क्या शत्रु भी मित्र बन सकता है?

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शंका

क्या शत्रु भी मित्र बन सकता है?

समाधान

शत्रु रोज ही मित्र बनता रहता है। इस संसार में तो हम लोग रोज देखते हैं कि कई लोग कभी शत्रु होते हैं और समय बदलता है, तो मित्र बन जाते हैं और कई बार ऐसा होता है कि मित्र होते हैं और स्वार्थ टकराता है, तो शत्रु बन जाते हैं। अन्तरंग कारण तो यह है कि हमारे अशुभ कर्म का उदय आता है, तो कहते हैं: मित्र अरि हो जाये जगत में अशुभ कर्म के आने से। अन्तरंग कारण तो यह है। बहिरंग में कई निमित्त होते हैं, जैसे किसी व्यक्ति की भावना पर आप आघात पहुँचा दो, किसी का अपमान कर दो, तो मित्र भी शत्रु बन जाता है। कई बार ग़लतफ़हमी के कारण भी मित्र शत्रु बन जाता है, कई बार आग्रह-वश भी मित्र शत्रु बन जाता है, तो कई बार एक दूसरे की चिन्तन की भिन्नता भी शत्रुता का कारण बन जाती है।

दूसरी तरफ शत्रु मित्र बनता है- पुण्य कर्म के उदय से और व्यक्ति को सहारा दे देता है। उसके पीछे कई कारण होते हैंः अगर आप शत्रु के प्रति अच्छी भावना रखोगे, तो शत्रु मित्र बनेगा; शत्रु के गुणों का ख्याल रखोगे, शत्रु मित्र बनेगा और शत्रु की आप परोक्ष में निन्दा, आलोचना नहीं करोगे, शत्रु के मित्र बनने की सम्भावना बनी रहेगी। 

मेरे सम्पर्क में एक व्यक्ति हैं, उनके जीवन में ऐसा प्रसंग घटा कि उसका शत्रु उसके लिए मित्र नहीं, जीवनदायी बन गया। हुआ यह कि उसकी किसी व्यक्ति के साथ रंजिश चल रही थी, सम्पत्ति के विवाद के कारण रंजिश, और संपत्ति के विवाद की रंजिश में जिससे उसकी रंजिश थी, उसने उसके नाम की सुपारी दे दी और उसको मारने के लिए शूटर लोग घूम रहे थे। एक दूसरे व्यक्ति से उसकी बड़ी शत्रुता थी, लेकिन शत्रुता होने के बाद भी सबसे बड़ी विशेषता यह थी कि उन दोनों के बेटों की आपस में मित्रता थी और उस व्यक्ति के बेटे ने इनके बेटे को पढ़ाई में काफी सहयोग दिया था। उनके मन में कृतज्ञता का भाव आया कि इस व्यक्ति ने मेरे बेटे को आगे बढ़ाने में और पढ़ाने में उसके बेटे ने बहुत बड़ा योगदान दिया है, इसलिए इस व्यक्ति के साथ यह जो कुछ हो रहा है, वह ठीक नहीं और जब ऐसी भावना उसकी पलटी, उसने सामने वाले को पूर्व सूचना देकर सावधान कर दिया, उसका जीवन बच गया। बाद में भण्डाफोड़ हुआ, जो लोग हैं वह आज भी जेल की सलाखों में सड़ रहे हैं, तो कहने का तात्पर्य यह है कि व्यक्ति के मन को बदलने में देर नहीं लगती। हमारी नीति कहती है कि शत्रु के प्रति भी गुणग्राही दृष्टि रखो। गुणग्राही दृष्टि रखोगे, तो तुम्हारे सामने शत्रु भले होंगे लेकिन शत्रुता आगे नहीं बढ़ेगी। पुराणों में तो ऐसे अनेक प्रसंग मिलते हैं जो इस भाव में बैरी रहे भावान्तर में मित्र बन गये। आप जब रामायण के प्रसंग को देखेंगे, तो सीता जी और रावण के पीछे इतनी बड़ा रामायण हुई और आगे चलकर सीता का जीव गणधर बनेगा और रावण का जीव तीर्थंकर। यह तो भावान्तर की बात है लेकिन इसी भव में लोग करवट बदलते हैं, कोई पता नहीं चलता और एक बात बताऊँ, आजकल के मित्र, मित्र न होकर शत्रु होते हैं। मित्र की शक्ल लेकर आते हैं और कई ऐसे होते हैं जो शत्रु होकर के भी मित्रवत काम कर लेते हैं। इसलिए बाहर से लोगों के ऊपर बहुत ज्यादा भरोसा मत करना।

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