क्या पूजन, तप और ध्यान से कर्मों की निर्जरा हो सकती है?

150 150 admin
शंका

पूर्व भवों के जो कर्मों के उदय में आने के कारण हम गृहस्थ किसी न किसी दुःख से दुखी है चाहे वह कर्म थोड़े समय के हों या निधत्ति निकाचित पर्याय के हों। लेकिन क्या हम पूजन, तप और ध्यान से उन कर्मों की उदीर्णना को और उनके प्रभाव को कम कर सकते हैं?

सुधीर जैन, कटनी

समाधान

हमारे पुरुषार्थ में बहुत बड़ी ताकत है। यह तय है कि कर्म एक बहुत बड़ी शक्ति है, लेकिन इस बात को ध्यान में रखना चाहिए कि कर्म की सत्ता से धर्म की सत्ता बड़ी है अज्ञानता में हम कर्म बाँधते हैं, ज्ञान से हम कर्म का निवारण कर सकते हैं। हमारे ज्ञान में इतनी बड़ी ताकत है कि अनन्त जन्मों के कर्मों को हम एक अन्तर मुहूर्त में समाप्त कर सकते हैं,  यदि हमारे अन्दर उपयोग जागृत हो तो। 

हमारे जीवन में जब कभी ऐसी स्थिति आए तो ज्ञानमूलक जीवन जीने का अभ्यास करें। आपने पूछा है उद्यागत कर्म की उदीर्णना को हम कैसे रोकें? उपयोग को जागृत रखें, कर्म के उदय से अपने आप को यथासम्भव अप्रभावित रखने की कोशिश करें। आपके पापकर्म का उदय आ रहा है, प्रतिकूल निमित्त सामने बनकर आ रहा है और आप विचलित हो रहे हैं, तो आप नए कर्म का बन्ध कर रहे हैं, पुराने को भोगते हुए नये कर्म का बन्ध कर रहे हैं। यदि पापोदय है और आपने अपने मन में समता रख ली तो आप उस कर्म को भोग नहीं रहे है, आप अपने कर्मों को काट रहे हैं। उस कर्म की निर्जरा हो रही है, नष्ट हो रहा है। तो हमारे लिए कर्म के क्षय का सबसे अमोघ अस्त्र है समता। हम जितनी समता अपने हृदय में बढ़ायेंगे, हमारे कर्मों की उतनी प्रगाढ़ निर्जरा होगी। 

सन् 1985 की आहार जी की बात है, उस समय गुरुदेव हमें पढ़ते थे, हमारे संघ में सब साधु आसनजय का अभ्यास करते थे। १८ घंटा, २० घंटा, २४ घंटा, ३६ घंटा, प्राय: होड़ रहती थी संघ में, एक-एक आसन में सारे महाराज रहते थे, उन दिनों हम ब्रह्मचारी थे तब भी हम लोगों ने अभ्यास किया। सब महाराज लोग करते थे, उत्साह बढ़ता था, एकासन-उपवास करते थे, उपवास के साथ इस तरह का ध्यान करते थे। एक दिन उन्होंने बहुत अच्छी बात कही- “एक आसन में बैठे-बैठे यदि घुटने में दर्द हो रहा है, तो ये मत सोचो कि घुटने में दर्द हो रहा है, यह सोचो आसाता जा रही है, जाने दो, पिंड छूटा।” ये कर्म निर्जरा करा देती है। हमारी दृष्टि वैसी होनी चाहिए।

कर्म के उदय में पीड़ा होती है पर हम पीड़ा के क्षणों में पीड़ित हो यह कोई जरूरी नही। कर्म पीड़ा देता है और पीड़ित करता है हमें हमारा अज्ञान। यदि हम अपने ज्ञान को जागृत रखें तो कैसा भी कर्म उदय क्यों न हो, हम कभी पीड़ित नहीं होंगे और उस स्थिरता में ही कर्म पुंज के पुंज झड़ते हैं।

जो उस स्तर पर नहीं जा पाते वे क्या करें? आप पूजा, भक्ति, पाठ, जाप आदि से भी अपने कर्मों की निर्जरा कर सकते हैं। अशुभ का निवारण शुभ से होता है, जब भी अशुभ का उदय आने लगे, आप शुभ से उसका निवारण करने का प्रयास करें, जीवन सफल होगा।

Share

Leave a Reply