क्या एक द्रव्य दूसरे द्रव्य का कुछ करता है (सूतक क्यों)?

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शंका

हमारे आगम में बताया गया है कि एक द्रव्य दूसरे द्रव्य का कुछ नहीं बिगाड़ सकता; तो जब किसी का जन्म या मरण हो जाता है, तो १२ दिन तक सूतक माना जाता है। वह क्यों मनाया जाता है?

समाधान

दो चीजें होती हैं- एक निमित्त, दूसरा उपादान। कोई किसी दूसरे के कार्य में निमित्त बन सकता है; जैसे मैं इन्हें समझाने का निमित्त हूँ लेकिन ये समझेंगी तब, जब इसमें समझने की उत्सुक्ता व क्षमता होगी। अपने आप नहीं समझ सकती, जब तक कोई निमित्त न मिले। निमित्त की दृष्टि से एक द्रव्य दूसरे द्रव्य का कर्ता है और उपादान की दृष्टि से एक द्रव्य दूसरे द्रव्य का अकर्ता है। 

मैं तो अनेकांत का अनुयायी हूँ, एक बार एक सज्जन ने पूछा कि ‘महाराज जी! एक द्रव्य दूसरे द्रव्य का कुछ करता है?’ हमने कहा कि “करता भी है और नहीं भी करता।” ‘महाराज जी! मतलब क्या है?’ जब मैं अपने में रहता हूँ और मेरे ऊपर कोई उपद्रव हो, कोई प्रतिकूल निमित्त आए तो मैं सोचता हूँ कि मेरा परिणमन है, मेरा परिणाम है। परद्रव्य मेरा कुछ भी बिगाड़ नहीं सकता। मैं अपनी परिणति को क्यों बिगाडूं? अपने आप को सम्भालूँ। जब अपनी तरफ देखने का हो और बाहर प्रतिकूलताएँ आयें तो सोचो कि एक द्रव्य दूसरे द्रव्य का कुछ नहीं करता है। लेकिन जब दूसरे के लिए कुछ करने की बात आए, बुरा करने की बात आये तो एक द्रव्य दूसरे द्रव्य का बुरा भी कर सकता है। एक द्रव्य दूसरे द्रव्य का अच्छा भी कर सकता है। बुरा करेगा तो बुरा होगा और अच्छा करेगा तो अच्छा होगा। इसलिए मैं अच्छा करूँ, कोई दूसरा यदि मेरे लिए शुभ निमित्त है, तो वह शुभ निमित्त मेरा उद्धार कर सकता है, ये बात रखो।

बाहर देखो तो ये मानो कि एक द्रव्य दूसरे द्रव्य का कर्ता है और भीतर देखो तो कोई करने वाला नहीं है। भीतर आने पर दूसरा रहता ही नहीं है। अकेले रहते हैं तब मामला सब ठीक हो जाता है। 

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