मोह, वात्सल्य और करुणा में क्या अन्तर है?

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शंका

मोह, वात्सल्य और करुणा में क्या अन्तर है?

समाधान

एक बेटा है उसको कुछ हुआ, माँ का मन मचल उठा। उसे एक छोटा सा कांटा चुभा, माँ मचल गई। बेटा दूर चला गया, माँ घर बैठे रो रही। पढने के लिए गया है खुद विदा किया है पर बेटा बाहर पढ़ने के लिए गया है, बेटा चला गया है, इंजीनियरिंग करेगा, साल की पढ़ाई करेगा, बाहर गया, बाहर गया यह जो मन में एक प्रकार की स्थिरता है, उद्वेग है, ये मोह है। किसी व्यक्ति के प्रति हमारा सहज आकर्षण हुआ और उसके गुणों के प्रति अनुराग करके हम उसके लिए कुछ करना चाहे यह वात्सल्य हुआ। किसी धर्मात्मा को हमने देखा और हमने सहज ही उसके प्रति अपना प्रेम प्रकट कर दिया यह वात्सल्य है, इसमें हमारी कोई अपेक्षा नहीं। माँ और बेटे के साथ ममता का सम्बन्ध होता है वात्सल्य का नहीं। वात्सल्य निष्कपट होता है, निरपेक्ष होता है, जिससे मेरा कोई लेना नहीं, देना नहीं उस व्यक्ति के प्रति भी जो प्रेम की अभिव्यक्ति है वो वात्सल्य है। इसे कहूं, सात्विक प्रेम की अभिव्यक्ति का नाम वात्सल्य है। करुणा – किसी को दुखी देखकर के मन का पीड़ित हो जाना, द्रवीभूत हो जाना करुणा है। वात्सल्य दुखी पर हो ऐसा नहीं, सुखी पर भी होगा और करूणा सदैव दुखियों पर होती है जो हमारे अन्दर की संवेदना की अभिव्यक्ति है। आपने मोह, वात्सल्य और करुणा इन तीन में अन्तर पूछा, चौथा और जोड़ दो वासना। वासना में भी लगाव है लेकिन वह सविकार है, निर्विकार नहीं है साकांक्ष है, कुछ अपेक्षा है, वो देहानुराग हैं और वात्सल्य आत्मा अनुराग है, सहज अनुराग है, व्यक्ति के गुणों के प्रति अनुराग वात्सल्य है। वात्सल्य और वासना में जमीन आसमान का अन्तर है। देखने में दोनों में आकर्षण है लेकिन दोनों के प्रति बहुत अन्तर है, उदाहरण कहूं, लक्ष्मण के मन में सीता के प्रति आकर्षण था और कुछ पल के लिए सूपनखा लक्ष्मण की ओर आकर्षित हुई थी। लक्ष्मण ने पूरे जीवन सीता को माँ के रूप में देखा, भाभी के रूप में नहीं, सीता और लक्ष्मण के बीच का जो सम्बन्ध था वह रागात्मक तो था पर वात्सल्य से आपूरित था, यही कारण है कि सीता हरण के बाद अचानक जब आभूषण मिले तो रामचंद्र जी बोल रहे, देख ये केयूर सीता के प्रतीत होते हैं, कुंडल सीता के प्रतीत होते हैं, हार सीता के प्रतीत होते हैं तब लक्ष्मण मौन और कोई उत्तर नहीं, अचानक जब बिछिया पर ध्यान गया तो कहा, बड़े भैया, मुझे यह नहीं मालूम कि हार, कुंडल और केयूर किसके हैं पर यह मैं पक्के तौर पर जानता हूँ कि बिछिया माता सीता के हैं क्योंकि मैं रोज जब उनकी पाद वन्दना के लिए जाता था, ये उनके हैं, मेरी नजर इस पर पड़ती थी, यह वात्सल्य है। इतने समय तक साथ रह कर के भी जिसने नजर उठाकर भाभी को नहीं देखा, ये वात्सल्य है और सूपनखा आई लक्ष्मण के पास, उसका आकर्षण देह आकर्षण था। वह अपनी काम पिपासा की पूर्ति चाहती थी। यही वजह है कि पहले रामचन्द्र के प्रति सूपनखा आकर्षित हुई और जब उन्होंने समझाया तो लक्ष्मण के पास चली गई। सूपनखा पहले रामचंद्र जी के पास आई और जब रामचंद्र जी समझाया तो लक्ष्मण के पास चली गई, नतीजा क्या निकला? नाक कट गई, इसका मतलब क्या है? वात्सल्य हमारी लाज बढाता है वासना सदैव नाक कटाता है। वात्सल्य से नाक कटती है, नाक काटी, लक्ष्मण ने नाक काटी, मैं नहीं मानता। सूपनखा की नाक कट गई, क्यों कोई स्त्री सारी मर्यादा और लज्जा को त्याग करके किसी पर पुरुष के सामने अपना प्रस्ताव प्रस्तुत करें और ठुकरा दी जाए इससे बड़ी नाक और क्या कटेगी, यह दोनों में अन्तर है इसे समझना। मोह, वासना, वात्सल्य और करूणा यह सब अलग-अलग चीजें हैं जो हमारी अपनी परिणतियाँ है, तो हमारी कोशिश हो हम मोह से मुक्त हो, करूणा भावी बने और वासना से मुक्त होकर वात्सल्य को बढ़ायें।

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