श्री सम्मेद शिखरजी यात्रा में क्या करें, क्या ना करें!

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शंका

श्री सम्मेद शिखरजी यात्रा में क्या करें, क्या ना करें!

समाधान

यह बात सही है की इन दिनों में धार्मिक क्षेत्रों में लोगों का पदार्पण बढ़ा है। और धार्मिक क्षेत्रों में भी सम्मेद शिखरजी में तो बहुत तेजी से बढ़ा है। मुझे इस क्षेत्र में आए 10 साल हो गए और मैं देख रहा हूँ कि प्रतिवर्ष यात्रियों और श्रद्धालुओं की संख्या लगभग 25 से 30% बढ़ रही है। जब मैं यहाँ आया था तो मुझे बताया गया कि यहाँ साल में लगभग 4 से 5 लाख लोग आते हैं। आज 10 से 12 लाख लोग आने लगे हैं। यह बढ़ोतरी बड़ी शुभ संकेत है। और ऐसी बढ़ोत्तरी केवल सम्मेदशिखरजी में ही नहीं, देश के अन्य तीर्थक्षेत्रों में भी है। 

इसके पीछे के कारणों का विश्लेषण करते हैं तो हम एक ही बात पाते हैं। एक तो साधु-संतों के समागम से लोगों में धर्म प्रभावना बढ़ी। खासकर समाज का युवा वर्ग भी धर्म से जुड़ा। दूसरी तरफ समाज में आज पहले की अपेक्षा कुछ संपन्नता भी बढ़ी। और तीसरी बात मौज-मस्ती के प्रति घूमने-फिरने की रुचि लोगों की घटी। यह तीनों कारण एक साथ मिल गए, उसका नतीजा। और चौथी बात तीर्थक्षेत्रों में सुविधाएँ बढ़ी। तो समग्र कारण मिल जाने से कार्य की उत्पत्ति होती है, न्याय शास्त्र ऐसा कहता है। यह सारे कारण मिल गए, तो क्षेत्रों में बाढ़ आने लगी। अब रहा सवाल, यहाँ आते क्या पिकनिक के तौर पर? जो लोग पिकनिक जाते थे, वह तीर्थ क्षेत्र पर आने लगे। अब रिलीजियस टूरिज्म बढ़ गया। अच्छी चीज़ है, शुभ संकेत है कि कम से कम जहाँ दूसरी जगह छुट्टीओं में जा कर घूमते फिरते, आज भी बहुत सारे लोग अगल-बगल के RESORTS में गए होंगे। लेकिन जिन का भाग्य जगा था, वह शिखर जी आ गए। 

यह अच्छी बात है, लेकिन तीर्थक्षेत्रों में सैलानी मानसिकता के साथ मत आना। तीर्थक्षेत्र में आओ तो वंदना करने के भाव से आओ। अपने जीवन को पवित्र बनाने के भाव से आओ। पर्यटन क्षेत्र के दृष्टि से मत आओ। लेकिन मैं देख रहा हूँ, यह तीर्थ क्षेत्र भी धीरे-धीरे पर्यटन क्षेत्र का रूप लेता जा रहा है। और यहाँ कुछ ऐसी सुविधा के नाम पर, ऐसी सुविधाएँ बढ़ाई जाने लगी हैं, जो आप सब के लिए पाप का कारण बन रहा है। उसमे एक है आपकी धर्मशालाओं में टीवी। टीवी जो धर्मशालाओं में लगाई जा रही है, महापाप का कार्य है। तुम कहीं भी, किसी भी तीर्थ क्षेत्र में, धर्मशाला में अपना पैसा लगाओ, टीवी मत लगवाना; पाप कमाओगे। जितने आदमी वहाँ बैठकर के टीवी देखेंगे, उसका सारा पाप उस आदमी को लगेगा जिसने उसका पैसा दिया। 

क्यों लगेगा पाप, सो सुनो? जो आदमी तीर्थक्षेत्र में आया, अपने कमरे में गया हर कमरे में INDIVIDUAL टीवी लगने लगे। वो टीवी खोलेगा, निश्चित उसके संस्कार जागेंगे। जिस चैनल को रोज देखता रहा, उसी चैनल को खोलेगा। फिर यहाँ आकर के अलग अलग चैनल्स देखेंगे, अलग अलग पिक्चर देखेंगे, तो धर्म क्षेत्र में उसके क्या भाव होंगे? आप सोचो, तीर्थ की बंदना करने के लिए आने वाला जीव, यहाँ आकर के पाप कमायेगा, दुर्ध्यान करेगा। अरे तुम्हें यही करना था, तो यहाँ क्यों आए? अपने घर अच्छे रहते। कम से कम यहाँ आकर के तो दीन-दुनिया से बेखबर रहो। लेकिन क्या कहें समाज की इस रूचि को देखते हुए, हमारे विभिन्न संस्थाओं के कर्णधार भी इसको प्रोत्साहित करने लगे हैं। ऐसा सोचने लगें हैं  कि- “अगर हम यह नहीं लगाएंगे तो लोग हमारे धर्मशालाओं में रुकेंगे नहीं।” और ऐसा होने भी लगा है। जिन धर्मशालाओं में टीवी और एसी नहीं है, वहाँ लोग रहना कम पसंद करते हैं। 

तो क्या कर रहे हो तुम? तुम्हारी मानसिकता क्या है? तुम धर्म क्षेत्र में अपना समय, शक्ति, संसाधन सब लगा कर के आए और पाप कमा रहे हो। एकदम कभी नहीं करना चाहिए। मैं तो कहता हूँ जितनी भी संस्थाओं में टीवीयाँ लगी है, आप लोगों को मैसेज देना चाहिए, SMS करना चाहिए और वहाँ की टीवी हटाने के लिए उनको बोलना चाहिए। जाके वहाँ के पदाधिकारियों को पाप से बचना है तो उसको उठाकर फेंक दो। हम धर्मस्थान को पाप का अड्डा न बनाएं। यह महान पाप कर्म है। पाप की क्रिया है। और आप लोग ऐसा नियम ले लो कि जहाँ टीवी होगी उस कमरे में हम ठहरेंगे ही नहीं। और और अगर ठहरते हैं तो वहाँ के लोगों को बोलेंगे पहले मेरे कमरे का टीवी का कनेक्शन काटो। आप बोलोगे महाराज यह बात भी तो हम टीवी पर ही सुनेंगे। बोलोगे आपकी बात भी हम टीवी पर ही सुन रहे हैं । ठीक है आप उसमें ऐसा करो कि धार्मिक चैनल के अलावा कोई चैनल न लगे। और रूम में टीवी देने की क्या जरूरत? लॉबी में दो। पारस चैनल, जिनवाणी चैनल या कोई धार्मिक चैनल देखना है, एक साथ बैठो लॉबी में और वहाँ देखो। अलग-अलग रूम में टीवी देने का क्या औचित्य? फिर यहाँ आएंगे। अभी एक लड़का था। यहाँ आया 3 दिन पहले। बोला यहाँ आया क्षेत्र में आया, सुबह से शाम तक गोल। हम बोले कहाँ? बोले महाराज मैच देख रहे थे। आया तीर्थ पर और देखने में लगा दिया मैच, क्या कमायेगा पुण्य? बंधुओं ये बहुत गंभीर मामला है और इसमें समाज में जागरूकता होनी चाहिए क्योंकि धर्मशालाएँ आजकल धीरे-धीरे प्रोफेशनल होते जा रही है। सारी शिखर जी की धर्मशालाएँ प्रोफेशनल हो रही है और उसका नतीजा यह निकल रहा है कि जो हमारी पारंपरिक धर्मशालाएँ हैं, उनके लोगों को तनख्वाह पुजाने की व्यवस्था नहीं हो रही है। महावीरजी कहते हैं बीसपंथी में व्यवस्था की कमी आ रही है। लोग नही रुकते, तो ये कैसे तीर्थ की सुरक्षा होगी? कैसे लोगों को सारी सुविधाएं प्राप्त होगी? इसपर जागरुकता होनी चाहिए, इसलिए ये कुपरंपराएं बंद होनी चाहिए। एक धर्मशाला से इसकी शुरुआत हुई और अब धीरे-धीरे सब धर्मशालाओं में लगाने जा रहे हैं। मुझसे लोगों ने कहा, हम बोले नाम भी मत लेना। ये होना ही नही चाहिए। लोग नहीं ठहरें चलेगा, लेकिन हम धर्मस्थान को पाप का अड्डा नहीं बनने देंगे, नहीं बनने देंगे। पर ये काम तुम लोगों के ताली बजाने मात्र से नहीं होगा। यहाँ बैठे हुए अधिकतम लोग, जब शिखरजी आते हैं तो सबसे पहले वहीं बुकिंग कराने की सोचते हो। जब वहाँ जगह नहीं मिलती, तब इधर-उधर भागते हो। कैसे होगा? उनको इस चीज़ का अहसास कराओ, मैं धर्मक्षेत्र में आया हूँ। धर्म करने के लिए आया हूँ। रोज़मर्रा की ज़िन्दगी से हटकर के जीने के लिए आया हूँ। यहाँ आकर के मैं पाप नहीं करूँगा। यहाँ मुझे विशुद्ध धर्मध्यान करना है। और एक बात और बताऊँ। बुरा लगेगा, यह सारे कार्य दिगंबरों के यहाँ हैं। श्वेतांबर समाज के अच्छी-अच्छी धर्मशालाएं बनी हैं, तुमसे अच्छी। एक में नहीं है। तुम लोग एकदम दिगंबर हो गए क्या? बंधुओं ये मैं नहीं बोल रहा, मेरे मन की पीड़ा बोल रही है। और ऐसा मुझे इसलिए बोलना पड़ा है की मैंने कईं धर्मशाला के लोगों को बोला पर 6 महीना हो गया, अभी तक मीटिंग करके कार्यवाही नहीं कर पाए। अब पूरे देश के लोगों को संदेश देना होगा। आज उनका पुण्य है कि लाइव आयोजन नहीं है, नहीं तो आज ही फोन आने लगते। लेकिन जितने लोग सुनोगे, जिस दिन सुनोगे उस दिन ये बोलना। अब मैं चाहता हूँ सम्मेदशिखर की सारी धर्मशालाएं टीवी मुक्त धर्मशाला हो। ये टीवी का रोग सम्मेदशिखर में नहीं होना चाहिए। और ये मैं छोडूंगा नहीं, आज ये छेड़ दिया हूँ। तब तक बोलता रहूँगा, जब तक तुम्हारी टीवीयाँ नहीं हटेंगी। लॉबी में टीवी हो, अलग से रूम में टीवी मत रखो और यह पाप बंध का कारण है। जितने लोग दान देने वाले हैं, ऐसी संस्था में ₹1 मत देना। बोले तुम टीवी लगाओगे, हम पैसा नहीं देंगे। जितने आदमी टीवी देखेंगे, पाप हम कमाएंगे। 

अन्य क्षेत्रे कृतं पापं, धर्मक्षेत्रे विनश्यति। 

धर्म क्षेत्रे कृतं पापं, वज्रलेपो भविष्यति ।। 

सारे पदाधिकारी यहाँ सुन रहे हैं, आगे सुनेंगे। यह ध्यान रखना, हम तो रोज-रोज पकड़-पकड़ के सुनाएंगे। जब तक तुम नहीं सुधरोगे, हम बोलते रहेंगे। और मैं तो कहता हूँ, सारे गुरुओं से ये बात सुनवाओ। यहाँ पर यह पाप करना कतई उचित नहीं है, असाधना है। और आप लोग भी अपनी आत्मा को जगाओ। ऐसे शौक को कभी महत्व मत दो। कॉमन टीवी दीजिए लॉबी में और लोग देखिये केवल धार्मिक चैनल को देखें। यहाँ हम पाप करने के लिए नहीं आए हैं। यहाँ मन बहलाने के लिए नहीं आए हैं। यहाँ मन बदलने के लिए आए हैं। जीवन को सुधारने के लिए आए हैं। जीवन का गुणात्मक परिवर्तन करने के लिए आए हैं। इसलिए कतई नहीं होना चाहिए। आप सोचेंगे, महाराज आप तो बिल्कुल पुरानी विचारधारा की बात कर रहे हैं। नहीं यह पुरानी विचारधारा नहीं है। यह मौलिक विचारधारा है। यहाँ कि धर्मशालाओं को धर्मशाला रखना चाहिए। उसे होटल का स्वरुप कभी नहीं देना चाहिए। धर्मशालाओं में तुम्हारी सुविधाएँ हो, उसका मैं निषेध नहीं करता। लेकिन ऐसे साधन कतई स्वीकार नहीं करना चाहिए, जिनमें पाप होता हो। इसलिए इसमें बचना बहुत जरूरी है। और आज मुझे खुशी तब होगी जब यहाँ रहने वाले जितने लोग हैं, हाथ उठाकर कहेंगे मैं शिखरजी आऊँगा, ऐसी धर्मशाला में नहीं रुकूँगा जिसमें टीवी हो। यह देश में संदेश जाना चाहिए और मुझे प्रसन्नता तब होगी जब कल ही विभिन्न संस्थाओं के लोग प्रस्ताव पारित करें के हम अपनी संस्था से टीवी हटा रहे हैं। हम ऐसा कार्य नहीं करेंगे। तब मजा आएगा और यह मैसेज आपको देना है। यह अभियान आप को छेड़ना है, क्योंकि हम अपने क्षेत्र को पापक्षेत्र नहीं बनने देंगे, चाहे जो हो जाए। हाथ उठाये रखिये, एकदम उठाए रखिए। ये बहुत जरूरी काम है बंधुओं। आज पता नहीं कहाँ से ये प्रसंग आ गया। मैं बहुत दिन से सोच रहा था, इन लोगों से सोचता था कि प्रेम से बोल-बोल कर कर दूँ, लेकिन क्या करूँ सीधी उंगली घी ही नहीं निकलता। हमारे लोग टालने की प्रवृति पर आ गए। अभी तक तो कर देना था। मैंने चातुर्मास के शुरुआत में आकर विभिन्न पदाधिकारियों से ये कहा था। उठाये रखो हाथ, अभी पूरा नहीं हुआ। और ये हाथ उठाया हैं आपने, संस्कृति की रक्षा के लिए। ये हाथ उठा हैं, अपने धर्म की रक्षा के लिए। ये हाथ उठाए हैं आपने, अपने परंपरा की रक्षा के लिए। ये हाथ उठाए हैं आपने, अपनी पीढ़ियों की रक्षा के लिए। ये हाथ उठाए हैं आपने, अपने संस्कारों की रक्षा के लिए। और इसमें किसी प्रकार का समझौता, किसी भी हालत में नहीं होना चाहिए। इसके लिए सबको संकल्पबद्ध होने की ज़रुरत है। और ऐसा बहिष्कार करें, की ये कभी स्वीकार न हो। केवल COMMON TV LOBBY में हो, इसके अलावा कुछ ना हो, तो एक बहुत अच्छी शुरुआत होगी। मुझे आशा है कि लोग इस को ध्यान देंगे। यद्यपि सारी संस्थाओं के पदाधिकारी, मुझ से जुड़े हुए हैं, अंदर से चाहते हैं की ये हटे, लेकिन मन में डरते हैं कि हटा देंगे तो कोई रुकेगा नहीं। अरे जब रहेगा ही नहीं, तो कहाँ रुकेगा। कहाँ जाएगा और जब मीटिंगों में बैठते हैं तो कुछ लोग ऐसे होते हैं, जो लोग ऐसी विचारधारा रखते हैं, उनको सामाजिक संस्थाओं में रहने का ही अधिकार नहीं है क्योंकि सामाजिक संस्थाओं में केवल उन्हें रहना चाहिए, जो हमारे सामाजिक संस्कारों और सरोकारों को महत्व देते होँ। जो हमारी संस्कृति की धज्जियाँ उड़ाऐं, जो हमारे संस्कारों पर कुठाराघात करें, वो हमारी सामाजिक संस्थाओं का मुखिया बने, ये कतई उचित नहीं है । और ऐसे लोगों को कभी प्रश्रय नहीं देना चाहिए। बंधुओं, मेरी बात का बुरा लगा हो तो लग जाए मैं चाहता हूँ चाहे जैसे सुधरो, सुधरो तो सही। 

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