श्वेताम्बर समाज और दिगम्बर समाज के पर्यूषण पर्व में अन्तर क्यों?

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शंका

श्वेताम्बर समाज और दिगम्बर समाज के पर्यूषण पर्व में अन्तर क्यों?

समाधान

श्वेताम्बर परम्परा में पर्यूषण पर्व आठ दिन का मनाया जाता है; भादो सुदी चौथ को उसे पूरा माना जाता हैं और भादो सुदी पञ्चमी को उनके यहाँ संवतसरि होती है। हमारे यहाँ पञ्चमी से लेकर चतुर्दशी तक मनाया जाता हैं। 

पर्यूषण पर्व मनाने के पीछे की मूल भावना; सात प्रकार की सुवृष्टियाँ संपन्न हो जाने के बाद जब सृष्टि का अभ्युदय होता है, सृष्टि की शुरुआत होती है, तो हम उसकी शुरुआत धर्म से करना चाहते हैं। यह युगारम्भ का द्योतक है, इसलिए उस काल में पर्यूषण मनाया जाता है।

श्वेताम्बर परम्परा में मुख्य रूप से कल्पसूत्र आदि का वाचन होता हैं और यह आठ दिन चलता है। हमारे आगम में ऐसा बताया है कि श्रावण वदी एकम से लेकर भादो सुदी चौथ तक सात-सात प्रकार की सात सुवृष्टियाँ ४९ दिन तक होती हैं जो चतुर्थी तक होती हैं। उनके यहाँ अन्तिम ७ दिनों में माना जाता है और हमारे यहाँ चतुर्थी संपन्न होने के बाद पञ्चमी से जब सात सुवृष्टियाँ हो जाती हैं तब १० दिन तक युगारम्भ के प्रतीक स्वरूप दशधर्म का अनुपालन किया जाता है।

आपने पूछा ‘दसलक्षण शब्द कितना पुराना है?’ 

दसलक्षण पर्व की परम्परा के विषय में हम बात करे, हमारे यहाँ पर्यूषण पर्व तो मिलता है; दसलक्षण पर्व शब्द बहुत पुराना नहीं मिलता। ‘धम्मं दहलक्खनीयं’ यह तो ज़रूर मिलता है। दसलक्षण धर्म की चर्चा तो हमारे आगम में बहुत प्राचीन काल से है। लेकिन, दसलक्षण पर्व अभी अन्वेषण का विषय है। मेरे ख्याल से यह बहुत पुराना नहीं है। हमारे यहाँ पर्यूषण, पज्जुषण यह दोनों शब्दों का भी प्रयोग होता है। इन दोनों पर विशेष छानबीन करने के उपरान्त ही कुछ निर्णय दिया जा सकता हैं।

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