क्या पंचम काल में मुनि पूजनीय हैं?

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शंका

कुछ दिन पहले एक महिला ने मुझसे कहा कि “पंचम काल में मुनियों को पूजना और उनका आशीर्वाद प्राप्त करना पूजनीय नहीं है, बल्कि यह नरक के बन्ध का कारण है। यह वैसा है, जैसे उल्टी हाँडी में पानी डालना। खुद भी नरक जाएगी और वे भी नरकगामी होंगे। एक नरकगामी कैसे तुमको धर्म मार्ग पर लगा सकते है?” इस शंका का समाधान कीजिए।

समाधान

उनका मतलब तो यह है कि मुनि महाराज नरक जाएँगे और वो स्वर्ग पर राज करेंगे। यह उनका घर का आगम है? ऐसी फालतू की बातें करने वालो की बातो को कोई तवज्जो नहीं देना चाहिए। यह दुर्भाग्य है कि हमारे समाज में कुछ ऐसे लोग हैं, जो इस प्रकार का जहर समाज में फैलाने का काम करते है। हमें ऐसे लोगों की बातों को सिरे से खारिज करना चाहिए। आगम की यह वाणी है कि पंचम काल के अन्त तक मुनि मार्ग ऐसे ही प्रवर्तित होता रहेगा। और जिन शासन की इस परम्परा को यहाँ तक लाने का श्रेय अगर किसीको मिलता है, तो आचार्य और मुनियों को ही मिलता है। अगर मुनि नहीं होते तो तुम लोग सब अनाथ हो जाते। ऐसे लोगों को सोचना चाहिए कि आचार्य कुन्दकुन्द भी एक मुनि ही थे, आचार्य थे, और पंचम काल में ही जन्मे थे। और आचार्य कुन्दकुन्द से लेकर आज तक इतने महान-महान आचार्य और मुनि हुए हैं जिनके लिए कहा जाता है- “आचार्या: जिन शासनोन्नति कराः। आप रोज बोलते हैं कि हम क्या कहें, होली के मूर्ख सम्मेलन की तरह इसे देखना चाहिए। इसके अलावा और क्या? जिनको कुछ पता नहीं, आगम का ज्ञान नहीं वे क्या करेंगे? आगम तो कहता है पंचम काल के अन्त तक मुनि बनेंगे। अगर तुम कहते हो मुनि नहीं होते तो तुम मरकर दिखा दो, हम तुम्हे फॉलो कर लेंगे। बनो तो, देखे कैसे बनते हैं। यह कैसी धारणा? एक मुनि जो पूरा जीवन त्याग, तपस्या, संयम, साधना के साथ बिताते हैं, उनको नरक भेज रहे हैं और अस्पताल में खून चढ़वाने वाले स्वर्ग जाएँगे, मोक्ष जाएँगे? ऐसे लोगों की बुद्धि पर तो तरस आता है। मुझे लगता है कि नरक की सीट शायद इन्हीं लोगों के लिए खाली पड़ी है। जो जिन शासन की इस तरह से अवहेलना करेगा, वह जीवन में कभी सलामत नहीं रह सकता। आचार्य कुन्दकुन्द कहते हैं –

अज्ज वि तिरयणसुद्धा अप्पा झाएवि लहहिं इंदत्तं। 

लोयंतियदेवत्तं तत्थ चुदा णिव्वुदिं जंति।। (मोक्षपाहुड गाथा 77) 

– “इस पंचम काल में भी रत्नत्रय से शुद्ध मुनिराज अपनी आत्मा का ध्यान करके इंद्रत्व को प्राप्त करते हैं, लोकांतिक पने को प्राप्त करते हैं, देवत्व को प्राप्त करते हैं; और वहाँ से च्युत होकर मोक्ष को प्राप्त करते हैं।” 

यह मुनि की जो मुद्रा है ना, यह मुद्रा कोई साधारण मुद्रा नहीं है, यह जिनेन्द्र भगवान का प्रतिरूप है। इस मुनि मुद्रा के धारकों को वे नरक भेज रहे हैं, तो अगर उनकी माने तो मुनियों को मानने वाले यानि जैनियों के लिए ही नरक है। आचार्य कुन्दकुन्द इस मुद्रा के लिए कहते हैं, “यह मुद्रा क्या है? यह दर्शन है।” और दर्शन किसे कहते हैं? तो वे कहते हैं –

दंसेइ मोक्खमग्गं सम्मत्तं संजमं सुधम्मं च।

णिग्गंथं णाणमयं जिणमग्गे दंसणं भणियं ।। ( बोधपाहुड गाथा 14) 

दुविहं पि गंथचायं तीसु वि जोएसु संजमो ठादि।

णाणम्मि करणसुद्धे उब्भसणे दंसणं होदि।। (दर्शनपाहुड गाथा 12)

-“जो मोक्ष मार्ग को दिखाये, समयकक्तत्त्व को दिखाये, संयम को दिखाये, सुधर्म को दिखाये, वो दर्शन, यह दिगम्बर मुद्रा है।” यह दिगम्बर मुद्रा के दर्शन से सम्यग्दर्शन हो जाता हैं। इन मूढ़ों को कौन समझाए, जिन्होंने अपना एक स्वतंत्र आगम रच लिया हो। वो स्वतंत्र है। सबकी अपनी विचारधारा है, लेकिन ऐसी बातें जिनमत के अनुकूल नहीं है, इसमें कोई संशय नहीं है। हमें ऐसे लोगों से सुरक्षित दूरी बनाकर चलना चाहिए। इन लोगों ने समाज में गंदगी फैलाने का काम कर रखा है। हमें तो तरस आता है ऐसे लोगों की बुद्धि पर! जब इनके ऊपर कोई परेशानी आती हैं, तब पता चलता है मार्ग क्या है! पता नहीं इन लोगों की कैसी तालीम है जो ऐसे अनर्गल प्रलाप करते हुए इन्हे कोई तकलीफ नहीं होती। काश! जिनवाणी का सही तरह से अध्ययन किया होता, तो ऐसी बातें कहने का सपने में भी भाव नहीं होता। इसीलिए इन सब बातों पर हमें रंच मात्र भी ध्यान नहीं देना चाहिए। 

आगम का यह वचन है, यह मार्ग हम सबको बड़े सौभाग्य से और बड़ी दुर्लभता से प्राप्त हुआ है। हम इस मार्ग का अनुकरण करते रहें, जिनपद पर चलते रहें और अपने जीवन को धन्य कर दें। इसके बिना और कोई मार्ग है ही नहीं। जो लोग कहते है सब नरक जाएँगे, उनको बोलो आकर बताए कौनसा आगम है? आचार्य कुन्दकुन्द कहते हैं, मुक्ति मिलेगी तो इसी दिगम्बर मुद्रा से मिलेगी। वे कहते हैं

णवि सिज्झइ वत्थधरो जिणसासण जइ वि होइ तित्थयरो । एग्गो विमोक्खमग्गो सेसा उम्मग्गया सव्वे।। (पाहुड गाथा 23) -“कपड़े में मोक्ष नहीं है, कपड़े उतारने के बाद ही मोक्ष है” समझ गए? बाकी तो उनमार्ग है। माना कि केवल दिगम्बर होने से मुक्ति नहीं है, पर ये भी तय है बिना दिगम्बर हुए मुक्ति नहीं है। 

इसीलिए बातें कहने को बहुत है, पर मैं उतना आवश्यक नहीं समझता, पर हमें अपने आपको मजबूत बनाकर चलना चाहिए। सच्चे देव, शास्त्र, गुरु के दृढ़ अनुयायी बनकर चलिए, तभी आप अपना काम कर पाएँगे। मैं एक स्थान पर था, वहाँ पर कुछ लोग रत्नत्रय विधान का आयोजन कर रहे थे। हम लोगों का अचानक वहाँ पहुँचना हुआ। वहाँ के लोग आए, नीचे आयोजन होना था, ऊपर हम लोग थे। कुछ लोग आए, बोले “महाराज जी हमारे यहाँ रत्नत्रय विधान हो रहा है।” मैंने कहा “बहुत अच्छी बात है, रत्नत्रय विधान हो रहा है, आप लोग करिए।” मेरे पास एक व्यक्ति बैठे थे, बोले “रत्नत्रयधारी के साथ रत्नत्रय विधान हो तो बहुत अच्छा।” उन्होंने बातचीत की। उनका आशय यह था कि यह विधान हो रहा है, कही महाराज से कोई परेशानी न हो जाए, तो महाराज खिसक जाए। तो मैंने उनसे बड़ी शालीनता से कहा, “भैया देखो, विधान तुमको करना है, तो तुम बिल्कुल करो, हमें कोई आपत्ति नहीं। और अगर तुम हमारी गरिमानुरूप हमें आमंत्रित करते हो, तो हम विचार करेंगे। पर तुम तो हमें आमंत्रित करने आए नहीं हो, सूचना देने के लिए आए हो। तो हमने सुन लिया, तुमको विधान करना है, तो तुम विधान करो। पर तुम अगर सोचोगे कि जिस तरह तुमने एलक महाराज जी को इस गाँव से खिसका दिया था, तो हम तो ऐसे खिसकने वालो में से नहीं हैं।” अब यह संदेश समाज में गया। पूरी समाज की बैठक हुई। एक व्यक्ति ने कहा, “भैया, रत्नत्रयधारी के सानिध्य में अगर तुम विधान नहीं करते हो, तो क्या कागज के पन्नों का विधान करोगे?” किसका विधान करोगे? फिर समाज ने कहा, जो लोग हमारे सच्चे देव, शास्त्र, गुरु को नहीं मानते, हम उनको मान्यता नहीं दे सकते। 

कहीं न कहीं हमें इन बातो पर विचार करना चाहिए। कुछ लोग हैं जो समाज में जहर फैलाते हैं। यह कैसा उपदेश कि मुनि को मानोगे तो नरक चले जाओगे? भ्रमित करने का कुप्रयास। तुम्हारी जैसी आस्था और मान्यता है, तो तुम करो, तुम्हे कोई कुछ नहीं बोलता, लेकिन इस तरह की गंदगी फैलाना समाज में कतई स्वीकार्य नहीं होगा। ऐसे लोगों से सावधान होना चाहिए। यह जिनमत के अनुयायी की बात नहीं हो सकती, यह किसी पंत या मनगढंत बात की पुष्टि का आधार है। हमें इन सब बातों पर पूरा ध्यान रखना चाहिए। इसीलिए इन सबका ध्यान रखे। फिर वहाँ विधान हुआ। रत्नत्रय विधान हुआ, समाज ने कराया। तीन दिन में पूरी तैयारी करके भव्यता के साथ विधान कराया और बता दिया रत्नत्रय क्या होता है। तो कही भी ऐसी बातें हो तो हमें ध्यान रखना चाहिए।

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