेस करते हैं प्राय: उसमें कंदमूल होता है जो दिन में भी खाने योग्य नहीं और कोलेस्ट्रॉल (cholesterol) बढ़ाने वाले होते हैं, प्राय: (fry items) तले हुए होते हैं जो बिल्कुल हानिकारक हैं शरीर के लिए स्वास्थ्य के लिए। इसीलिए मेरी सब को सलाह है कि रात्रि भोजन को निष्ठा से त्यागो, रात्रि में पेट को खाली रखो। अब तो विज्ञान इस बात को पूरी तरह सहमति देता है, लोग intermittent meal के बारे में समझें, उसके विषय में नोबेल प्राइज (nobel prize) भी दिया गया है। भोजन के बीच में gap (अंतर) होना चाहिए। आज लोग शाम को भोजन भी कर लेते हैं, फिर फलाहार भी कर लेतें हैं और सोते समय भी खा लेते हों तो आश्चर्य नहीं। ये चीजें ठीक नहीं हैं, लोगों को इससे बचना चाहिए। अपनी सेहत के प्रति अगर आप जागरूक रहना चाहते हैं तो आप रात्रि भोजन से बचें। रात्रि भोजन का परित्याग करें और ठान लें कि हमको रात्रि में कुछ नहीं खाना।

मैं अपनी बात बताता हूँ, मैंने जब पहली बार गुरुदेव को आहार दिया था तो रात्रि भोजन त्याग दिया था। रात्रि भोजन त्याग के बाद, जैसा सब लोग करते हैं, हम भी पेड़े-मावा आदि खा लेते थे, खिला देते थे, फलाहार का त्याग नहीं था। एक बार चर्चा में बात हुई तो गुरुदेव ने कहा – “रात्रि भोजन त्यागा और रात्रि में फलाहार भी खा रहे हो तो आसक्ति कहाँ गई?” मैंने उस दिन से रात्रि में पानी पीना भी बंद कर दिया, आसक्ति जानी चाहिए। हालाँकि, उस समय मेरा यह विचार नहीं बना था कि मुझे मुनि बनना है, लेकिन उसी समय मुझे बात समझ आ गई कि छोड़ा है, तो उसकी आसक्ति भी जानी चाहिए।

मैं सभी से कहता हूँ जो लोग रात्रि भोजन के त्यागी हैं वे दिन के उजाले में भोजन करें। रात्रि में कुछ न खाएँ, यदि खाएँ तो आपात स्थिति में खाएँ और वह भी रात्रि की प्रोसेस की हुई चीज न खाएँ, दिन में प्रोसेस की हुई चीज खाएँ, हल्की-फुल्की चीज खाकर रात्रि व्यतीत करें तो बहुत अच्छा होगा।

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