किस पुण्य की वजह से भारत के बंटने के बाद भी जैन तीर्थक्षेत्र भारत में ही हैं?

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शंका

समय के साथ भारत वर्ष भारत में परिवर्तित हो गया और उसमें से कई छोटे-छोटे देश निकल गए। लेकिन जैन धर्म से सम्बन्धित सभी सिद्ध क्षेत्र, निर्वाण क्षेत्र सदैव भारत में ही रहे। यह हमारे किस पुण्य की वजह से है क्योंकि इससे जैन को कभी किसी दर्शन इत्यादि में कभी कोई बाधा उत्पन्न नहीं हुई?

समाधान

बिल्कुल, थोड़ी देर के लिए सोचो कि अगर सम्मेद शिखर अफगानिस्तान में होता या फिर पाकिस्तान में होता तो क्या होता? इससे यह समझो की भगवान की वाणी सार्थक है कि पंचम काल के आखिरी समय तक धर्म पलेगा और धर्मात्मा रहेंगे, यह इस बात का प्रमाण है। इसलिए हमारा पुण्य है कि हम इस धरती पर हैं कि भारत के टुकड़े होने के बाद भी हमारे तीर्थों के टुकड़े नहीं हो सके। हमारे सभी मूल तीर्थ आज भारत में है। बस कैलास पर्वत चाइना की सीमा में चला गया लेकिन वहाँ की वन्दना में कोई बाधा नहीं है। पंचम काल के आखिरी तक बाधा नहीं होगी क्योंकि पंचम काल की आखिरी तक धर्म रहेगा। जब तक धर्म है तब तक धर्मात्मा है और तब तक हमारे लिए थोड़ी-बहुत अडचनें आ सकती है, रुकावट आ सकती है लेकिन हमारा धर्म ध्यान विछिन्न नहीं होगा।

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