मंदिर निर्माण में सहयोग से क्या पुण्य मिलता है?

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शंका

मंदिर निर्माण में सहयोग से क्या पुण्य मिलता है?

समाधान

जिन मन्दिर के निर्माण में सहयोग से होने वाले श्रावकों के कल्याण को बहुत ही प्रशस्त माना गया है। ऐसा कहा गया है कि एक अंगुली के बराबर मन्दिर और एक चावल के बराबर प्रतिमा की भी कोई स्थापना करता है, तो वह जीव निकट भव्य होता है और बहुत थोड़े भवों में उसे मुक्ति कि प्राप्ति हो जाती है। जिन मन्दिर के निर्माण का इससे बड़ा महत्त्व और क्या होगा? शास्त्रों में जिन भगवान के मन्दिर को, जिनबिम्ब की स्थापना को, मन्दिर की व्यवस्था में उपकरण देने को, मन्दिर के रख-रखाव को दान देने के लिये, नित्य पूजा के अन्तर्गत लिया गया है। मतलब ये सब नित्य पूजा है। नित्य पूजा का अर्थ है कि कहीं कोई मन्दिर बनाये तो वह मन्दिर जब तक है तब तक की पूजा का पुण्य उस मन्दिर के निर्माण कर्ता को मिलता है, और केवल उसकी पूजा का नहीं उस मन्दिर में जितने लोग पूजा करते हैं, वंदन करते हैं, दर्शन लाभ लेते हैं, उन सबके पुण्य का हिस्सा उसे मिलता है। 

जो इतने जीवों के भवों का निवारण करे, जिसके निमित्त से जीव को सम्यक् दर्शन की प्राप्ति हो, तो उससे बड़ा पुण्य और क्या होगा? ये अपने द्रव्य का सदुपयोग करने का सबसे अच्छा निमित्त है। 

 चामुण्ड राय ने गोमटेश बाहुबली की प्रतिमा स्थापित की। प्रतिमा का निर्माण कराया। वह उत्तुंग प्रतिमा आज विश्व के आश्चर्यों में से एक है। सात आश्चर्यों में जिसे जोड़ लिया गया, ऐसे बाहूबली भगवान की उस प्रतिमा को १००० वर्ष से अधिक हो गये। दिगम्बरत्व की गौरव गाथा गाते जा रही है, और उस प्रतिमा के दर्शन वंदन से कितने लोगों के भावों में विशुद्धि आती है। आप कल्पना करें हैं कि यह महान कार्य कितने जीवों के सम्यक् दर्शन का करण बन गया, और प्रतिमा बनाने का क्या सौभाग्य मिला। भगवान के नाम के साथ चामुण्ड राय को जाना जाता है। तो अपनी सम्पदा का सदुपयोग करने के लिए इससे अच्छा मौका नहीं है। 

 मैं तो आपके चिंतन के लिए केवल एक ही बात कहता हूँ कि जिस चामुण्ड राय ने भगवान बाहूबली की स्थापना की; उस चामुण्ड राय ने अपना कोई महल भी बनाया होगा। निश्चित उसने महल पहले बनवाया होगा, बाद में भगवान की प्रतिमा की स्थापना की होगी। उसके द्वारा स्थापित भगवान बाहूबली आज भी ज्यों के त्यों खड़े हुए हैं। जन-जन के आराध्य गोम्मटेश बन गये है। लेकिन उसके महल की एक ईंट का भी कोई अता-पता नहीं है। वह महल कहाँ खो गया, कोई पता नहीं है। चामुण्ड राय के वंशजों का अता-पता नहीं। लेकिन चामुण्ड राय अजर-अमर हो गया। जब तक गोम्टेश बाहूबली है, तब तक के लिए चामुण्ड राय है।

 जिनेन्द्र भगवान के मन्दिर के निर्माण का, जिन प्रतिमा की स्थापना का ये बहुत ही महत्त्वपूर्ण पुण्य है और इस पुण्य का लाभ हर व्यक्ति को अपनी शक्ति, परिस्थिति के अनुरूप लेना चाहिए। कुछ स्थलों पर ऐसा भी लिखा है कि जिनके जीवन में आपदायें, विपत्तियाँ आती रहती हैं, परेशानियाँ आती रहती हैं, यदि वो अपने हाथों से जिनेन्द्र भगवान की प्रतिमा स्थापित कर देता है, तो उसकी जितनी आपदाएँ, बलाएँ है वो भी दूर हो जाती हैं, इतना पुण्य उससे अर्जित हो जाता है। ये जिन शासन की अभिवृद्धि के लिए, जिन शासन की प्रभावना के लिए और अपने जीवन के कल्याण के लिए बहुत ही प्रशस्ततम निमित्त है। शक्ति के अनुसार इसका लाभ सभी को प्राप्त करना चाहिए।

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