रसोई में काम करते हुए भी धर्म ध्यान और स्वाध्याय करें

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शंका

रसोई में काम करते हुए भी धर्म ध्यान और स्वाध्याय करें

समाधान

ज्यादातर समय रसोई में ही बीतता है, तो रसोई में काम करते हुए धर्म ध्यान और स्वाध्याय कैसे करें? बात सही है। स्वाध्याय तो स्वाध्याय कक्ष में होता है, मंदिर में होता है, पूजन पाठ में और धार्मिक क्रियाओं में धार्मिक स्थलों पर होता है। लेकिन रसोई घर में धर्म ध्यान कैसे करें, स्वाध्याय कैसे करें? 

देखो, प्रायः रसोई की क्रिया को आरम्भ की क्रिया, पाप की क्रिया निरूपित किया जाता है। लेकिन हमारे आचार्य कहते हैं कि आप कोई भी क्रिया करें विचार और विवेक पूर्वक करेंगे तो आपकी वही क्रिया धर्म की क्रिया हो सकती है। मैं महिलाओं के लिए कहना चाहता हूँ, इन्होंने पूछा हैं कि रसोई में धर्म ध्यान और स्वाध्याय कैसे करें? 

तो पहली बात तो रसोई में आप जो भी काम कर रहे हैं विचार विवेक से करो। हमारे गुरुदेव कहते हैं कि जो महिला ठीक ढंग से, जैसी हमारी शास्त्र की विधि बताई है, उस प्रकार से भोजन बनाने की क्रिया को संपन्न करती है, शुद्धता के साथ, प्रासुकता के साथ, और अहिंसा का ख्याल रखते हुए तो वह वहाँ पर भोजन नहीं बना रही है, क्रिया कोष का स्वाध्याय कर रही है। 

‘मुझे क्या बनाना है, कैसे बनाना?’, जीवों को बचाकर आप साग सब्जी बनाते हैं, सुधारते हैं, तो उसको देखकर दया पूर्वक, अनाज को शोधते हैं, सुधारते हैं देख कर के दया पूर्वक और भी जो अग्नि आदि जलाते हैं उसमें विचार विवेक पूर्वक कार्य करें, यत्नपूर्वक। यत्नाचारी प्रवृत्ति करें। तो यह आपका स्वाध्याय है माने उस घड़ी भी आपके मन में यह बात जगेगी कि “नहीं, मुझे यह क्रिया ऐसी नहीं करनी है। इस प्रकार की क्रिया करने का अंजाम दूसरा हो जाएगा। इसमें जीव हिंसा है। मेरा मूल धर्म अहिंसा है। मुझे अहिंसा का अनुपालन करना है। यथासंभव शुद्धि का पालन करना है। यह विचार और विवेक यदि तुम्हारे मन में चौके में है तो तुम चौके का काम करते हुए भी स्वाध्याय कर रहे हो ऐसा समझना। और इससे क्या लाभ होगा? जीव दया पलेगी तो जीव दया के पालन से एक पाप की क्रिया में भी पुण्य का बंध तुम्हारे साथ होता रहेगा। 

दूसरी बात, वहाँ आप धर्म ध्यान कर सकते हो। रोटी बनाना है, भोजन बनाना है हाथ से बनाना है, मुँह से तो नहीं बनाना है? तो क्या करो? मुँह से भगवान का नाम लेना शुरू कर दो। पाठ करो, स्तुति पढ़ो, पूजा पढ़ो और अपने मन को किसी शुभचिंतन में लगा दो। तो पूजा की क्रिया को संपन्न करते करें। भोजन बनाने की क्रिया को संपन्न करते हुए भी आप भगवान की पूजन का लाभ ले सकते हो, स्तुति का लाभ ले सकते हो। इसका लाभ क्या होगा? इससे दोहरा लाभ होगा। पहला तो आप अशुभ से बचोगे, पुण्य उपार्जन करोगे। दूसरा आपकी रसोई में पॉजिटिव एनर्जी बढ़ेगी और उससे आपके द्वारा तैयार भोजन सबके लिए स्वास्थ्यप्रद होगा, तन के लिए और मन के लिए। 

इसीलिए मैं सबसे कहना चाहता हूँ खासकर गृहिणिओं के लिए कि रसोई घर में एकदम प्रसन्न रहा करो। वहाँ किच किच नहीं। हमारे यहाँ पुराना शब्द है रसोई। रसोई का मतलब जहाँ रस जगे, यानी बाहर का भी रस और भीतर का भी रस। अब हो गया है किचन, जहाँ किच किच हो। जहाँ किच किच करोगे तो कच कच मचेगी। तो किच किच से बचो। मन को पवित्र बना कर के रखो जितनी देर काम करें। प्रायः आजकल तो एकल परिवार है। रसोई में महिलाएं अकेले रहती है। पर मैंने एक दो जगह देखा है ऐसा की रसोई में भी टीवी हो जाती है। रसोई में टीवी रखोगे तो खाने वाले को टी बी हो जाएगी, गड़बड़ हो जाएगा। उस समय तो अपने आप को कहीं तो बचाओ। कहीं तो शुभ में अपने आप को रमाने का प्रयास करो। यह अवसर है आपके पास। दो घंटा भी रसोई में अगर आप लगातार देते हैं तो आप बैठे बैठे बहुत कुछ धर्म ध्यान कर सकते हैं। कुछ अच्छा पढ़ो कुछ अच्छा सुनो और कुछ अच्छा गुनगुणाने लगो। तो उसका बहुत अच्छा लाभ होगा। आपको कुछ नहीं आता। णमोकार मंत्र तो आता है? तय कर लो जब तक मैं रसोई का काम करूँगी तब तक णमोकार जपूँगी। उतनी देर मेरा मौन। हो सकता है? यह तो अवसर है। 

देखो धर्म करने के लिए बहुत अवसर है, यदि आप चाहो तो। लोग बोलते हमको धर्म करने के लिए टाइम ही नहीं मिलता। मैं कहता हूँ सफ़ेद झूठ है। जितना समय आपको धर्म करने के लिए मिलता है उतना किसी के लिए नहीं मिल सकता। जब खाली हो भगवान का नाम लो यही तो धर्म है। है कि नहीं है? तो आप अपनी रूचि को जगाईये और उसी अनुरूप अपने आप को मोड़िये, निश्चित परिणाम आएगा।

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