क्या न्यायाधीश को मृत्युदंड निर्णय देने पर हिंसा का दोष लगता है?

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शंका

अगर कोई जैन न्यायाधीश (Judge) हो और उनको मृत्युदंड देना पड़े तो उन पर क्या हिंसा का दोष लगेगा?

समाधान

कोई भी न्यायाधीश (Judge) हो, न्यायाधीश अपनी कुर्सी के साथ न्याय करता हैं। जिस आसन पर बैठा हैं उसे उस आसन के अनुरूप निर्णय लेना पड़ता है। न्यायाधीश के कोई भी निर्णय, जिसके विरुद्ध होता है उसका दिल दुखाता है, सामान्य रीति से अगर कहा जाए तो किसी का दिल दुखाना पाप है, हिंसा है। आपने तो मृत्युदंड की बात की है। मन के विरुद्ध कोई भी फैसला हो तो दिल दुखा, दिल दुखा तो स्थूल रूप से वह हिंसा है, ऐसे देखा जाए तो फिर जज महापाप के भागी होंगे लेकिन ऐसा विधान नहीं है। जज ने उसके दिल दुखाने के लिए अपना निर्णय नहीं दिया, जज ने उसे सताने के लिए अपना निर्णय नहीं दिया, दुनिया में कभी कोई किसी को सताए नहीं यह व्यवस्था बनाए रखने के लिए अपना निर्णय दिया हैं इसलिए जज को इसमें कोई दोष नहीं हैं।

रहा सवाल मृत्युदंड का, मृत्युदंड पर आज पूरे विश्व में बहस चल रही है। हमारे गुरुदेव यह कहते हैं कि मृत्युदंड आज के समय में रहना ठीक नहीं है क्योंकि मृत्युदंड देने से उस व्यक्ति को कोई सीख नहीं मिलती जिसे मृत्युदंड दिया जा रहा है, दूसरे उससे सीख लेते हैं। बिगड़े से बिगड़े व्यक्ति के भीतर भी अंत तक सुधार की संभावनाएं बनी रहती है इसलिए मृत्युदंड को जहाँ तक बने टालना चाहिए और भारत में भी रेरेस्ट ऑफ़ दा रेयर केस (Rarest of the Rare Case) में ही मृत्युदंड का प्रावधान है। मुझे जहाँ तक जानकारी है विश्व के कई देशों में मृत्युदंड पर प्रतिबंध लगाया हुआ है, अब इस पर भी विचार होना चाहिए पर यदि कोई जज किसी को मृत्युदंड देता है तो वह हत्यारा नहीं कहलाता; वह तो हत्याओं को रोकने के लिए कानून की बाध्यता से ऐसा निर्णय लेता है।

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