भक्तामर स्त्रोत्र लिखते समय क्या आचार्य मानतुंग के हाथ में कॉपी-पेन था?

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शंका

मानतुंग जी जब बेड़ियों में बन्धे थे तब उनके हाथ में क्या कॉपी-पेन था?

समाधान

ध्यान रखो, कॉपी-पेन का इस्तेमाल वो करते हैं जो कमजोर होते हैं। जिनकी अन्तर की प्रज्ञा खुली हुई होती है उनको कॉपी-पेन की जरूरत नहीं पड़ती। कबीर ने कभी कॉपी-पेन का इस्तेमाल नहीं किया। लेकिन कॉपी-पेन वालों ने उनके साहित्य पर डॉक्टरेट कर लिया। 

ज्ञान अन्दर से प्रस्फुटित होता है, भक्ति अन्दर से प्रस्फुटित होती हैं। मानतुंग मानतुंग थे; वे अपने चैतन्य के सर्वोच्च शिखर पर बैठे थे। उनके भीतर से ज्ञान का निर्झर झरा, भक्ति का प्रवाह प्रकट हुआ जो स्तोत्र के रूप में अपने आप बनता गया। उन्होंने छंद रचा नहीं; उनके मुख से उच्चारित हर अक्षर शब्द बना, पद्य बना और हर पद्य मिल करके स्वयं छंद बन गया और ये काम हो गया।

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