क्या आचार्य श्री सिर्फ दान देने वालों के आहार लेते हैं?

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शंका

प्रायः कुछ लोग कहते हैं कि “तुम्हारे आचार्य श्री उसी व्यक्ति के यहाँ आहार करते हैं जो व्यक्ति दान देता है”, हम उन लोगों को कैसे समझायें?

समाधान

उनको बोलो कि आचार्य श्री को दान देने वाला इतना योग्य बन जाता है कि वह बड़े से बड़ा दान दे दे। मैं आपको बताऊँ बहोरीबंद में जब आचार्य गुरुदेव पहली बार गए सन् २००२ में, तो पहले दिन वहाँ के पुजारी के यहाँ उनका आहार हुआ। वह पुजारी तीन हज़ार रुपये कमाता था। सन् २००३ में हमारा चातुर्मास हुआ। गोपीचंद नाम था उसका। उसने हमें बताया कि “गुरुदेव का हमारे यहाँ आहार हुआ तो हमारे भाव उमड़ गए और हमने ग्यारह हजार का दान दिया।” हमने कहा तुमने ऐसे कैसे दे दिया? तुम्हारी तनख्वा तीन हज़ार है और तुमने ग्यारह हज़ार का दान क्यों दिया? वह बोला महाराज श्री, “हमारे भाव उमड़ आए और आचार्य श्री ने सब व्यवस्था करा दी। हमारे पास बीस बोरा चना था, बारह सौ की तेजी आ गई। सब बराबर हो गया।” इसलिए वे लोग ऐसा कहते हैं जो इस बात को समझते नहीं हैं।

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