कोरोना पर महाराज श्री का समाज को प्रथम सम्बोधन!

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शंका

कोरोना वायरस पर आप समाज को क्या सन्देश देना चाहेंगे?

समाधान

कोरोना एक वैश्विक आपदा है। और इस आपदा को सबको मिल करके ही दूर करना होगा, इससे लड़ना होगा, इसको हराना होगा। सरकार के द्वारा जो भी प्रावधान प्रस्तुत किए जा रहे हैं, वे इससे निपटने का सबसे प्रमुख तरीका है। हमें उनकी हिदायतों का अनुपालन करना चाहिए। क्योंकि अब कोरोना थर्ड स्टेज पर आने लगा है और जैसे ही कम्युनिटी में स्प्रेड होने लगेगा तो इससे बच पाना बड़ा मुश्किल है। प्रधानमंत्री ने जो सोसायटी में डिस्टेंस मेंटेन करने की बात की वो हर व्यक्ति को मेंटेन करके चलना ही चाहिए।

हमारा मन्दिर पूजा स्थल है, जिसमें अनेक लोग आते हैं और एक भी संक्रमित व्यक्ति वहाँ पहुँच गया तो उसके पहुँचने से अनेक लोग उस संक्रमण के शिकार हो सकते हैं। इसलिए इस पर सावधानी रखना हर व्यक्ति का कर्तव्य और धर्म है। जहाँ तक सवाल है सरकार के दबाव और सुझाव का, तो सरकार ने दबाव नहीं दिया सुझाव ही दिया है। लेकिन हम प्रबुद्ध समाज के नागरिक हैं, हमें चाहिए कि उस सुझाव को स्वीकार करते हुए अपनी दिनचर्या में परिवर्तन करें। हमारा धर्म एक रटे-रटाए ढर्रे पर या बने-बनाए ढर्रे पर चलने का नाम नहीं है, धर्म तो हमारे अन्तरंग की क्रिया का नाम है। हमें देश काल की परिस्थिति के अनुरूप अपनी धार्मिक क्रियाओं में परिवर्तन लाने का अधिकार है। आप परिवर्तन ला सकते हैं। कोई जरूरी नहीं है कि ऐसे समय में आप चार घंटा मन्दिर में बैठ करके ही पूजा करें। 

आप दो तरीके से ये व्यवस्थाएँ बना सकते हैं, कल के सन्दर्भ में मैं कहूँगा, कल जनता कर्फ्यू है। सुबह छः बजे के आस-पास उजाला हो जाता है पूरे देश में। आप उजाला होते ही अभिषेक करें और संक्षिप्त पूजा विधि मन्दिर में कर लें। संक्षिप्त पूजा विधि क्या है? जैसे हम मुनियों के चौके में अष्टद्रव्य चढ़ा कर पूजा कर लेते हैं, ये भी आपकी पूजा है। ये कोई जरूरी नहीं कि मंगलाष्टक से शांतिपाठ करो तभी तुम्हारी पूजा होगी। आपने अर्घ अर्पण कर दिया तो भी पूजा है। अष्टद्रव्य से अपनी भक्ति को प्रकाशित करने का नाम ही पूजा है। आचार्य वीर सेन महाराज से पूछा गया “का नामार्चना”, तो उन्होंने बताया “जल, गन्ध, अक्षत, दीप, धूप, पुष्प फल आदि ही सद भक्ति प्रकाशो नामार्चना”। अष्टद्रव्य से अपनी भक्ति की अभिव्यक्ति का नाम अर्चना है, पूजा है, आप उस तरीके से पूजा कीजिए और वापस सात बजे के पहले तो सभी को घर लौट आना ही है। दिन भर घर में आप पूजा कीजिए, भक्ति कीजिए, पाठ कीजिए, जाप कीजिए, विश्व मंगल की कामना कीजिए, शांति मन्त्र का जाप कीजिए, भक्तामर का पाठ कीजिए कि इस लोक में शांति हो। भगवान के सामने बैठकर के ही आप पूजा करें, ऐसा नहीं है। हर पल पूजा कीजिए। लकीर के फकीर मत बनिए। तभी आप बच सकेंगे। 

दूसरा, अन्य दिनों में मन्दिरों में संक्रमित व्यक्ति न पहुँच पाए। यदि तो आपके पास वैसी तकनीक है, तो व्यवस्था कीजिए। पहले व्यक्ति को टेस्ट कीजिए, फिर अन्दर आने दीजिए। लेकिन कौन व्यक्ति कहाँ से है वो व्यवस्था आज है ही नहीं। सरकार के पास ही नहीं, आपके पास कहाँ आएगा? तो ये चाहिए कि मन्दिर में भीड़ न हो, कम-कम लोग जाए, एक-दूसरे के साथ दूरी बना करके चलें। वर्तमान इस स्थिति को देखते हुए मैं तो कहूँगा कि मन्दिर के वस्त्र किसी को पहनना ही नहीं चाहिए, मन्दिर के उपकरण का प्रयोग किसी को करना ही नहीं चाहिए। आप अपने घर से वस्त्र, अपने वस्त्र पहन करके जाइए और अपने उपकरणों से पूजा कीजिए, अपना द्रव्य चढ़ाइये और अपना द्रव्य लेकर घर लौट आइए। क्योंकि ये संक्रमण की बात है और ये महामारी है। एक दूसरे का स्पर्श करते-करते न जाने कितनों में फैल जाएगी। कल ही देखिए वो कनिका कपूर ने क्या किया, कितनी बड़ी तबाही कर दी? एक व्यक्ति के निमित्त से। तो ये तो सबके लिए है। इस संकट के सामना सबको मिल-झुलकर करना होगा। 

इसके लिए सरकार लॉकडाउन तो बाद में करे जनता को अपनी तरफ से लॉकडाउन कर देना चाहिए। अपनी सारी गतिविधियों को नियंत्रित कर देना चाहिए। आवागमन को पूरी तरह से रोक देना चाहिए। सुरक्षित दूरी का अनुपालन करते हुए करना चाहिए। यही देश और समाज के हित में होगा। तो इस तरह से ध्यान रखें। पूछा है, किसी का रोज मन्दिर जाने का नियम है और कोरोना वायरस के कारण नहीं मिल पा रहा है, तो अभी मन्दिर को तो कहीं प्रतिबंधित नहीं किया, शायद पुणे में कर दिया गया है। पर कई मन्दिरों में वहाँ ऐसा करना चाहिए कि बाहर से दर्शन की व्यवस्था करें। और जहाँ एकदम ही लॉकडाउन है, जहाँ एकदम ही लॉकडाउन कर दिया गया है वहाँ इस आपात्कालिक स्थिति में परोक्ष में धर्म-ध्यान करके काम करना चाहिए। हमारे यहाँ एक नीति है, “आपत्ति काले मर्यादा नास्ति” तो ये आपत्तिकलिक धर्म है। बाहर निकलने से यदि संक्रमण की सम्भावना है, तो भीतर रहकर अपने आपको सुरक्षित रखना, धर्म-ध्यान करना ज़्यादा उचित है। आपातकाल में हमें कई तरह की बंदिशों का पालन करना पड़ता है। हमें उसे देखना होगा और इस तबाही से अपने आप को बचाना होगा। 

इसी के साथ मैं लोगों से कहता हूँ लोग घरों से न निकलें। साधु-सन्तों के दर्शन के लिए भी न जाएँ। जो जहाँ है वहीं रहे। सरकार की हिदायतों का पालन करें। इस दौर में कब क्या घटना घट जाए पता नहीं। मैं तो कहता हूँ सामूहिक भोजनशालाएँ भी अब बंद कर देनी चाहिए। सीमित रहना चाहिए। हमने तो सागर में अपने आप को सीमित कर लिया इस सन्त भवन के भीतर। जब तक आगामी अनुकूलता न बने, आगामी आदेश न आए तब तक के लिए हमने यहाँ सुरक्षित कर लिया। और लोगों को भी कह दिया अब यहाँ से न कोई आएगा, न जाएगा। इससे दिन भर आने वाले दर्शनार्थियों, कल तो आप आएँगे नहीं, आने वाले दिनों में भी आप भूल जाओ कि महाराज सागर में हैं। आप संयम रखो। हम आपको सयंम का पाठ सिखाएँगे तभी आप सयंम पाल पाएँगे। अगर हमने अपनी तरफ से ढील दिया तो आप तो दिन भर यहाँ हजूम लगा लेंगे। इसलिए इस हजूम से बचिए। 

सागर के प्रत्येक व्यक्ति से मैं कहना चाहता हूँ, एकदम भ्रम छोड़ दीजिए कि महाराज के दर्शन नहीं हो रहे हैं। मत कीजिए दर्शन और जिनको महाराज का सानिध्य लाभ लेना है, यहाँ की समिति को मैं कहूँगा उन सबका पूरा परीक्षण कराकर छोडें। जिनको लेना है, यहाँ आकर रहो चौबीस घंटा। चौबीस घंटा सानिध्य मिलेगा। यहाँ रहो, न यहाँ से आना, न जाना। ये व्यवस्था आपके और समाज के सबके भले के लिए है। इस तरह की व्यवस्थाएँ सब को ले करके चलना चाहिए और आगे बढ़ना चाहिए। आहार चौके में भी सावधानी, यहाँ तो सब सीमित हो गया। देशभर के साधु-सन्तों को भी आहार चौका में सीमित लोग दें और सुनिश्चित लोग दें। जिनका किसी से सम्पर्क नहीं, किसी प्रकार के संक्रमण की कोई सम्भावना नहीं, वे ही चौकें में प्रवेश करें, वें ही चौका लगाएँ, वे ही आहार दें। पेशेवर लोगों को अभी चौके से दूर रखा जाए। पता नहीं कहाँ से वो आए हैं, क्या हैं? ये आपकी सुरक्षा है। इसका ध्यान रखें और अपने आपको सीमित रखकर चलना चाहिए। 

वेणु गोपाल जी, जो आयुर्वेद के विभाग को भाग्योदय में संभालते हैं, इन्होंने एक बहुत अच्छा काढ़ा प्रिस्क्राइब किया है। वो काढ़ा जो केरल में कोरोना से पीड़ित लोगों के ऊपर प्रयोग किया गया, वो लाभ हुआ। इनका कहना है कि इस काढ़े का प्रयोग यदि लोग करेंगे तो उनकी इम्यूनिटी पावर बढ़ेगी और लोग इस संक्रमण से बच सकेंगे। जो आइसोलेशन में हैं या जो संक्रमित हैं, गवर्नमेंट उसको जैसी सलाह देगी वो करेंगे; पर जिनको अभी तक संक्रमण नहीं हुआ, और लोग संक्रमित न हों उसकी दृष्टि से आप इनसे उस की विधि दे दीजिए और इस प्रिस्क्रिप्शन को आज ही प्रमाणिक ऐप पर तुरन्त लोड कर दिया जाए। अन्य सोशल माध्यम से भी, इसको प्रचारित कर दिया जाए। ताकि कल के बाद परसों लोग इस काढ़े को बजार से इसके नुक्से के आधार पर तैयार करें और हर कोई पिए। ये विशुद्धत्य आयुर्वेदिक चीज है और ये सब प्रकार से लाभकारी है, जनहित में इसे प्रचारित करना चाहिए और लोगों को इसका लाभ मिलाना चाहिए। 

वेणु गोपाल जी: मेरा नाम सूरज वेणु गोपाल है। मैं भाग्योदय में आयुर्वेद का डॉक्टर हूँ। अभी ये काढ़ा जो है, ये काढ़े का कॉम्बिनेशन जो है, ये हमारा रोग-प्रतिरोधक शक्ति बढ़ाने के लिए है। इसमें सात चीजें हैं जो बाजार में आसानी से मिल जाती हैं। इसमें क्या-क्या है-सोंठ, काली मिर्च, पीपली, तुलसी का पत्ता, खड़ा धनिया-बटा हुआ धनिया साबुत, अडूसा का जड़ – वासा भी बोलते हैं अडूसा को; और चिरायता। ये सात चीजें हैं सोंठ, काली मिर्च, धनिया, पीपल, चिरायता, अडूसा की जड़, और तुलसी का पत्ता। ये तुल्य मात्रा में हमें पाउडर करना है पीस के। इसका पाउडर बनाकर दो चम्मच चाय की चम्मच से लेकर कढ़ा बना करके पीना है। दो लीटर पानी में इसको दस-पंद्रह मिनट उबालना है और ये मतलब तीन-चार बार पी कर खत्म करना है। दो लीटर पानी में उबालना है इतने को, दस-पंद्रह मिनट बस उबालना है। उसके बाद छान कर पीना है। बहुत सुंदर ये एक काढ़ा है, इसका आप प्रयोग करें। बड़ी साधारण चीज है। ये आपके इम्युनिटी पावर को बढ़ाएगी। आप इससे, आप रोग प्रतिरोधक क्षमता को बढ़ाएँगे, प्रतिरोधक क्षमता को बढ़ाएँगे। ये प्रयोग सबको करना ही चाहिए। ये प्रमाणिक ऐप पर अभी उपलब्ध है। और आप लोग जितने लोग इसे सुन रहे हैं, विभिन्न व्हाट्सएप माध्यम से ये कर लीजिए। डॉक्टर साहब का कहना है केरला में इसका बहुत प्रयोग हुआ है। ये केरल से हैं और पंचकर्म चिकित्सा से जुड़े हुए हैं, भाग्योदय में अपनी सेवा दे रहे हैं।

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