क्या साधर्मी बंधुओं की सहायता करने से पुण्य होता है?

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शंका

साधर्मी जनों को सहायता देने में हमें पुण्य है कि नहीं है?

समाधान

हमारे यहाँ समदत्ती, पात्रदत्ती, दयादत्ती और अनवय दत्ती के रूप में चार प्रकार दत्ती यानि दान बताए हैं। जो चतुर्विध संघ को आप दान देते हो, वह पात्र दत्ती है। दीन-दुःखी प्राणियों की दया के भाव से जो दान देते हैं, वो दया दत्ती। साधर्मी जनों के लिए आप जो सहयोग देते हैं- धन आदि का वो समदत्ती कहलाता है और अपने पौत्र और पुत्र के अभाव में अपने दत्तक पुत्र को अपना धन और धर्म जो रोपा जाता है, अपनी वंश और परम्परा चलाने के लिए उसको बोलते हैं, अनवय दत्ती। तो समदत्ती को एक श्रेष्ठ दत्ती कहा है और ये देना ही चाहिए। साधर्मी का सहयोग सब तरीके से करना चाहिए। आपको जब कभी भी चुनाव करना हो तो आप सबसे पहले साधर्मियों का चुनाव करें। साधर्मियों को देने के विषय में आचार्य वीरनंदी ने अपने आचार्य सार में एक बात लिखी- 

जैनानापद्गतांस्तस्मादुपकुर्वन्तु सर्वथा

यः समर्थोंऽप्यु पेक्षेत सः कथं समयी भवेत् ॥ ६५ ॥

आपत्ति ग्रस्त धर्मात्माओं का सब प्रकार से उपकार करना चाहिए। जो समर्थ होकर भी उनकी आपत्तियों को दूर करने में उपेक्षा करता है वो सम्यग्दृष्टि कैसे हो सकता है? वो जैनी नहीं हो सकता।

इसलिए मैं तो कहूँगा, कोई भी साधर्मी यदि तुम्हें कमजोर दिखे तो सबसे पहले उसे मजबूत बनाओ क्योंकि आचार्य समंतभद्र महाराज कहते हैं कि “न धर्मो धार्मिक बिनाः”धर्मात्मा के बिना धर्म नहीं।

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