क्या साधू को आहार देने से पहले उसे चख सकते हैं?

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शंका

आहार बनाते समय सब चीजों का ध्यान रखते हैं, लेकिन कई बार पपीता कड़वा हो जाता है, खीरा कड़वा हो जाता है। क्या आहार बनाते समय किसी को चखा सकते हैं?

समाधान

बिना चखाए तो बनाना ही नहीं चाहिए। आज लौकी है, तोरु है, तुरई है ये सब चीजें कड़वी होती हैं और कई बार इनके भयानक परिणाम होते हैं। हम लोग क्षमा सागर जी के साथ थे, १९९१ में सतना चातुर्मास था। उनके खाने में कड़वी लौकी आ गई। उन्होंने एक ग्रास लिया था और उसे उगला नहीं, ले लिया और उसके बाद फिर कुछ नहीं लिया। पर उस दिन उनकी हालत ऐसी खराब हुई कि पूछो मत। ४० तो दस्त हुए और अनगिनत उल्टी, पल्स भी एकदम ढीली हो गई थी। कैसे उनका दिन निकाला हमलोग ही जानते हैं। दूसरे दिन आहार के बाद ठीक हुए। 

तो लौकी, तोरु, खीरा कोई भी चीज हो पहले आप किसी से चखवा लें फिर साधु को दें तो इसमें कोई दोष नहीं है, बल्कि यही श्रावक का विवेक है।

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