आगम के अनुसार अकाल मरण और अपकर्ष काल की व्याख्या!

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शंका

आगम के अनुसार अकाल मरण और अपकर्ष काल की व्याख्या!

समाधान

आगम के अनुसार अकाल मरण होता है। एक बार वाचना चल रही थी उसमें एक प्रश्न आया, “अकाल मरण होता है या नहीं?” एक विद्वान् महाशय बोलने लगे-“व्यवहार से होता है, निश्चय से नहीं होता।” आचार्य महाराज ने कहा- “पंडित जी! निश्चय से तो मरण ही नहीं होता, मरण ही व्यवहार है।” निश्चय में न जन्म है, न मरण है इसलिए इन विवादों में पड़ने से कोई लाभ नहीं। आगम में अकाल मरण को कदलीघात मरण की संज्ञा दी है और इसके पर्याप्त उल्लेख मिलते हैं।

जीव के द्वारा आयु बांधने के योग्य परिणाम होते हैं, उस काल को अपकर्ष काल कहते हैं। एक जीव के जीवन में आठ अवसर ऐसे आते हैं, मनुष्य-तिर्यंचों की अपेक्षा बता रहा हूँ। वह भी अपनी वर्तमान आयु के दो तिहाई व्यतीत होने के बाद जब एक तिहाई आयु अवशिष्ट रहती है, तो अपकर्ष काल आता है। जैसे किसी जीव की आयु 81 वर्ष की है, तो 54 वे वर्ष में उसका पहला अपकर्ष काल होगा। यदि उस समय उसकी आयु नहीं बन्धी तो शेष बची 27 वर्ष की आयु में 18 वर्ष और बीत जाने के बाद यानि 72 वर्ष की आयु में दूसरी बार। अगर वहाँ भी नहीं हुआ तो 9 वर्ष की आयु में 6 वर्ष निकल जाने पर 78 वर्ष की उम्र में तीसरी बार। अगर 78 वर्ष में भी नहीं हुए तो शेष बची आयु यानी 3 वर्ष की आयु में दो तिहाई निकाल दिया यानि 2 वर्ष निकाल दे तो 80 वर्ष की आयु में तीसरी बार ऐसे 8 मौके आते हैं जिसमें जीव आयु कर्म के बन्ध के योग्य होते है।

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