आत्मा का गुण है-ज्ञान और दर्शन। जब हमें anesthesia दिया जाता है, बेहोशी में होते हैं, तब हमारी आत्मा का क्या होता है? क्या उस समय हम आश्रव और बन्ध दोनों करते है?
अगर किसी को anesthesia दिया गया तो उसका मतलब क्या है? वह अचेत नहीं है, निष्क्रिय है। अचेत यानी प्राणशून्य होना; और निश्चेष्ट यानि क्रियाशून्य होना। जब कभी भी anesthesia दी जाती तो उस समय व्यक्ति का blood circulation चलता रहता है, बॉडी का फंक्शन चलता रहता है पर उसकी फीलिंग नहीं होती। मतलब उस पद्धति के द्वारा हमारे माइंड तक इंफॉर्मेशन पहुँचना बंद हो जाता है। और माइंड को जब मैसेज नहीं मिलता, तो माइंड किसी तरीके से डिस्टर्ब नहीं होता। उसकी feeling नहीं होती। कहने का तात्पर्य है कि इस anesthesia या बेहोशी की स्थिति को आप निश्चेत न मानें, निश्चेष्ट माने। जैसे सोते समय भी हम निश्चेष्ट हो जाते हैं। तो जब तक हमारे अन्दर चेतना है, तब तक हमारे अन्दर चेतना की प्रवृत्ति है। और जब तक चेतना है, चेतना की प्रवृत्ति है, तब तक आश्रव-बन्ध होगा। तो कर्म का बन्ध, अचेत अवस्था तो बहुत दूर है, विग्रह गति में भी होता है। क्योंकि हमारी आत्मा की आन्तरिक सक्रियता हर स्थिति में बनी रहती है। तो मन योग भी होगा, वचन योग भी होगा, काय योग भी होगा। मन योग अचेत अवस्था में आंशिक रुप से हो सकता है।
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