छोटे शहरों से पढ़ने आने वालों जैन बच्चों के प्रति बड़े शहरों के समाज का कर्त्तव्य!

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शंका

हमारे यहाँ बहुत सारी बच्चियों को छोटे-छोटे स्थानों से पढ़ाई के लिए बड़े शहरों में आना पड़ता है, जहाँ उनके आवास की समुचित व्यवस्था नहीं होती है। वे अपने घरों से सुसंस्कारों में पल कर आती हैं, किन्तु बड़े शहरों में, जहाँ वे रहती हैं, उनको रात्रि भोजन आदि मिलता है। इसलिए हम चाहते हैं कि हमारे देश में समाज के सहयोग से ऐसे छात्रावासों का निर्माण कराया जाए, जहाँ बच्चियाँ सादगीपूर्ण, अच्छा और अपने संस्कारों वाला भोजन प्राप्त कर सकें। इसके लिए हमें आगे और क्या प्रयास करना चाहिए।

समाधान

आपने बहुत महत्त्वपूर्ण बात उठाई है, यह समाज की आवश्यकता है। यदि हम समाज की भावी पीढ़ी को सुरक्षित रखना चाहते हैं तो सबसे पहली आवश्यकता है कि पीजी (पेइंग गेस्ट) से बच्चियों को हटाएँ। मेरा अनुभव बताता है कि पीजी में पढ़ने वाली लड़कियाँ प्रायः भटकती हैं। उनमें कई तरह का भटकाव आता है, संस्कारहीनता आती है और अनेक प्रकार की विकृतियाँ जन्म लेती हैं। समाज को प्राथमिकता से ऐसे छात्रावास तैयार करना चाहिए जहाँ लड़कियाँ और लड़के अनुशासनबद्ध तरीके से अलग-अलग रह सकें, शुद्ध भोजन कर सकें और अपने संस्कारों को सुरक्षित रख सकें। इसके लिए समाज को सभी प्रयास करने चाहिए। 

प्रथम चरण में यह प्रयास करना चाहिए कि समाज की ऐसी धर्मशालाएँ जिनका आजकल बहुत उपयोग नहीं हो रहा है, उनको ठीक ढंग से रिनोवेट (जीर्णोद्धार- पुनर्निर्माण) करके, इन्हें नये तरीके से चलाने का प्रयास करना चाहिए। आजकल लोग पैसा देने में सक्षम हैं लेकिन साधन सुलभ नहीं होते। हमें इस दिशा में प्रयास करना चाहिये। मैं हमारे समाज के बड़े बिल्डरों से कहना चाहूँगा कि आपने अपने जीवन में बहुत पैसा कमाया, हर जगह एक-एक ऐसी बिल्डिंग बनाओ जो professionally managed (व्यावसायिक प्रबंधन) हो, और उनमें लड़कों और लड़कियों के लिए अलग-अलग रहने की सुविधा हो। बिल्डिंग के प्रबंधन और संचालन में बच्चों से पैसा लिया जाए और उनके अभिभावकों को इस बात की निश्चिंतता दे दी जाए कि “आपकी बेटी या बेटा अगर हमारे यहाँ रहने आएगा तो भटक नहीं पाएगा।” इससे समाज में बड़ा बदलाव आ सकता है।इसकी शुरुआत समाज में होनी ही चाहिए, हम जितना विलम्ब करेंगे उतना ही खोएगें.

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