क्या भगवान की भक्ति से कर्म कटते हैं?

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शंका

भजन की दो पंक्तियाँ हैं 

“कर्मों का फल तो बंदे भोगना पड़ेगा,

लेकिन प्रभु की भक्ति गम तो कम करेगी, 

कुछ भोगना पड़ेगा कुछ वेग कम करेगी” 

तो भगवन हमें यह बताइए कि क्या प्रभु की भक्ति करने से जो कर्मों को भोगने का वेग कम होता है?

समाधान

इसमें कोई संशय नहीं कि प्रभु भक्ति से कर्म का वेग कम नहीं होता, १०० पर्सेंट कम होता है। बल्कि मैं आपको कह सकता हूँ कि कर्म के वेग को शान्त करने के लिए आपके पास प्रभु भक्ति से श्रेष्ठ कोई माध्यम ही नहीं। जीवन में जब भी कर्म का उद्वेग आये, कर्म की बाढ़ आये, चाहे जैसी तुम्हारे जीवन में विसंगतियाँ आये तो प्रभु भक्ति को अपना लो। हमने पुराणों में तो अनेक कहानियाँ सुनी हैं चाहे वह मैना सुंदरी की हो या अन्य की, प्रभु भक्ति से अपने पाप को पुण्य में परिवर्तित किया। वर्तमान में भी मैंने ऐसे अनेक उदाहरण देखें जिसमें अपने कर्मोंदय के वेग को प्रभु भक्ति से शान्त किया। 

मैं सतना में चातुर्मास में था, सन २००४ की बात है, पर्यूषण पर्व से पूर्व मेरे पास एक पोस्टकार्ड आया। पोस्टकार्ड एक कैदी का था, वह बीकानेर का था, सतना के जेल में बंद था। एक झूठे मुकदमे का शिकार बनकर उसे सजा हो गई थी। उसने पोस्टकार्ड लिखा और पोस्टकार्ड में लिखा ‘आज मेरे कर्मों का उदय है, मुझे मालूम है कि मेरा कोई कसूर नहीं फिर भी मैं अपना कसूर स्वीकार करता हूँ क्योंकि आज का नहीं, अतीत का कसूर तो होगा ही क्योंकि बिना कारण के कार्य नहीं होता। आने वाले दिनों में पर्यूषण पर्व शुरू होने जा रहा है और मैंने अब तक पर्यूषण पर्व एकासन से किया है। अब इस पर्यूषण में मैं क्या करूँ, मुझे समझ में नहीं आ रहा मै क्या करूँ? कहीं से कोई सहयोग मिल जाए और मेरा पर्यूषण पल जाए तो बहुत अच्छा है और इस कर्म के उदय में मैं अपने आपको कैसे संभालूँ, मुझे मार्गदर्शन भी चाहिए।’ मैंने वो पोस्टकार्ड पढ़ा और समाज के लोगों से बोला कि पता लगाओ। समाज के लोग गए, जेलर से बातचीत की। जेलर ने कहा ‘ये आदमी बहुत अच्छा है, इसके परिणाम बहुत अच्छे हैं, भाव भी बहुत अच्छे हैं। फँसा है, अब जेल में है, सजा तो सजा है, अब कानून के माध्यम से जो सजा मिली है, तो मिली।’ फिर भी समाज के लोगों ने जब जेलर से बात की तो आपसी व्यवहार में जो उसको सुविधा मिलनी चाहिए थी, मिली। मैंने उसे एक संदेश भेजा, कुछ मत करो, तुम भक्तामर का नियमित पाठ करो। भक्तामर के प्रताप से मानतुंग आचार्य के बन्धन टूटे हैं तुम्हारे भी बन्धन टूटेंगे। उस व्यक्ति को भक्तामर कंठस्थ था, आप सुनकर के आश्चर्य करोगे उस व्यक्ति ने भक्तामर का पाठ करना शुरू किया और ३ महीने में वह मुक्त हो गया। ऊपरी अदालत से बरी कर दिया गया। 

कर्म के वेग को शान्त करने का माध्यम प्रभु भक्ति, लेकिन कब? जब निष्ठा हो तब! तुम लोगों की दशा कैसी है? इधर करते नहीं, इधर देखते हैं हो रहा है कि नहीं हो रहा, फिर बाद में कहते हैं ‘हमें पता था होगा थोड़ी’, इतनी जल्दी थोड़े ही होता है। खेत में किसान बीज बोता है, निश्चित अंकुर होता है। किसान बीज फेंक के निश्चिंत हो जाता है, अंकुर होगा। लेकिन कुछ लोग होते हैं जो रोज मिट्टी खोद-खोद कर देखते हैं अंकुर निकला की नहीं, निकला की नहीं, अंकुर निकला कि नहीं, बीज भी खत्म हो जाता है। हम तो इतना कहेंगे “तुलसी अपने राम को रीज भजो चाहें खीज और खेत पड़ो जम जाओगे ओंधो सीधो बीज”। बीज डालो अंकुर होगा श्रद्धा होनी चाहिये, श्रद्धा कमजोर, सब कुछ कमजोर।

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