क्या सम्यग्दर्शन और सल्लेखना साथ-साथ हो सकते हैं?

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शंका

पहले सम्यक् दर्शन फिर सल्लेखना, क्या दोनों साथ-साथ होते हैं?

समाधान

सम्यक् दर्शन और सल्लेखना की जहाँ तक बात है, सम्यक् दर्शन हम कहाँ से लें? अपने आपको सम्यक् दृष्टि की भूमिका में लाकर सल्लेखना करो। और मैं तो कहता हूँ कि कोई व्यक्ति अच्छे तरीके से सल्लेखना करता है, मेरा अनुभव तो यही बताता है कि सल्लेखना करने वाले का जो हो सो हो, सल्लेखना देने वाले को सम्यक् दर्शन हो जाता है। उसे भेद विज्ञान का साक्षात् रूप दिखता है। इसलिए सल्लेखना जीवन का एक अनुपम अवसर है, और हर व्यक्ति को आचार्य उमास्वामी की इस उक्ति को चरितार्थ करते हुए, 

“मारणान्तिकीं सल्लेखनां ज्योषिता” तत्वार्थ सूत्र २२, अध्याय ७

अपने जीवन के अन्त तक सल्लेखना का मनोभाव बनाकर रखना ही चाहिए। इसी से जीवन का उद्धार होगा। सम्यक्त्व सहित सल्लेखना धारण करने वाले तीन भव से आठ भव के भीतर निश्चित रूप से मुक्ति को प्राप्त कर लेते हैं।

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