गुणस्थानों में वृद्धि के साथ, क्या सम्यग्दर्शन में बदलाव होता है?

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शंका

क्षायिक सम्यक् दर्शन चौथे गुणस्थान में होता है। वहीं जब पांचवे, छठे और आगे जो संयम हो जाता है जो सिद्ध अवस्था तक रहता है। इनके गुणों में कितना अन्तर है या वो भी एक सा ही रहता है?

समाधान

आगम में श्रुतकेवली के सम्यक् दर्शन को अवगाढ़ सम्यक् दर्शन बताया है और केवली भगवान के सम्यक् दर्शन का परमावगाढ़! दोनों में ही क्षायिक सम्यक् दर्शन है, अब ये अवगाढ़ और परमावगाढ़ में अन्तर है। यह बताता है कि उन स्थानों के अनुरूप सम्यक्त्व की परिणति में भी अन्तर हो सकता है, यद्यपि क्षायिक लब्धियाँ सब दिन एक समान होती हैं, तभी कहा जाता है। लेकिन ये परमावगाढ़ और अवगाढ़ के रूप में जो अन्तर डाला है यही इस बात का प्रमाण है कि जैसे-जैसे ऊपर की भूमिका में जाते हैं, चरित्रमोहनीय के शमन के बाद सम्यक्दृष्टि की परिणति में अन्तर आ जाता है।

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