क्या तीर्थंकरों के काल में भी चैत्य-चैत्यालय हुआ करते थे?

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शंका

क्या तीर्थंकरों के काल में भी चैत्य-चैत्यालय हुआ करते थे? तीर्थंकर अपने से पूर्व के तीर्थंकरों की आराधना कैसे करते थे? क्या जैन लोगों का एक पन्थ नहीं हो सकता?

समाधान

तीर्थंकरों के काल में चैत्य-चैत्यालय का वर्णन आता है। हमें ये पता है कि जब अयोध्या नगरी की रचना हुई तो इन्द्र ने अयोध्या में एक जिनालय की स्थापना की। बिना जिन प्रतिमाओं के गृहस्थों का जीवन ही नहीं चलता, यह तो हमारी शास्त्रीय बात है। पुरातात्विक आधार पर मैं बताता हूँ भगवान महावीर के काल में भी जीवक स्वामी के नाम से एक भगवान महावीर की प्रतिमा थी। कलिंग में कलिंग जी के नाम से भगवान ऋषभदेव की एक प्रतिमा थी। उस काल में भी पूजा-अर्चना हुआ करती थी। इन सबके अभिलेखीय साक्ष्य मिलते हैं। चैत्य वृक्षों का वर्णन भी हमारे शास्त्रों में है। जिन मन्दिरों का वर्णन भी हमारे शास्त्रों में मिलता है।

 पंथ एक नहीं हो सकता, पन्थी एक हो सकता है और जब पन्थी एक होता है, तो मामला ही कुछ और हो जाता है। पन्थी के होने की ताकत पिछले 24 अगस्त 2015 को आप सब लोगों ने देखी भी है। बस मैं यही कहता हूँ तुम्हारा पन्थ जो भी हो याद रखो जब मौका मिले तो सब पन्थी एक हो जाओ।

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