णमोकार मन्त्र से जीवन का कल्याण

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शंका

णमोकार मन्त्र से जीवन का कल्याण

समाधान

मेरा अनुभव तो यह बताता है कि आज के दौर में शास्त्रों के ज्ञान रखने की अपेक्षा कम ज्ञान रखने वाले का जल्दी कल्याण होता है क्योंकि जो ज्यादा बुद्धिवादी होते हैं वे तर्क-वितर्क में उलझ जाते हैं लेकिन आपापर का ज्ञान अगर है, तो वह व्यक्ति बहुत जल्दी अपना कल्याण कर सकता है। शिवभूति महाराज को तो णमोकार का भी ज्ञान नहीं था, आचार्य कुन्दकुन्द के युग में भी यह प्रसंग था जो आचार्य कुन्दकुन्द ने दो उदाहरण दिए- एक शिवभूति का, एक भव्यसेन का। 

शिवभूति का उल्लेख करते हुए कहा- उन्हें यह भी पता नहीं था कि छिलका (तुस) और दाल (मास) अलग होते हैं। यह गुरु ने मन्त्र दिया था वो भी भूल गये, लेकिन समझ में आ गया तो उन्होनें उसके भाव को पकड़ा। वो तुस मास के अर्थ को भूल गये। आहार के लिए जा रहे थे, एक महिला से पूछा “क्या कर रही हो”, तो बोली “कुछ नहीं तुस और मास को अलग अलग कर रही हूँ।” माने समझ गये, यही तो मेरे गुरु ने कहा था कि ‘ तुस माने है शरीर और मास माने है आत्मा’; दोनों भिन्न- भिन्न हैं। आहार का विकल्प छोड़कर आत्म ध्यान में लीन हुए और सीधे केवल ज्ञान कर के उठ गये, यह है अन्तर्ज्ञान की महिमा!

दूसरी तरफ भव्यसेन मुनि के लिए लिखा कि बारह अंग, चौदह पूर्व और सकल शास्त्र को पढ़ लेने के बाद भी उन भव्यसेन ने मुनि भाव को अंगीकार नहीं किया। इसलिए शब्द ज्ञान महत्वपूर्ण नहीं, अर्थ ज्ञान मूल्यवान है, उसकी तरफ हमारी दृष्टि होनी चाहिए।

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