क्या देवों में भी ईर्ष्या भाव होता है?

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शंका

कहते हैं कि देवों में भी एक दूसरे को देखकर ईर्ष्या भाव आता है, तो क्या उनको भी डिप्रेशन (अवसाद) होता होगा?

समाधान

जहाँ ईर्ष्या होगी, वहाँ डिप्रेशन होगा। विकार मनुष्य को प्रभावित करते हैं। छोटे लोगों का टेंशन (तनाव) छोटा होता है, बड़े लोगों का टेंशन बड़ा होता है। देवता लोग हम लोगों की अपेक्षा ज्यादा बड़े होते हैं तो उन पर तनाव बहुत हावी होता है और वह बहुत तकलीफ़ में रहते हैं, जलते- कुढ़ते हैं, बहुत वेदना होती है। 

देवों के साथ एक दुविधा यह होती कि उन्हें अपने से बड़े देवों के सामने हमेशा थर्ड-बटन (कॉलेजों में रैगिंग के दौरान जूनियरों की अवस्था जिसमें वे नज़र को अपनी कमीज़ के तीसरे बटन पर रखते हैं, नज़रें उठा के बात नहीं कर सकते) ही रहना पड़ता है। कह सकते नहीं, कर सकते नहीं और सह सकते नहीं! उनकी यह समस्या बड़ी विकराल और जटिल बनती है। ललितांग देव के प्रसंग में आया है कि ललितांग देव तो एकदम डिप्रेशन में चला गया। आदिपुराण में एक प्रसंग आता है जहाँ उसमें एकदम डिप्रेशन के लक्षण देखने को मिलते हैं। मिथ्यादृष्टि देवों में डिप्रेशन आ जाता है और यही सम्यक् दर्शन का कारण भी बन जाता है। जिन देवों की होनहार अच्छी होती है, उन देवों में, अपने से वैभवशाली देवों को देखने के बाद हृदय में विशुद्धि की भावना जागती है और वे उसे सम्यक् दर्शन का निमित्त बना लेते हैं। इसलिए कभी अपने से बड़ों को देख कर जलने की जगह अपना अन्तर विश्लेषण करो, आगे बढ़ जाओगे; लेकिन जलोगे तो जलते रह जाओगे।

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