सम्यकदृष्टि और मिथ्यादृष्टि में अन्तर

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शंका

सम्यकदृष्टि और मिथ्यादृष्टि में अन्तर

समाधान

सम्यक दृष्टि की बाहरी और भीतरी परिणति क्या  होती है, ये देखना है, तो थोड़ी प्रतीक्षा करो, गुणायतन में आपको यही देखने को मिलेगा।

 क्या है मिथ्या दृष्टि और क्या है सम्यक दृष्टि? वास्तव में दोनों की बाहरी परिणति में कोई अंतर नहीं दिखता है, लेकिन दोनों के मनोभाव में बड़ा अंतर होता है। यह भीतर का जो बारीक़ अंतर है, यही दोनों को पूरब से पश्चिम में ले जाता है। एक का उद्देश्य संसार और संसारिकता का पोषण है और दूसरे का उद्देश्य परमार्थ से जुड़ा है। वह परमार्थ की उपलब्धि के लिए जाता है। सारा खेल मनुष्य के मन के अभिप्राय से जुड़ा होता है, तो यह दोनों में बहुत बड़ा अंतर है। एक व्यक्ति है जो संसार के राग रंग में ही रस लेता है और एक व्यक्ति है जो संसार के राग रंग में रहता ज़रूर है, पर उसके अंदर रस नहीं लेता है। एक सम्यक दृष्टि भी घर-परिवार का संचालन करता है और एक मिथ्या दृष्टि भी घर-परिवार का संचालन करता है। मिथ्या दृष्टि घर-परिवार और संसार के अन्य कर्तव्यों को कर्त्ता बुद्धि से करता है और सम्यक दृष्टि उसे कर्तव्य भावना से करता है। दो लाइन में, मैं इस पूरी बात की समीक्षा करता हूँ।

रे सम दृष्टि जीवड़ा, डरे कुटुम्ब प्रति पाद

अन्दर से न्यारा रहे, धाय खिलाये भात।

धाय बच्चे को खिलाती है और ऐसा मातृत्व उड़ेलती है कि उस बच्चे को भी यह भ्रम हो जाता है कि यही मेरी असली माँ है। अपना सम्पूर्ण मातृत्व उस बच्चे पर उड़ेल देती है। उसे दूध पिलाती है, खिलाती है, नहलाती है, कई बार तो ऐसा देखने में आता है जो काम माँ नहीं कर पाती है, वह धाय कर देती है। लेकिन धाय यह जानती है कि बेटे का पालन में ज़रूर कर रही हूँ, पर यह मेरा बेटा नहीं है। अन्दर से न्यारा रहे; सब कुछ मैं कर रहा हूँ, लेकिन यह सब मुझसे भिन्न है। इसलिए संसार में रहते हुए भी संसारिकता उस पर हावी नहीं होती है।

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