मैं रोज सरस्वती स्तोत्र पढ़ती हूँ जिसमें सरस्वती को एक देवी के रूप में बताया है और उनके सोलह नाम हैं। क्या ये पढ़ने से सम्यक् दर्शन में दोष लगता है?
सरस्वती स्तोत्र के दो रूप हैं, एक में वीणा पुस्तक धारणी और एक में केवल उसके नाम दिये हैं। इन नामों को हम देखें तो जिनवाणी को शारदा, भारती आदि अनेक नामों से कहा है। ये भगवान की वाणी है, जो स्त्रीलिंग है, उसके प्रति भक्ति की अभिव्यक्ति के रूप में किया गया है।
“शारदा” यानि सारभूत तत्त्व को देने वाली शारदा। भारती जो “भा” यानि केवल “ज्ञान” से रति रखें वो भारती है, जिनवाणी इस तरीके से है। इसमें अलग-अलग नामों को भगवान की वाणी के लिए इस्तेमाल किया गया है।
जिनवाणी को उनके पर्याय के रूप में देखा जाये तो कोई बुराई नहीं है। लेकिन ये बात कभी दिमाग में मत रखना कि श्रुतदेवी के नाम से देवी की भी चर्चा आती है। लेकिन आगम में ऐसी कोई सदृष्य जिनवाणी की नहीं है जो भगवान के मुख से निकली हो और देवी का रूप लिया हो। हमारे यहाँ हमारा कल्याण करने वाली जिनवाणी या सरस्वती तो वही है जो सीधे भगवान के मुख से निकली। “जिन मुखोद भव सरस्वती”! इसलिए नामधारी किसी सदस्य की पूजा अर्चा करें वो बात अलग है पर वो असंयत रूप है। असंयत रूप से सराग रूप कभी पूजनीय नहीं होता।
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